पालक की खेती और उसके तरीके
By : Tractorbird News Published on : 11-Mar-2025
पालक (Spinach) एक पत्तेदार सब्जी है जो पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें आयरन, विटामिन A, C, K और फॉलिक एसिड भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।
पालक का उपयोग कई प्रकार के व्यंजन तैयार करने के लिए किया जाता है। पालक की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती हैं।
भारत में पालक की खेती पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, कर्नाटक और मध्यप्रदेश में की जाती हैं।
पालक की खेती से किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं। आइए विस्तार से पालक की खेती के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करें।
पालक की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
जलवायु
- पालक की खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। 15-30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसका अच्छा विकास होता है।
- अत्यधिक गर्मी और पाला पालक के लिए हानिकारक होता है। ठंडे मौसम में पालक की पत्तियां अधिक कोमल और स्वादिष्ट होती है।
मिट्टी
- पालक की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH स्तर 6.0-7.5 के बीच होना चाहिए।
- अत्यधिक क्षारीय या अम्लीय मिट्टी पालक की उपज को प्रभावित कर सकती है।
पालक की प्रमुख किस्में
पालक की कई किस्में होती हैं, जिनमें कुछ प्रमुख किस्में निम्नलिखित हैं:
- पूसा हरित
- पूसा भारती
- पूसा पालक
- बैंगलोर पालक
- ऑल ग्रीन
- जैसलमेर ग्रीन
पालक की खेती के लिए खेत की तैयारी
- पालक की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह जोतकर भुरभुरी और समतल बना लें। इसके बाद खेत को पाटा लगाकर समतल कर लेना चाहिए।
- आखरी जुताई के समय मिट्टी में जैविक खाद (गोहबर खाद या कम्पोस्ट) डालें।
- जताई का कार्य हैरो और कल्टीवेटर की मदद से करना चाहिए। 15-20 टन गोबर खाद प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाकर तैयार करें।
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बुवाई का समय
- शीतकालीन फसल के लिए सितंबर से नवंबर का समय उपयुक्त है।
- ग्रीष्मकालीन फसल के लिए फरवरी से मार्च का समय सर्वोत्तम होता है।
बीज दर और बुवाई के तरीके
- बीज की मात्रा: 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयुक्त होती है। बुवाई पंक्तियों में करें, जिससे खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई प्रबंधन आसान हो सके।
- पंक्तियों के बीच 20-25 सेमी और पौधों के बीच 5-10 सेमी की दूरी रखें। बीज को 2-3 सेमी गहराई में बोएं।
उर्वरक और खाद प्रबंधन
- प्रति हेक्टेयर 100-120 किग्रा नाइट्रोजन (N), 40-50 किग्रा फॉस्फोरस (P) और 40-50 किग्रा पोटाश (K) डालें। आधी मात्रा में नाइट्रोजन और संपूर्ण फॉस्फोरस एवं पोटाश बुवाई के समय दें।
- शेष नाइट्रोजन को दो भागों में विभाजित कर फसल के 3-4 सप्ताह बाद दें।
सिंचाई प्रबंधन
- पालक की जड़ें सतह के पास होती हैं, इसलिए हल्की सिंचाई करें। बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई आवश्यक है।
- सर्दियों में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। अत्यधिक पानी से बचें, क्योंकि इससे जड़ों में सड़न हो सकती है।
खरपतवार नियंत्रण
नियमित रूप से निराई-गुड़ाई करें। मल्चिंग करने से खरपतवार की वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। रासायनिक नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथालिन जैसे खरपतवारनाशकों का प्रयोग करें।
पालक में कीट नियंत्रण
पालक की प्रमुख कीटें निम्नलिखित हैं:
- लीफ माइनर: यह कीट पत्तियों में सुरंग बनाकर हानि पहुंचाता है। नियंत्रण के लिए डाइमिथोएट 30% EC का छिड़काव करें।
- एफिड (माहू): यह कीट पत्तियों का रस चूसता है। नियंत्रित करने के लिए नीम तेल या इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करें।
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पालक की खेती में लगने वाले रोगों का नियंत्रण
पालक में मुख्यत निम्नलिखित रोग पाए जाते हैं:
- पाउडरी मिल्ड्यू: सफेद चूर्ण जैसा पदार्थ पत्तियों पर दिखता है। इसके नियंत्रण के लिए सल्फर पाउडर का छिड़काव करें।
- डाउनी मिल्ड्यू: यह रोग पत्तियों को पीला कर देता है। मेटालैक्सिल या मैंकोजेब का छिड़काव प्रभावी होता है।
- जड़ सड़न: पानी के जमाव के कारण यह रोग होता है। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
पालक की कटाई और उपज
- पालक की फसल बुवाई के 30-40 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब पत्तियां पूर्ण रूप से विकसित हो जाएं, तब उनकी कटाई करें।
- कटाई के बाद पत्तियों को धोकर साफ करें और तुरंत मंडी में भेजें। उचित देखभाल करने पर पालक की उपज 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकती है।
- पालक को ताजगी बनाए रखने के लिए ठंडे स्थान पर रखें। बेहतर लाभ के लिए निकटतम मंडी में त्वरित बिक्री करें।
- पालक की खेती कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली लाभकारी फसल है।
- उचित जलवायु, मिट्टी, उर्वरक प्रबंधन और कीट-रोग नियंत्रण अपनाकर किसान अच्छी गुणवत्ता और मात्रा में पालक का उत्पादन कर सकते हैं।