एलोवेरा की खेती: कम खर्च में ज्यादा मुनाफे का बिज़नेस

By : Tractorbird Published on : 13-Aug-2025
एलोवेरा

एलोवेरा, जिसे संस्कृत में घृतकुमारी कहा जाता है, एक बहुपयोगी, रसीला पौधा है जो अधिकतर बिना तने या बहुत छोटे तने के रूप में पाया जाता है। 

इसकी लंबाई लगभग 60 से 100 सेंटीमीटर तक होती है और यह मुख्यतः निचले हिस्से से फैलकर नया विस्तार करता है। 

इसकी पत्तियाँ मोटी, मांसल और नुकीली होती हैं, जिनका रंग सामान्यतः हरा या स्लेटी-हरा होता है। कुछ किस्मों की पत्तियों पर सफेद धब्बे भी दिखते हैं।

एलोवेरा के औषधीय गुण

एलोवेरा को प्राकृतिक प्राथमिक उपचार का पौधा भी कहा जाता है, क्योंकि इसका जैल जलन, कटने-छिलने और सनबर्न जैसी समस्याओं में त्वरित राहत देता है। 

यह त्वचा को नमी देने वाला एक उत्कृष्ट प्राकृतिक मॉइस्चराइज़र है। यही कारण है कि यह सौंदर्य प्रसाधन और आयुर्वेदिक चिकित्सा उद्योगों में विशेष महत्व रखता है।

एलोवेरा की खेती क्यों करें?

  • एलोवेरा की खेती इन दिनों औषधीय और सजावटी उपयोग के कारण तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसकी पत्तियाँ पानी को संरक्षित रखती हैं, जिससे यह कम वर्षा और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में भी अच्छी तरह से पनपता है। 
  • हालांकि यह पाला या अत्यधिक ठंड को नहीं झेल सकता। यह सामान्यतः कीट-रहित होता है, लेकिन कभी-कभी एफिड्स, मीली बग और पत्ते चबाने वाले कीट नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसकी खेती के लिए तेज धूप, अच्छी जल निकासी वाली दोमट या बलुई मिट्टी की आवश्यकता होती है। 
  • सर्दियों में यह निष्क्रिय अवस्था में चला जाता है, इसलिए पानी कम देना चाहिए। बहुत ठंडे इलाकों में ग्रीनहाउस में इसकी रक्षा करना उचित होता है। भारत सहित अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, क्यूबा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इसका व्यवसायिक उत्पादन किया जा रहा है।

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उपयुक्त मिट्टी

एलोवेरा अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में उग सकता है, लेकिन इसकी सबसे अच्छी उपज तटीय रेतीली या दोमट मिट्टी में मिलती है। 

इसकी खेती के लिए 8.5 तक का पीएच स्तर अनुकूल होता है। जलभराव और बहुत क्षारीय मिट्टी से बचना चाहिए क्योंकि यह पौधे की वृद्धि में बाधा उत्पन्न कर सकती है।

जलवायु और वर्षा

मार्च से जून का समय एलोवेरा की रोपाई के लिए उपयुक्त होता है। यह पौधा शुष्क और आर्द्र दोनों ही प्रकार की जलवायु को सहन कर सकता है। 

इसे 35 से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। सूखे इलाकों में सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है।

खेत की तैयारी

खेती से पहले खेत की दो बार जुताई करनी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो जल निकासी की व्यवस्था के लिए नालियाँ बनाई जाएँ। इससे पानी के रुकने की समस्या नहीं होगी।

खाद और उर्वरक

प्रति एकड़ करीब 10 टन गोबर की सड़ी हुई खाद डालना लाभदायक रहता है। एलोवेरा कम उर्वरक में भी अच्छा उत्पादन देता है, लेकिन यदि खाद का प्रयोग करना हो तो केवल जैविक खादों का उपयोग करना चाहिए ताकि पौधे की गुणवत्ता बनी रहे।

प्रमुख किस्में

एलोवेरा की कुछ लोकप्रिय किस्में इस प्रकार हैं:

  •  IC 111271
  •  IC 111280
  •  IC 111269
  •  IC 111273
  •  L-2, L-5, L-9

बुवाई की विधि

  • एलोवेरा को सकर या राइजोम कटिंग द्वारा रोपा जाता है। लगभग 15–18 सेमी लंबी कटिंग को मिट्टी में इस तरह लगाया जाता है कि दो-तिहाई भाग मिट्टी के अंदर हो। 
  • पौधों की कतारों और पौधों के बीच 60 सेंटीमीटर की दूरी बनाए रखनी चाहिए। प्रति एकड़ लगभग 11,000 पौधे लगाए जा सकते हैं।

कटाई और उपज

रोपण के 8 से 10 महीनों बाद पहली कटाई की जा सकती है। पहले साल में एक एकड़ भूमि से लगभग 10 टन तक उत्पादन होता है, जो दूसरे वर्ष में 15–20% तक बढ़ सकता है।

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