रतालू की खेती: पूरी जानकारी, तकनीक और लाभ

By : Tractorbird Published on : 16-Jun-2025
रतालू

रतालू एक भूमिगत कंद वाली सब्ज़ी है जिसे विभिन्न रूपों में पकाया और खाया जाता है – उबालकर, भूनकर, तलकर या चिप्स और वेफर के रूप में। 

यह एक पोषक तत्वों से भरपूर फसल है जिसमें भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और खनिज पाए जाते हैं। रतालू का सेवन मधुमेह, थायरॉइड, हृदय रोग, बवासीर और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों में लाभकारी माना जाता है।

खेती का विस्तार

रतालू की खेती पहले मुख्य रूप से अफ्रीकी देशों में की जाती थी, लेकिन अब भारत के राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी मांग और खेती दोनों बढ़ रही है। 

खासकर उदयपुर संभाग में इसकी खेती लोकप्रिय होती जा रही है। किसान इसे बरसीम और रिजका जैसी फसलों के साथ मिलाकर अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं।

रतालू के पौधे की पहचान

 इसके पत्ते देखने में पान के पत्तों जैसे होते हैं।

 कंद का गूदा आमतौर पर सफेद या जामुनी रंग का होता है।

 जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

  • तापमान: 25°C से 35°C
  • जलवायु: गर्म और आर्द्र
  • मिट्टी: दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त; ध्यान रहे कि जलभराव न हो क्योंकि इससे कंद सड़ सकते हैं।

मुख्य किस्में

1. लाल रतालू – गुजरात में अधिक लोकप्रिय

2. सफेद रतालू – मध्य प्रदेश में अधिक पसंद की जाती है

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खेत की तैयारी

  • खेत को 3-4 बार जुताई करें।
  • 50 सेमी चौड़ी बेड्स तैयार करें।
  • प्रत्येक बेड पर 30 सेमी दूरी पर 40-50 ग्राम वज़न के कंद टुकड़ों को लगाएँ।
  • प्रति हेक्टेयर 20-30 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है।
  • बुवाई से पहले बीजों को 0.2% मैनकोजेब घोल में 4-5 मिनट तक उपचारित करें।

बुवाई का समय

अप्रैल से जून तक बुवाई का उत्तम समय है।

जल्दी उत्पादन के लिए मार्च में बुवाई कर नवंबर में खुदाई की जा सकती है।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

खेत तैयार करते समय:

  • 200 क्विंटल सड़ी गोबर खाद
  • 60 किग्रा फास्फोरस और 100 किग्रा पोटाश
  • नाइट्रोजन (50 किग्रा) को दो बराबर भागों में बाँटें:
  • पहला भाग बुवाई के 2 महीने बाद
  • दूसरा भाग तीसरे महीने डालें और सिंचाई करें

 फसल देखरेख और प्रबंधन

1. खरपतवार नियंत्रण

पहली निराई: 50% अंकुरण के बाद

दूसरी निराई: पहली निराई के 1 महीने बाद

2. सिंचाई व्यवस्था

  • पहली सिंचाई: बुवाई के तुरंत बाद
  • उसके बाद हर 10-15 दिन में
  • ड्रिप सिंचाई पद्धति से पानी की बचत और खरपतवार नियंत्रण बेहतर होता है

3. मिट्टी चढ़ाना

बारिश से कंद बाहर आ सकते हैं, इसलिए उन्हें समय-समय पर मिट्टी से ढकें

इससे कंद की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार होता है

फसल की खुदाई और उत्पादन

  • फसल 8-9 महीनों में तैयार हो जाती है
  • जब पत्तियाँ पीली पड़ने लगें तो कंद की खुदाई करें
  • प्रति हेक्टेयर 350-400 क्विंटल तक उपज प्राप्त हो सकती है

निष्कर्ष

रतालू एक उभरती हुई व्यावसायिक फसल है जिसकी मांग लगातार बढ़ रही है। यह न केवल स्वास्थ्यवर्धक है बल्कि आर्थिक रूप से लाभदायक भी है। सही समय पर बुवाई, उचित खाद प्रबंधन और सिंचाई तकनीक अपनाकर किसान अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

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