सुपारी की खेती कर किसान बन सकते हैं करोड़पति

सुपारी के उत्पादन के लिए मिट्टी के प्रकार

फसल के तहत सबसे बड़ा क्षेत्र लाल मिट्टी के प्रकार की बजरीदार लैटेरिटिक मिट्टी में पाया जाता है। दोमट मिट्टी पर भी सुपारी की खेती की जा सकती है।

सुपारी की Varieties

तीर्थहल्ली लोकल, मैदान लोकल, साउथ केनरा लोकल, मोहित नगर, श्रीवर्धन, मंगला, सुमंगला, श्रीमंगला, सर्वमंगला (VTL-12), SAS-I, विट्टल ऐरेका हाइब्रिड - 1 (VTLAH-1), विट्टल ऐरेका हाइब्रिड – 2 (VTLAH-II)

सुपारी की फसल में पौध उगाना

सुपारी का प्रवर्धन केवल बीजों द्वारा ही किया जाता है। चयन और बढ़ाने के चार चरण हैं सुपारी की पौध अर्थात मदर पाम का चयन, सीड नट्स का चयन, अंकुरण और पौध उगाना तथा पौधों का चयन।

बीज सुपारी का चयन

35 ग्राम से अधिक वजन वाले पूरी तरह से पके हुए मेवे का चयन किया जाना चाहिए। बीज का वजन लाल किस्मों के लिए मेवा 20-25 ग्राम होना चाहिए।

सुपारी की रोपाई कैसे की जाती है?

90 X 90 X 90 सेमी के गड्ढे खोद कर गली सड़ी गोबर की खाद और मिट्टी का प्रयोग करे। एक भाग खाद और एक भाग मिट्टी का मिला कर गड्ढे को 50 से 60 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक भर के पौधे रोपे जाते हैं।

सुपारी की फसल में सिंचाई

मिट्टी के प्रकार और मिट्टी के आधार पर पौधों को चार से सात दिनों में एक बार सिंचित किया जाना चाहिए।  केरल में सुपारी के बगीचों में सूखे महीनों में सात या सात में एक बार सिंचाई की जाती है।

सुपारी के फलों की कटाई कैसे की जाती है?

नो महीने पुराने फल पीले से नारंगी लाल रंग के होते हैं उस समय पर फलों को काटा जाता है। फिर लगभग 10 दिनों या 35 से 40 दिनों तक सूखी समतल जमीन पर धूप में लंबे समय तक सुखाया जाता है।

सुपारी की खेती के बारे में अगर आप विस्तार रूप  से  जानकारी चाहते हैं तो निचे दिए गए बटन पर क्लिक करें