जई की फसल बेहद अहम अनाज और चारे की फसल है। जई की खेती गेहूं की खेती में काफी समानता है।
जई में प्रोटीन और रेशे की प्रचूर मात्रा होती है। यह भार घटाने, ब्लड प्रैशर को नियंत्रित करने और बीमारियों से लड़ने की सामर्थ्य को बढ़ावा देने में भी सहायता करती है।
यह किस्म 1978 में पंजाब में जारी की गई। इस किस्म के पौधों का कद 150 सैं.मी. होता है। इसके दाने लंबे और सुनहरी रंग के जैसे होते हैं।
यह तेजी से बढ़ने वाली अच्छी, छोटे और तंग आकार के नर्म पत्तों वाली किस्म है। यह सोके की प्रतिरोधक है।
खेत को खरपतवार रहित बनाने के लिए सही तरीके से जोताई करें। कृषक उत्तम उपज प्राप्त करने के लिए 6-8 बार जोताई करें।
– जई की खेती के लिए बिजाई का सही समय अक्टूबर के दूसरे से आखिरी सप्ताह का समय उपयुक्त माना जाता है।