मखाना मुख्य रूप से उत्तर बिहार, विशेषकर सीमांचल क्षेत्र में उगाया जाता है। इसमें कई स्वास्थ्यवर्धक और औषधीय गुण पाए जाते हैं। यह एक आम सूखा मेवा है जिसमें वसा की मात्रा बहुत कम होती है, लेकिन यह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और खनिजों से भरपूर होता है।
मखाने का उपयोग दूध आधारित व्यंजनों जैसे खीर, हलवा, पुडिंग आदि बनाने में किया जाता है। इसकी आर्थिक महत्वता बढ़ाने के लिए उन्नत कृषि तकनीकों और बेहतर किस्मों का उपयोग किया जा रहा है।
मखाना की खेती मुख्य रूप से तालाबों में की जाती है। इसकी खेती के लिए उष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। मखाना की खेती करने के लिए किसान नवंबर-दिसंबर में इसकी नर्सरी तैयार करते है।
और फरवरी-मार्च में मुख्य खेत या तालाब में रोपाई करते हैं। इसके विकास के लिए 20 डिग्री सें. से 35 डिग्री से. तापमान उपयुक्त होता है तथा 100 सेमी. से 250 सेमी. वार्षिक वर्षा का होना अति आवष्यक है।
मखाने की खेती चिकनी दोमट मिट्टी में की जाती है। इसकी खेती के लिए ज्यादा पानी की आवश्यता होती है। इसकी खेती उन खेतों या तालाबों में की जाती है जहां 4 से 6 फीट तक पानी जमा रहता है।
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मखाना की खेती आमतौर पर जल-जमाव वाले क्षेत्रों में की जाती है, जहां पानी की गहराई लगभग 4 से 6 फीट तक होती है, हालांकि इसकी खेती खेतों में अन्य फसलों की तरह भी की जा सकती है।
इसमें लगभग 30 से 90 किलोग्राम तक स्वस्थ मखाना बीजों को दिसंबर महीने में तालाब में हाथ से छींटा जाता है। बीज बोने के लगभग 35 से 40 दिन बाद पानी के अंदर बीज अंकुरित होने लगते हैं। फरवरी के अंत या मार्च की शुरुआत तक मखाने के पौधे पानी की सतह पर दिखाई देने लगते हैं।
स्वस्थ पौधों की रोपाई मार्च से अप्रैल के महीने में की जाती है, जिसमें कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी लगभग 1.20 से 1.25 मीटर रखी जाती है। रोपाई के करीब दो महीने बाद पौधों में चमकीले बैंगनी रंग के फूल आने लगते हैं। मखाना पौधे के सभी भाग स्वभाव से कँटीले होते हैं।
जब फल पूरी तरह पक जाते हैं, तो वे फटने लगते हैं। फसल कटाई के लगभग 2 से 3 महीने बाद पानी में बचे हुए एक-तिहाई बीज, जो कटाई के समय इकट्ठा नहीं हो पाते, वे स्वतः ही अंकुरित होकर अगली फसल के लिए तैयार होने लगते हैं।
मखाना की खेती में आमतौर पर तालाब में दोबारा बीज बोने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि पिछले वर्ष के तालाब में बचे हुए बीज अगले सीजन में स्वतः ही अंकुरित होकर नई फसल के लिए काम आ जाते हैं।
खेती की प्रक्रिया में मखाना के बीज सीधे खेतों में बोए जाते हैं या फिर धान की तरह तैयार पौधों की रोपाई की जाती है। इसकी खेती लगभग 1 फीट पानी भरी कृषि भूमि में की जाती है।
एक ही खेत में मखाना के साथ धान और अन्य फसलें भी उगाई जा सकती हैं। सबसे पहले मखाना के पौधों की नर्सरी तैयार की जाती है। खेत को तैयार करने के लिए 2 से 3 बार गहरी जुताई की जाती है, फिर ट्रैक्टर या देशी हल से पाटा चलाकर जमीन को समतल किया जाता है।
मखाना की रोपाई फरवरी के पहले सप्ताह से लेकर अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक पूरी कर लेनी चाहिए। रोपाई से पहले खेत के चारों ओर लगभग 2 फीट ऊँचा बाँध बनाकर उसमें 1 फीट तक पानी भर देना आवश्यक होता है।
मखाना की फसल में बीजों को तालाब से इकट्ठा करने का कार्य अगस्त से अक्टूबर के बीच किया जाता है। कटाई का काम सुबह 6 बजे से 11 बजे तक पारंपरिक तरीके से किया जाता है, जिसमें लगभग 4 से 5 लोग तालाब में उतरकर बीज एकत्र करते हैं।
तालाब में बांस की डंडियों की सहायता से जाल जैसा बांध बनाकर बीजों को रोका जाता है, जिससे सभी बीज आसानी से इकट्ठा और साफ किए जा सकें तथा उनमें मौजूद गंदगी निकल जाए।
इसके बाद बीजों को बेलनाकार कंटेनर की मदद से जमीन पर रगड़कर “रौल” किया जाता है ताकि उनकी सतह चिकनी हो जाए। फिर बीजों को दोबारा धोकर साफ किया जाता है और सुखाने के बाद उन्हें गनी बैग (जूट के बोरे) में सुरक्षित भंडारण के लिए रखा जाता है।