रजनीगंधा, जिसे ट्यूबरोज़ (Tuberose) के नाम से भी जाना जाता है, एक अत्यंत सुगंधित फूल है। अपनी मनमोहक खुशबू और सुंदरता के कारण यह पुष्प बाजार में हमेशा अधिक मांग में रहता है।
इसे न केवल पूजा-पाठ और सजावट के लिए उपयोग किया जाता है, बल्कि इससे इत्र और परफ्यूम भी तैयार किए जाते हैं। इस कारण इसकी खेती किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय सिद्ध हो रही है। आइए, इसकी व्यावसायिक खेती से जुड़ी सभी जानकारी विस्तार से जानते हैं।
रजनीगंधा की किस्में मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं – सिंगल और डबल।
इनमें फूलों की पंखुड़ियाँ एक कतार में होती हैं। प्रमुख सिंगल किस्में हैं – कलकत्ता सिंगल, मेक्सिकन सिंगल, फुले रजनी, प्राज्वल, रजत रेखा, श्रृंगार, खाहिकुची सिंगल, हैदराबाद सिंगल, पुणे सिंगल और अर्का निरंतर। इन किस्मों से सुगंधित फूलों के साथ इत्र (कंक्रीट) का अच्छा उत्पादन लिया जाता है।
इनमें पंखुड़ियाँ दो या अधिक कतारों में होती हैं। प्रमुख डबल किस्में हैं – कलकत्ता डबल, हैदराबाद डबल, पर्ल डबल, स्वर्ण रेखा, सुवासिनी और वैभव। ये किस्में मुख्यतः सजावटी उपयोग और कट फ्लावर के रूप में लोकप्रिय हैं।
रजनीगंधा की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु सर्वोत्तम मानी जाती है। इसकी अच्छी वृद्धि के लिए 28°C से 30°C तक का तापमान आदर्श है।
यह पौधा गर्म और आर्द्र मौसम में बेहतर तरीके से पनपता है। अत्यधिक ठंड या पाले वाली जलवायु इसके लिए हानिकारक सिद्ध होती है।
इसकी खेती के लिए बलुई दोमट (loamy) और अच्छी जलनिकास वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए। भारी और जलभराव वाली मिट्टी में कंद सड़ने की संभावना अधिक रहती है, इसलिए खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होना आवश्यक है।
रजनीगंधा का प्रचार मुख्य रूप से बल्बों (Corms) के माध्यम से किया जाता है।
बल्बों को पूर्व फसल की खुदाई के लगभग 30 दिन बाद रोपना चाहिए। रोपण से पहले बल्बों को CCC (Chlormequat chloride) 5000 ppm (5 ग्राम/लीटर) के घोल में डुबोना लाभकारी होता है। इससे पौधे की अनावश्यक कद वृद्धि नियंत्रित होती है और फूलों की संख्या में वृद्धि होती है।
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फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा भूमि तैयारी के समय देनी चाहिए। नाइट्रोजन को तीन बराबर भागों में बाँटकर देना उचित है – एक भाग भूमि तैयारी के समय, दूसरा 60 दिन बाद और तीसरा 90 दिन बाद
फसल की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव जरूरी है। इसके लिए निम्नलिखित मिश्रण का उपयोग किया जाता है:
यह फोलियर स्प्रे पौधों की अच्छी वृद्धि और फूलों की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।
फूलों की संख्या और इत्र (कंक्रीट) उत्पादन बढ़ाने के लिए गिबरेलिक एसिड (GA₃) का उपयोग किया जाता है।
मात्रा : 50 से 100 ppm
छिड़काव का समय : रोपण के 40, 55 और 60 दिन बाद (कुल तीन बार)
रजनीगंधा की फसल की सामान्य अवधि लगभग 2 वर्ष तक होती है। यदि पौधों की सही देखभाल और पोषण किया जाए तो यह 3 वर्ष तक लाभप्रद रूप से उत्पादन देती है।
ढीले फूल और इत्र निर्माण हेतु:
सुबह 8 बजे से पहले खुले हुए फूलों को सावधानीपूर्वक तोड़ा जाता है।
फूलों की पूरी spike को नीचे से लगभग 4–6 सेमी ऊपर से काटा जाता है। बाजार में इसकी मांग बहुत अधिक होती है, विशेषकर सजावट और बुके निर्माण के लिए।
रजनीगंधा की खेती आज के समय में किसानों के लिए एक अत्यधिक लाभदायक व्यवसाय बन चुकी है। इसकी सुंदरता और मोहक सुगंध के कारण यह न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय पुष्प बाजारों में भी निरंतर मांग में रहती है।
यदि किसान वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाकर इसकी खेती करें तो प्रति हेक्टेयर लाखों रुपये की आय अर्जित कर सकते हैं। रजनीगंधा किसानों को न केवल फूलों से, बल्कि बल्बों, सुगंध तेल और कट फ्लावर के रूप में भी बेहतर आय का अवसर प्रदान करती है।