भारत में इलायची (Cardamom) को "मसालों की रानी" कहा जाता है। यह न सिर्फ स्वाद और सुगंध में बेमिसाल है बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।
इलायची दो प्रकार की होती है – छोटी इलायची (Green Cardamom) और बड़ी इलायची (large Cardamom)। इस लेख में हम आपको खासतौर पर बड़ी इलायची (Amomum subulatum) की खेती से जुड़े सभी पहलुओं की जानकारी देंगे।
बड़ी इलायची (Zingiberaceae परिवार) मुख्य रूप से सिक्किम, दार्जिलिंग, नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में उगाई जाती है। सिक्किम उत्पादन के मामले में अग्रणी राज्य है और घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार दोनों में बड़ी इलायची की सबसे अधिक आपूर्ति करता है। इसकी खेती किसानों के लिए एक लाभदायक बिजनेस विकल्प है, क्योंकि इसकी मांग सालभर बनी रहती है।
यह पौधा छायाप्रेमी होता है और स्वाभाविक रूप से उप-हिमालयी नम उपोष्णकटिबंधीय वनों में पनपता है।
बड़ी इलायची वाले क्षेत्रों में सालाना वर्षा 2000–3500 मिमी होती है, जो लगभग 200 दिनों में बिखरी रहती है।
यह ठंडे क्षेत्रों की निचली ऊँचाई और गर्म क्षेत्रों की ऊँची पहाड़ियों में बेहतर पनपती है।
औसत तापमान 6°C (सर्दियों में) से लेकर 30°C (गर्मियों में) तक उपयुक्त रहता है।
पौधे हल्की ठंड सहन कर सकते हैं लेकिन पाला और ओलावृष्टि इनके लिए नुकसानदेह है।
फूल आने के समय लगातार बारिश परागण करने वाले कीटों की गतिविधि को प्रभावित करती है, जिससे उत्पादन घट सकता है।
बड़ी इलायची की फसल सामान्यत: जंगल की उपजाऊ दोमट मिट्टी में अच्छी होती है।
मिट्टी का रंग भूरा–पीला से गहरा धूसर–भूरा तक हो सकता है।
मिट्टी की बनावट रेतीली, बलुई दोमट, सिल्टी दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी तक उपयुक्त है।
इसका pH स्तर 5.0 से 5.5 तक होना आदर्श है।
मिट्टी जैविक कार्बन (1% से अधिक) से भरपूर और नाइट्रोजन युक्त होनी चाहिए।
जल निकासी अच्छी होनी जरूरी है, क्योंकि जलभराव से पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं।
1. रैम्से (Ramsey) – ऊँचाई 1515 मीटर से अधिक वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त। छोटे कैप्सूल (25–40 बीज), अक्टूबर–नवंबर में कटाई।
2. रामला (Ramla) – गहरे गुलाबी कैप्सूल (30–40 बीज), अक्टूबर में कटाई।
3. सॉनी (Sawney) – मध्यम व उच्च ऊँचाई के लिए। बड़े कैप्सूल (35–50 बीज), सितंबर–अक्टूबर में कटाई।
4. वारलांगेय (Varlangey) – 1.5–2.5 मीटर ऊँचाई पर उगाई जाती है। कैप्सूल बड़े (50–70 बीज)।
5. सेरेमना (Seremna) – निचले क्षेत्रों के लिए। प्रति स्पाइक 10 कैप्सूल (65–70 बीज)।
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इलायची की खेती की तैयारी और बिजनेस मॉडल
खेती के लिए हल्की ढलान वाली और अच्छी जल निकासी वाली जमीन चुनें।
सबसे पहले झाड़ियाँ, खरपतवार और पुराने पौधों को हटा दें।
गड्ढे 30×30×30 सेमी के बनाकर उनमें 1–2 किग्रा गोबर खाद या कम्पोस्ट डालें।
गड्ढों की दूरी किस्म के अनुसार 1.45 से 1.8 मीटर रखें।
रोपाई मानसून के पहले यानी जून–जुलाई में करें।
इलायची की खेती एक बार शुरू करने पर 12–15 साल तक उत्पादन देती है, जिससे किसानों को लंबे समय तक मुनाफा होता है।
इलायची की रोपाई (Planting Method)
इलायची उत्पादन में पोषक प्रबंधन
प्रति पौधा साल में दो बार (अप्रैल–मई व अगस्त–सितंबर) 5 किग्रा गोबर खाद/कम्पोस्ट डालें।
नर्सरी और खेत में वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग उपज बढ़ाने में सहायक है।
रोपाई के समय जैविक खादों जैसे माइक्रो भू पावर, सुपर गोल्ड मैग्नीशियम, माइक्रो नीम आदि का प्रयोग लाभकारी है।
पौधों के आधार पर सूखी पत्तियाँ और जैविक अवशेष डालें।
इससे नमी संरक्षण और मिट्टी की उर्वरता दोनों में सुधार होता है।
ढलान वाली जमीन पर ऊपर की मिट्टी को नीचे लाकर समतल करना चाहिए।
इलायची की खेती में सिंचाई प्रबंधन
इलायची की खेती में खरपतवार नियंत्रण
बड़ी इलायची की खेती (Large Cardamom Farming) पूर्वोत्तर भारत के किसानों के लिए आय का बेहतरीन स्रोत है। इसकी लंबी अवधि तक चलने वाली फसल, स्थिर बाजार मांग और औषधीय महत्व इसे एक लाभकारी एग्री-बिजनेस बनाते हैं। उचित जलवायु, सही किस्म का चुनाव, पोषक तत्व प्रबंधन और सिंचाई–छाया संतुलन से किसान अधिक उपज और मुनाफा कमा सकते हैं।