रतालू एक भूमिगत कंद वाली सब्ज़ी है जिसे विभिन्न रूपों में पकाया और खाया जाता है – उबालकर, भूनकर, तलकर या चिप्स और वेफर के रूप में।
यह एक पोषक तत्वों से भरपूर फसल है जिसमें भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और खनिज पाए जाते हैं। रतालू का सेवन मधुमेह, थायरॉइड, हृदय रोग, बवासीर और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों में लाभकारी माना जाता है।
रतालू की खेती पहले मुख्य रूप से अफ्रीकी देशों में की जाती थी, लेकिन अब भारत के राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी मांग और खेती दोनों बढ़ रही है।
खासकर उदयपुर संभाग में इसकी खेती लोकप्रिय होती जा रही है। किसान इसे बरसीम और रिजका जैसी फसलों के साथ मिलाकर अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं।
इसके पत्ते देखने में पान के पत्तों जैसे होते हैं।
कंद का गूदा आमतौर पर सफेद या जामुनी रंग का होता है।
1. लाल रतालू – गुजरात में अधिक लोकप्रिय
2. सफेद रतालू – मध्य प्रदेश में अधिक पसंद की जाती है
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अप्रैल से जून तक बुवाई का उत्तम समय है।
जल्दी उत्पादन के लिए मार्च में बुवाई कर नवंबर में खुदाई की जा सकती है।
पहली निराई: 50% अंकुरण के बाद
दूसरी निराई: पहली निराई के 1 महीने बाद
बारिश से कंद बाहर आ सकते हैं, इसलिए उन्हें समय-समय पर मिट्टी से ढकें
इससे कंद की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार होता है
रतालू एक उभरती हुई व्यावसायिक फसल है जिसकी मांग लगातार बढ़ रही है। यह न केवल स्वास्थ्यवर्धक है बल्कि आर्थिक रूप से लाभदायक भी है। सही समय पर बुवाई, उचित खाद प्रबंधन और सिंचाई तकनीक अपनाकर किसान अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।