भारत में आलू की खेती किसानों की आमदनी का महत्वपूर्ण स्रोत है। आलू की नई किस्में जैसे कुफरी जवाहर, सिंधुरी, बहार, चिप्सोना और लावकरा जल्दी तैयार होती हैं। रोगों के प्रति प्रतिरोधक हैं और अधिक उत्पादन देती हैं। ये किस्में किसानों को बेहतर आय और बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त दिलाती हैं।
भारत में आलू की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जो लाखों किसानों की आय का मुख्य स्रोत है। पिछले कुछ वर्षों में किसानों की मांग को ध्यान में रखते हुए विभिन्न अनुसंधान संस्थानों ने नई और बेहतर किस्मों का विकास किया है, जो तेजी से तैयार होती हैं, रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधक होती हैं और उच्च उपज देती हैं। आइए जानते हैं अलग-अलग क्षेत्रों में बोई जाने वाली आलू की पांच प्रमुख किस्मों के बारे में।
आलू की टॉप 5 किस्में निम्नलिखित हैं :-
आलू की कुफरी जवाहर किस्म एक जल्दी तैयार होने वाली किस्म है। यह औसतन 70-80 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता और उच्च उत्पादन है।
कंद गोल और चिकने होते हैं, जो बाजार में आसानी से बिकते हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब और बिहार में इस किस्म की खेती अधिक होती है। जल्दी तैयार होने के कारण यह किसानों को जल्दी बाजार में आलू बेचने का अवसर देती है और उनकी आय बढ़ाने में मदद करती है।
कुफरी सिंधुरी देर से पकने वाली किस्म है, जो लगभग 100-120 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म के कंद लाल रंग के और आकार में गोल-लंबे होते हैं।
यह किस्म शुष्क मौसम को सहन करने में सक्षम है, जिससे यह विशेष रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में लोकप्रिय है। इसकी उच्च सहनशीलता और लंबे मौसम तक फसल की टिकाऊ गुणवत्ता इसे किसानों के लिए आकर्षक बनाती है।
कुफरी बहार उत्तरी भारत में व्यापक रूप से बोई जाने वाली किस्म है। इसकी खुदाई 90-100 दिनों में हो जाती है। इसमें रोगों के प्रति अच्छी प्रतिरोधकता पाई जाती है और उत्पादन भी अधिक होता है।
कंद सफेद और मध्यम आकार के होते हैं। उत्तर भारत, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में इस किस्म की खेती प्रमुख है। इसकी उन्नत उपज और टिकाऊ गुणवत्ता किसानों को बेहतर लाभ देती है।
कुफरी चिप्सोना खास तौर पर आलू चिप्स और फ्रेंच फ्राइज़ बनाने के लिए विकसित की गई किस्म है। इसमें शुगर की मात्रा कम होती है, जिससे तली हुई चीज़ें अच्छा रंग और स्वाद प्राप्त करती हैं।
कंद बड़े और गोलाकार होते हैं, जो प्रोसेसिंग उद्योग के लिए बेहद उपयुक्त हैं। इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तेजी से बढ़ रही है। प्रोसेसिंग उद्योग के लिए यह किस्म किसानों को उच्च कीमत में बेचने का अवसर देती है।
कुफरी लावकरा एक जल्दी पकने वाली किस्म है, जो 60-70 दिनों में तैयार हो जाती है। छोटे किसानों के लिए यह बेहद लाभकारी है, क्योंकि इसे जल्दी तैयार करके बाजार में जल्दी पहुंचाया जा सकता है।
कंद हल्के पीले रंग के होते हैं और उपज भी संतोषजनक है। गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र में इस किस्म की खेती तेजी से बढ़ रही है। इसके जल्दी तैयार होने की वजह से किसानों को नकदी प्रवाह में तेजी मिलती है और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
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