सोया साग की खेती एक लाभकारी व्यवसाय हो सकता है, खासकर जब इसकी मांग बाजार में बढ़ रही हो।
सोया साग में पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं इसमें एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होता है। इसकी टहनी में मैग्नीशियम, आयरन, पोटैशियम, फाइबर के भरपूर पोषक तत्व मौजूद होते हैं। सोया साग आंखों की रोशनी को भी बढ़ाता है और त्वचा को सुंदर बनाता है।
हड्डियों की मजबूती, नींद की समस्या, श्वसन संक्रमण में राहत देने वाली यह प्रोटीन युक्त सब्जी है। इसका बाजार भाव कभी भी कम नहीं होता है।
इस लेख में हम आपको सोया साग की खेती से जुडी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
सोया साग की खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। यह फसल 15°C से 25°C के तापमान में अच्छी वृद्धि करती है और हल्की ठंड को सहन कर सकती है।
सोया साग के लिए दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी क्षमता हो. मिट्टी का pH 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
सोया साग की विशेष किस्में नहीं होती हैं, लेकिन सोयाबीन की कुछ किस्में जैसे कि पीबी 1, पीबी 2, और जेएस 335 का उपयोग किया जा सकता है।
1. जुताई: खेत को 2-3 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाया जाता है।
2. समतलीकरण: खेत को समतल किया जाता है ताकि पानी का समान वितरण हो सके।
3. जैविक खाद: मिट्टी में सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट मिलाया जाता है।
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1. नाइट्रोजन: बुवाई के समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड़ दिया जाता है।
2. फॉस्फोरस: बुवाई से पहले 50 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से डाला जाता है।
3. पोटाश: 20 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ बुवाई के समय दिया जाता है।
सोया साग को 3-4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, जो मिट्टी की नमी और मौसम पर निर्भर करती है।
सोया साग में लीफ माइनर और तना छेदक जैसे कीट पाए जाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए धानुका जैपेक और ईएम-1 जैसे कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।