अरहर मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की फसल है जिसकी खेती मुख्य रूप से अर्ध शुष्क क्षेत्रों में की जाती है।
अरहर की खेती
यह काली कपास की मिट्टी में सफलतापूर्वक उगाया जाता है, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी जिसका पीएच 7.0-8.5 के बीच होता है वो भी अरहर की बिजाई के लिए उत्तम होती है।
मिट्टी का प्रकार और खेत की तैयारी
जल्दी पकने वाली किस्मों की बुवाई जून के पहले पखवाड़े में की जाती है। मध्यम और देर से पकने वाली किस्मों की बुवाई जून के दूसरे पखवाड़े में की जाती है। सीड ड्रिल या देसी हल या रिज पर डिबलिंग द्वारा लाइन बुवाई की जाती है।
बुवाई का समय और विधि
अरहर की बोने की दर एक जीनोटाइप के लिए वांछित पौधे के घनत्व पर निर्भर करती है (प्रारंभिक, मध्यम या देर से), फसल प्रणाली (शुद्ध फसल, मिश्रित फसल, या अंतर फसल) आदि पर निर्भर करती है।
बीज दर
अरहर गहरी जड़ वाली फसल होने के कारण यह सूखे को सहन कर सकती है। लेकिन लंबे समय तक सूखे के मामले में तीन सिंचाई की आवश्यकता होती है।
सिंचाई और जल निकासी
परिपक्वता पर दो तिहाई से तीन चौथाई फलियों के साथ उनके रंग को भूरे रंग में बदलकर आंका जाता है और ये सबसे अच्छा कटाई का समय होता है। पौधों को आमतौर पर ज़मीन से 75-25 से.मी. के ऊपर एक दरांती से काटा जाता है।
फसल की कटाई
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