कुट्टू की खेती कैसे करें? जानें कुट्टू की खेती का सही तरीका और जरूरी टिप्स

By : Tractorbird Published on : 18-Nov-2025
कुट्टू

आज के समय में खेती का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। किसान अब पारंपरिक फसलों के साथ-साथ उन वैकल्पिक फसलों की ओर भी रुझान दिखा रहे हैं, जो कम लागत में अधिक मुनाफा देती हैं और जिनकी बाजार में लगातार मांग बनी रहती है। इन्हीं लाभकारी फसलों में कुट्टू (Buckwheat) भी शामिल है। 

कुट्टू का आटा गेहूं और चावल के आटे की तुलना में अधिक महंगा बिकता है, और इसकी डिमांड विशेष रूप से उपवास के दिनों में तेजी से बढ़ जाती है। कुट्टू से विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनने के साथ-साथ यह अपने पौष्टिक तत्वों के लिए भी जाना जाता है। यही कारण है कि कुट्टू की उन्नत खेती किसानों के लिए अतिरिक्त आय का बेहतरीन विकल्प बनती जा रही है।

कुट्टू क्या है? 

कुट्टू एक फूलदार पौधा है जिसे भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में कई नामों से जाना जाता है जैसे—टाऊ, फाफड़, ओगला, बकव्हीट आदि। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति उत्तरी चीन और साइबेरिया में हुई थी, जबकि रूस में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। 

कुट्टू पोषण के मामले में गेहूं और चावल से अधिक समृद्ध है। इसमें प्रोटीन, वसा, आयरन, फॉस्फोरस, कैल्शियम तथा कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में पाया जाता है। कुट्टू पौधे का हर हिस्सा उपयोगी होता है—इसके तने को सब्जी के रूप में, पत्तियों और फूलों को औषधीय उपयोग में, और बीज को आटा बनाकर खाया जाता है। 

भारत में इसकी खेती मुख्यत: उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, असम, सिक्किम, यूपी और छत्तीसगढ़ में की जाती है।

कुट्टू की खेती से होने वाले प्रमुख लाभ

कुट्टू भारत में उपवास का मुख्य आहार माना जाता है इसलिए इसकी सालभर उचित मांग बनी रहती है। यह नसों को लचीलापन प्रदान करता है और गैंग्रीन जैसे रोगों में भी लाभकारी बताया जाता है। 

इसके बीजों का उपयोग नूडल्स, कुकीज़, सूप, चाय, ग्लूटेन-फ्री बियर आदि बनाने में किया जाता है। कुट्टू का आटा ग्लूटेन-फ्री होने के कारण डाइबिटीज और ग्लूटेन-सेंसिटिव लोगों के लिए बेहद उपयोगी है।

देश ही नहीं, विदेशों में भी इसकी बड़ी मात्रा में डिमांड है—जापान में सोबा नूडल्स का प्रमुख स्रोत कुट्टू ही है। कुट्टू में मौजूद लाइसिन की मात्रा दूध और अंडे के बराबर होती है, इसलिए यह शाकाहारी लोगों के लिए बेहद उत्तम विकल्प है। 

बाजार में इसकी कीमत गेहूं और धान की तुलना में कई गुना अधिक मिलती है, जिससे यह किसानों के लिए लाभदायक फसल बन जाती है।

कुट्टू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

कुट्टू एक ऐसी फसल है जिसे ठंडी और नम जलवायु पसंद है। इसकी बढ़वार उच्च तापमान में नहीं होती, इसलिए यह मुख्यत: पहाड़ी और शीतल क्षेत्रों में उगाया जाता है। 

हालांकि यह सामान्य मिट्टी में भी अच्छी तरह विकसित हो जाता है, लेकिन लवणीय और क्षारीय मिट्टी इसके लिए उपयुक्त नहीं होती।

इसके लिए मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 के बीच होना आदर्श माना जाता है। हल्की, दोमट और अच्छी जल-निकास वाली भूमि कुट्टू की उत्तम पैदावार देती है।

ये भी पढ़ें: न्यू हॉलैंड बनाम सोनालीका ट्रैक्टर तुलना – कीमत, विशेषताएं और माइलेज

कुट्टू की बुवाई का सही समय 

कुट्टू की खेती रबी सीजन में की जाती है। इसका सबसे उपयुक्त समय 20 अक्टूबर से 20 नवंबर माना जाता है। इस अवधि में मौसम न तो अधिक गर्म होता है और न ही बहुत ठंडा, जो कुट्टू की फसल के लिए आदर्श परिस्थिति बनाता है। समय पर बोई गई फसल तेजी से बढ़ती है और उच्च पैदावार देती है।

कुट्टू की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Buckwheat)

कुट्टू की आधुनिक और उन्नत किस्मों में प्रमुख नाम हैं—

  •  हिमप्रिया
  •  हिमगिरी
  •  संगला-1

ये किस्में विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में बोई जाती हैं। सही प्रबंधन और समय पर बुवाई करने पर इन किस्मों से लगभग 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

कुट्टू की खेती की विधि

कुट्टू की बुवाई के लिए 75–80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। इसके बीजों को आमतौर पर छिड़काव विधि (Broadcasting Method) से बोया जाता है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी लगभग 30 सेंटीमीटर, और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखी जाती है।

बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करना जरूरी है, जिससे बीज अंकुरित होकर तेजी से बढ़ सके। आगे की सिंचाई मौसम और मिट्टी की नमी के आधार पर हल्की मात्रा में की जाती है क्योंकि अत्यधिक पानी कुट्टू की फसल को नुकसान पहुँचा सकता है।

फसल की कटाई और औसत पैदावार

कुट्टू की फसल को तब काटा जाना चाहिए जब लगभग 70–80% दाने पक जाएं, क्योंकि अधिक देर तक खड़ी रहने पर बीज झड़ने की संभावना रहती है। कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह धूप में सुखाया जाता है और फिर गहाई की जाती है। 

अच्छे प्रबंधन एवं उन्नत किस्मों के साथ किसान प्रति हेक्टेयर 11 से 13 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। पैकिंग के बाद इसे सीधे बाजार, मंडी या प्रोसेसिंग यूनिटों को बेचा जाता है जहां इसका अधिक मूल्य मिलता है।

Join TractorBird Whatsapp Group

Categories

Similar Posts