ककोड़ा, जिसे खेख्सा भी कहा जाता है, एक बहुवर्षीय कद्दू वर्गीय फसल है, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से जंगली इलाकों में पाई जाती है।
– ककोड़ा कफ, खांसी, अपच, वात-पित्त संतुलन और हृदय संबंधी समस्याओं में लाभदायक होता है। इसकी जड़ें बवासीर, मूत्र संबंधी विकार और बुखार में उपयोगी होती है।
ककोड़ा गर्म और नम जलवायु में अच्छी तरह बढ़ता है। यह 1500-2500 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा और 20-30°C तापमान वाले क्षेत्रों में अच्छा उत्पादन देता है।
बुवाई का समय: जून-जुलाई सबसे उपयुक्त समय है।
70-80% अंकुरण क्षमता वाले बीज का 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयोग किया जाता है।
बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई आवश्यक होती है।- बरसात के मौसम में अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत नहीं होती, लेकिन लंबी सूखी अवधि में सिंचाई आवश्यक होती है।