ककोड़ा, जिसे खेख्सा भी कहा जाता है, एक बहुवर्षीय कद्दू वर्गीय फसल है, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से जंगली इलाकों में पाई जाती है।
यह फसल बिना किसी विशेष देखभाल के प्राकृतिक रूप से उगती है, और इसके फल सब्जी व अचार बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इसके मादा पौधे से 8-10 वर्षों तक फल प्राप्त होते हैं।
बाजार में ककोड़ा की मांग अधिक होती है और इसकी कीमत 90-100 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिलती है, जिससे किसान अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। यह पौष्टिक और संतुलित आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- जलवायु: ककोड़ा गर्म और नम जलवायु में अच्छी तरह बढ़ता है। यह 1500-2500 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा और 20-30°C तापमान वाले क्षेत्रों में अच्छा उत्पादन देता है।
- भूमि: इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है, लेकिन जैविक तत्वों से भरपूर, अच्छी जल निकासी वाली रेतीली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH स्तर 6-7 होना चाहिए, क्योंकि यह अम्लीय मिट्टी के प्रति संवेदनशील होता है।
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- बुवाई का समय: जून-जुलाई सबसे उपयुक्त समय है।
- बीज और वानस्पतिक अंगों दोनों से इसकी खेती संभव है, लेकिन अधिक उत्पादन के लिए जड़ कंद द्वारा प्रवर्धन करना उचित होता है।
- पौधों की उचित संख्या बनाए रखने के लिए 2×2 मीटर की दूरी पर गड्ढे बनाकर बुवाई की जाती है।
- एक 4×4 मीटर प्लॉट में 9 गड्ढे होते हैं, जिनमें 1 नर पौधा और 8 मादा पौधे लगाए जाते हैं।
1. इंदिरा कंकोड़-1
2. अम्बिका-12-1
3. अम्बिका-12-2
4. अम्बिका-12-3
- 70-80% अंकुरण क्षमता वाले बीज का 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयोग किया जाता है।
- खेत की अंतिम जुताई के समय 200-250 क्विंटल गोबर की खाद मिलानी चाहिए।
- इसके अलावा, प्रति हेक्टेयर:
- 65 किलोग्राम यूरिया
- 375 किलोग्राम एसएसपी (सिंगल सुपर फास्फेट)
- 67 किलोग्राम एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश) का प्रयोग किया जाता है।
- बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई आवश्यक होती है।
- बरसात के मौसम में अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत नहीं होती, लेकिन लंबी सूखी अवधि में सिंचाई आवश्यक होती है।
- जलभराव से बचाने के लिए खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए।
- 2-3 बार निंदाई-गुड़ाई करके खरपतवार नियंत्रण किया जाता है।
- ककोड़ा की फसल में रोगों का प्रभाव कम होता है, लेकिन फल मक्खी गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है।
- रोकथाम के लिए 2-3 मिली इमिडाक्लोप्रिड या क्विनालफॉस 25 ई.सी. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जाता है।
- अधिक उपज प्राप्त करने के लिए पौधों को सहारा देना आवश्यक होता है।
- इसके लिए बांस, सूखी लकड़ियाँ, या लोहे के एंगल पर जालीनुमा तार (5-6 फीट ऊँचा, 4 फीट गोलाकार संरचना) का उपयोग किया जाता है, जिससे पौधे सही तरीके से बढ़ सकें और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन मिल सके।