पंजाब सरकार की ‘जिहदा खेत, ओहदी रेत’ नीति: बाढ़ प्रभावित किसानों के लिए बड़ी राहत

By : Tractorbird Published on : 10-Sep-2025
पंजाब

पंजाब सरकार ने बाढ़ से प्रभावित किसानों की मुश्किलें कम करने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। ‘जिहदा खेत, ओहदी रेत’ नामक इस नीति के तहत अब किसान अपने खेतों में बाढ़ के दौरान जमा हुई रेत और मिट्टी को अपनी मर्जी से हटा कर बेच सकते हैं। 

यह फैसला किसानों के लिए दोहरी राहत लेकर आया है—एक ओर उन्हें अपनी जमीन फिर से खेती के योग्य बनाने का अवसर मिलेगा और दूसरी ओर वे रेत बेचकर आर्थिक रूप से कुछ नुकसान की भरपाई भी कर सकेंगे।

फसलों के लिए 20,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजा घोषणा

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बताया कि इस नीति से किसानों को किसी प्रकार की सरकारी अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। 

सरकार ने साफ किया है कि इस प्रक्रिया को माइनिंग नहीं माना जाएगा। इसके साथ ही बाढ़ में नष्ट हुई फसलों के लिए 20,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजा और मृतकों के परिवारों को 4 लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी जाएगी।

जिहदा खेत, ओहदी रेत नीति की खास बातें

  • खेतों में जमा रेत और मिट्टी को किसान अपनी आवश्यकता अनुसार निकालकर उपयोग या बिक्री कर सकते हैं।
  • इस प्रक्रिया के लिए किसी भी तरह का परमिट या रॉयल्टी शुल्क नहीं देना होगा।
  • केवल बाढ़ से आई रेत हटाने की अनुमति होगी, खेत की खुदाई कर अवैध खनन करने वालों पर कार्रवाई होगी।
  • नीति का लाभ केवल बाढ़ प्रभावित इलाकों में रहने वाले किसानों को ही मिलेगा।
  • जिले के डिप्टी कमिश्नर की देखरेख में प्रभावित खेतों की पहचान और कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी।

मालिक और काश्तकार दोनों को राहत

राज्य में बड़ी संख्या में किसान जमीन मालिक न होकर ठेके पर खेती करते हैं। इसको लेकर सवाल था कि रेत बेचने का अधिकार किसके पास होगा। 

इस पर खनन मंत्री बरिंदर गोयल ने स्पष्ट किया कि खेती कर रहे किसान को ही वास्तविक मालिक माना जाएगा। यानी ठेके पर खेती करने वाले किसानों को भी रेत हटाने और बेचने का अधिकार दिया गया है।

रेत बिक्री की समय सीमा और भविष्य

खनन विभाग के अनुसार किसान 31 दिसंबर तक अपने खेतों से रेत हटा सकते हैं और बेच सकते हैं। हालांकि, मंत्री ने यह भी संकेत दिया कि जरूरत पड़ने पर इस प्रक्रिया को आगे भी जारी रखा जा सकता है।

अतिरिक्त लाभ और महत्व

यह नीति न केवल किसानों के लिए आर्थिक सहारा बनेगी, बल्कि खेतों की उपजाऊ क्षमता को बहाल करने में भी मदद करेगी। बाढ़ के कारण खेतों पर मोटी परत में जमी रेत जमीन को खेती के लायक नहीं रहने देती। 

ऐसे में किसान रेत हटाकर दोबारा गेहूं, धान या सब्जियों जैसी फसलें बो पाएंगे। साथ ही रेत बेचने से उन्हें अतिरिक्त आमदनी होगी, जिससे वे बीज, खाद और अन्य खेती संबंधी खर्च पूरे कर सकेंगे।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की नीति पंजाब ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी एक मॉडल साबित हो सकती है, जहाँ बाढ़ प्रभावित किसान अक्सर लंबे समय तक आर्थिक संकट में फंसे रहते हैं।

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