अंगूर की प्रमुख बीमारियाँ, उनके लक्षण और प्रबंधन के उपाय
By : Tractorbird Published on : 30-Jun-2025
अंगूर की खेती में कीटों के साथ-साथ कई प्रकार के रोग भी फसल को नुकसान पहुँचाते हैं। ये रोग फसल की पैदावार और गुणवत्ता दोनों पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं।
अंगूर में रोगों का प्रकोप मुख्य रूप से मौसम की स्थिति, पिछले संक्रमण के इतिहास (इनोकुलम) और बेल की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है।
कभी-कभी कोई रोग एक ही साल में भारी क्षति पहुँचा सकता है। इस लेख में हम अंगूर की प्रमुख बीमारियों, उनके लक्षणों और प्रबंधन के तरीकों की जानकारी दे रहे हैं।
1. डाउन मिल्ड्यू (Downy Mildew) - Plasmopara viticola
लक्षण:
- पत्तियों की ऊपरी सतह पर अनियमित पीले व पारदर्शी धब्बे दिखाई देते हैं।
- इन्हीं स्थानों की निचली सतह पर सफेद फफूंद जैसा विकास होता है।
- पत्तियाँ पीली होकर भूरी पड़ने लगती हैं और सूख जाती हैं।
- शाखाएँ अविकसित रह जाती हैं या बौनी हो जाती हैं।
- तनों पर गहरे धंसे हुए भूरे रंग के धब्बे बनते हैं।
- फलों (बेरी) पर सफेद फफूंदी दिखाई देती है, जो बाद में सिकुड़कर चमड़े जैसी हो जाती है।
प्रबंधन उपाय:
- बोर्डो मिश्रण 1% या मेटालेक्सिल + मैंकोजेब 0.4% का छिड़काव करें।
- संक्रमित शाखाओं और पत्तों को काटकर नष्ट करें या मिट्टी में दबा दें।
2. पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew) - Uncinula necator
लक्षण:
- पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद चूर्ण जैसा फफूंद दिखाई देता है।
- पत्तियों का आकार और रंग बिगड़ जाता है।
- तनों पर गहरा भूरा रंग आ जाता है।
- फूल संक्रमित होने पर झड़ जाते हैं जिससे फलों की संख्या कम हो जाती है।
- संक्रमित फलों की त्वचा फट जाती है और उन पर सफेद फफूंद दिखाई देती है।
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प्रबंधन उपाय:
इनऑर्गेनिक सल्फर 0.25%, किनोमेथियोनेट 0.1% या डाइनोकैप 0.05% का छिड़काव करें।
3. एन्थ्रेक्नोज (Anthracnose) - Gloeosporium ampelophagum
लक्षण:
- फलों पर गहरे लाल रंग के धब्बे बनते हैं जो बाद में धंसे हुए और राख जैसे भूरे हो जाते हैं।
- धब्बों के चारों ओर गहरा घेरा बनता है, जिससे वे “बर्ड्स-आई रॉट” जैसे दिखते हैं।
- यह रोग तनों, टेंड्रिल्स, पत्तियों की नसों और डंठलों पर भी हमला करता है।
- युवा तनों पर कई धब्बे मिलकर तने को घेर लेते हैं, जिससे उसका ऊपरी भाग सूख जाता है।
- पत्तियाँ और डंठल विकृत हो सकते हैं।
सामान्य प्रबंधन सुझाव:
- फसल की नियमित निगरानी करें और रोगग्रस्त भागों को तुरंत हटा दें।
- रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
- जलवायु को ध्यान में रखते हुए फफूंदनाशकों का छिड़काव समय पर करें।
- जैविक विकल्प जैसे नीम आधारित उत्पाद या Trichoderma फफूंदनाशी का प्रयोग करें।
- रासायनिक दवाओं का प्रयोग करते समय अनुशंसित मात्रा और समय का पालन करें, जिससे फसल और पर्यावरण दोनों सुरक्षित रहें।