भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने तेजी से खाद बनाने की नई तकनीक विकसित की है। इस तकनीक के द्वारा फार्म पर उपस्थित सामग्री को जैविक उर्वरकों में बदला जा सकता है।
कृषि में जैविक उर्वरक के रूप में उपयोग के लिए फॉस्फोर-नाइट्रो या फॉस्फोर-सल्फो कम्पोस्ट जैसी समृद्ध खाद भी विकसित की गई है। मृदा जैव विविधता पर अखिल भारतीय नेटवर्क परियोजना के तहत विभिन्न फसलों के लिए जैव उर्वरक भी विकसित किए गए हैं।
सरकार 2015-16 से परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और उत्तर पूर्व क्षेत्र में मिशन जैविक मूल्य श्रृंखला विकास (एमओवीसीडीएनईआर) के माध्यम से जैविक खेती के तहत जैविक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। इन योजनाओं के तहत, किसानों को मुख्य रूप से अन्य जैविक आदानों के साथ-साथ जैविक उर्वरकों का उपयोग करके जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
किसानों को शुरू से अंत तक समर्थन यानी जैविक उत्पादों के उत्पादन से लेकर विपणन तक सुनिश्चित किया जाता है। किसानों को जैविक उर्वरकों के खेत में उत्पादन और इसके उपयोग के बारे में व्यावहारिक प्रशिक्षण इन योजनाओं का अभिन्न अंग है।
किसानों को जैविक उर्वरकों सहित ऑन-फार्म जैविक इनपुट के साथ-साथ ऑफ-फार्म जैविक इनपुट की खरीद के लिए पीकेवीवाई के तहत 31000 रुपये / हेक्टेयर / 3 वर्ष और MOVCDNER के तहत 32500 / हेक्टेयर / 3 वर्ष की सब्सिडी प्रदान की जाती है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) की मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) योजना के तहत, राज्यों को जैविक उर्वरकों के साथ रासायनिक उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग के माध्यम से एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (आईएनएम) को बढ़ावा देने के लिए सहायता प्रदान की जाती है। एसएचसी योजना के तहत, विभिन्न प्रशिक्षण और प्रदर्शन कार्यक्रमों के साथ-साथ किसान मेलों और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है।
सरकार गंगा बेसिन और अन्य वर्षा आधारित क्षेत्रों के साथ 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने के लिए मिशन मोड में बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की तैयारी कर रही है, जिसमें 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती में परिवर्तित करके 15000 क्लस्टर विकसित किए जाएंगे, जिसमें 10,000 जैव-इनपुट संसाधन केंद्र ( बीजामृत, जीवामृत, नीमास्त्र आदि जैसे स्थानीय पशुधन आधारित प्राकृतिक कृषि आदानों की निरंतर आपूर्ति के लिए बीआरसी) की स्थापना की जाएगी। इस कार्यक्रम से रासायनिक उर्वरकों की खपत कम हो जाएगी।