भारत में गेहूं उत्पादन को बढ़ाने और किसानों की आय में सुधार लाने के उद्देश्य से देशभर के कृषि वैज्ञानिक लगातार नई–नई उन्नत किस्में विकसित कर रहे हैं। इन नई किस्मों का लक्ष्य केवल पैदावार बढ़ाना ही नहीं, बल्कि विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में अनुकूलता और रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बेहतर बनाना है। ऐसी ही एक उत्कृष्ट और नवीन किस्म है — “करण बोल्ड (DBW 377)”, जिसे भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल (ICAR-IIWBR Karnal) द्वारा विकसित किया गया है।
गेहूं किस्म DBW 377 (करण बोल्ड) को वर्ष 2024 में केंद्रीय उपसमिति (Central Sub-Committee on Crop Standards, Notification and Release of Varieties) द्वारा औपचारिक रूप से अनुमोदित किया गया।
यह किस्म विशेष रूप से मध्य भारत के सिंचित और अगेती बुआई क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी गई है।
इसे निम्नलिखित क्षेत्रों में लगाने की सिफारिश की गई है:
1. उच्च उपज क्षमता:
DBW 377 की उपज अन्य प्रसिद्ध किस्मों की तुलना में अधिक पाई गई है।
2. दाने का आकार और वजन:
इस किस्म के एक हजार दानों का वजन 48 ग्राम है, जो इसे "बोल्ड" दाने वाली श्रेणी में रखता है।
3. रोग प्रतिरोधकता:
DBW 377 में गेहूं के प्रमुख रोगों के प्रति अच्छी प्रतिरोधक क्षमता पाई गई है —
4. पोषण एवं गुणवत्ता गुणधर्म:
1. बीज उपचार
बुआई से पूर्व बीज को टेबुकोनाजोल 2% DS से 1 किलोग्राम प्रति क्विंटल बीज की दर से उपचारित करें।
यह प्रक्रिया फफूंदजनित रोगों से सुरक्षा प्रदान करती है और अंकुरण को बेहतर बनाती है।
2. बुआई का उपयुक्त समय
इस किस्म की बुआई 1 नवंबर से 10 नवंबर के बीच करें।
समय पर बुआई से पौधों की वृद्धि संतुलित रहती है और उत्पादन क्षमता अधिक प्राप्त होती है।
3. बीज दर
प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की सिफारिश की जाती है।
बीज की गहराई 4–5 सेंटीमीटर रखें ताकि अंकुरण समान रूप से हो।
4. उर्वरक प्रबंधन
बेहतर पैदावार के लिए 150% NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश) का उपयोग करें।
यह मात्रा पौधों की पोषण आवश्यकताओं को पूरा करती है और दाने भरने की प्रक्रिया को मजबूत बनाती है।
5. वृद्धि नियामक का उपयोग
अगेती बुआई में फसल को संतुलित रखने हेतु दो बार वृद्धि नियामक का छिड़काव करें —
क्लोरमक्वाट क्लोराइड (CCC) 0.2% + टेबुकोनाजोल 250 EC 0.1%
पहला छिड़काव पहली गाँठ आने पर, और दूसरा फ्लैग पत्ती के समय करें।