सफेद मूसली एक बहुवर्षीय जड़दार औषधीय पौधा है, जो दिखने में घास जैसा होता है। इसकी जड़ें मोटी, गोलाकार तथा सफेद से हल्के भूरे रंग की होती हैं। यह पौधा विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों में पाया जाता है और इसकी खेती में सावधानीपूर्वक देखभाल की आवश्यकता होती है।
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में इसका व्यापक उपयोग होता है। इसका वैज्ञानिक नाम Chlorophytum borivilianum है और यह एक अत्यंत मूल्यवान औषधीय फसल मानी जाती है।
सफेद मूसली मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है। इसकी जड़ें औषधि निर्माण में काम आती हैं। यह पौधा लगभग 1 से 1.5 फुट ऊंचा होता है।
इसकी सफल खेती के लिए 15–35°C तापमान उपयुक्त माना जाता है। बुवाई के समय 30–35°C और खुदाई के समय 20–25°C तापमान आदर्श रहता है। जिन क्षेत्रों में 50 से 150 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है, वहां इसकी खेती आसानी से की जा सकती है।
सफेद मूसली के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट से रेतीली मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। यह हल्की ढलान वाली या थोड़ी गीली मिट्टी में भी उग सकती है।
जैविक पदार्थों से भरपूर लाल मिट्टी में इसकी उपज बेहतर होती है। जलभराव वाली भूमि में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए। मिट्टी का pH मान 6.5 से 8.5 के बीच उपयुक्त रहता है।
खेत की तैयारी के लिए जमीन को 2–3 बार 30–40 सेंटीमीटर गहराई तक जोतना चाहिए, जिससे मिट्टी भुरभुरी और नरम हो जाए। जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर लगभग 30 टन गोबर की खाद मिलाने से भूमि की उर्वरता बढ़ती है। इसके बाद खेत को समतल कर रोपाई के लिए तैयार किया जाता है।
सफेद मूसली की खेती बीज और कंद, दोनों से की जा सकती है। बीज से खेती करने पर समय अधिक लगता है, लेकिन पौधे स्वस्थ मिलते हैं। कंद से खेती अपेक्षाकृत जल्दी तैयार होती है और बीज की मात्रा भी कम लगती है।
बीज से उगाई गई फसल में अंकुरण दर बहुत कम (लगभग 14–16 प्रतिशत) होती है, इसलिए सामान्यतः कंदों द्वारा रोपाई की सलाह दी जाती है। रोपाई के लिए स्वस्थ कंदों का चयन कर बीजोपचार करना आवश्यक है। एक एकड़ में लगभग 5 से 5.5 क्विंटल कंदों की आवश्यकता होती है।
सफेद मूसली की रोपाई के लिए जून का पहला सप्ताह सबसे उपयुक्त माना जाता है। हल्की वर्षा होने पर भी इसकी बुवाई की जा सकती है। पौधों के बीच लगभग 10 इंच की दूरी रखनी चाहिए और कंदों को लगभग 1 इंच की गहराई पर लगाना चाहिए।
सफेद मूसली की फसल नवंबर महीने में तैयार हो जाती है। इस समय खुदाई की जाती है और प्रत्येक पौधे से लगभग 10–12 कंद प्राप्त होते हैं। खुदाई से पहले हल्की सिंचाई करने से कंद आसानी से मिट्टी से निकल आते हैं।
प्रति एकड़ सूखे कंद की उपज लगभग 3 से 3.5 क्विंटल होती है। बाजार में इनका मूल्य 600 से 1500 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिल सकता है, जिससे यह खेती किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध होती है।
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