रबी सीजन में चना एक प्रमुख दलहनी फसल के रूप में किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी विकल्प है। यह न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है बल्कि कम लागत में अधिक लाभ दिलाने वाली फसल भी है।
तबीजी फार्म, अजमेर के उप निदेशक कृषि (शस्य) श्री मनोज कुमार शर्मा के अनुसार, वर्तमान समय चने की बुवाई के लिए अत्यंत उपयुक्त है। उन्होंने बताया कि यदि किसान वैज्ञानिक बुवाई पद्धति, मृदा उपचार (Soil Treatment) और बीजोपचार (Seed Treatment) अपनाएं, तो फसल की उत्पादकता में 25–40% तक वृद्धि संभव है।
चना अच्छी जल निकासी वाली, लवण एवं क्षार रहित दोमट या हल्की काली मिट्टी में उत्कृष्ट उपज देता है। भूमि की गहराई 20–25 सेंटीमीटर होनी चाहिए ताकि जड़ें गहराई तक जा सकें। हल्की वर्षा और ठंडी जलवायु इस फसल के लिए आदर्श होती है।
श्री शर्मा का कहना है कि किसान बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह जोतें, मिट्टी को भुरभुरा बनाएं, और सिंचाई व्यवस्था का ध्यान रखें। यदि भूमि तैयार करने के साथ ही मृदा उपचार भी कर लिया जाए तो फसल कई प्रकार के रोगों से सुरक्षित रहती है।
कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेन्द्र शर्मा के अनुसार, चना फसल में जड़ गलन (Root Rot), सूखा जड़ गलन (Dry Root Rot) और उकठा (Wilt) जैसे रोग आम होते हैं, जो उपज को 30–40% तक घटा सकते हैं।
इनसे बचाव के लिए बीजोपचार और भूमि उपचार सबसे प्रभावी उपाय हैं।
भूमि उपचार की विधि
बुवाई से पहले बीजों का उपचार नीचे दिए गए किसी एक विकल्प से करें:
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कृषि अनुसंधान अधिकारी (रसायन) डॉ. कमलेश चौधरी बताते हैं कि चना फसल की अधिक पैदावार के लिए संतुलित पोषण प्रबंधन (Balanced Nutrient Management) अत्यंत आवश्यक है।
बुवाई से पहले बीजों को तरल जैव उर्वरकों जैसे —
ये सूक्ष्मजीव नाइट्रोजन स्थिरीकरण और फॉस्फोरस घुलनशीलता बढ़ाकर पौधों को बेहतर पोषण प्रदान करते हैं।
कृषि अनुसंधान अधिकारी (शस्य) रामकरण जाट के अनुसार:
असिंचित क्षेत्रों के लिए:
10 किलो नाइट्रोजन (N) + 25 किलो फॉस्फोरस (P₂O₅) प्रति हेक्टेयर
सिंचित क्षेत्रों के लिए:
20 किलो नाइट्रोजन (N) + 40 किलो फॉस्फोरस (P₂O₅) प्रति हेक्टेयर
इन उर्वरकों को अंतिम जुताई के समय 12–15 सेंटीमीटर गहराई तक मिट्टी में मिलाना चाहिए।
चना की सिंचित फसल में प्रारंभिक 30 दिनों के भीतर खरपतवार तेजी से फैलते हैं। इन्हें नियंत्रण में रखने के लिए:
इनमें से किसी एक शाकनाशी को 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरंत बाद लेकिन अंकुरण से पहले छिड़काव करें।
इससे खेत लगभग 25–30 दिनों तक खरपतवार मुक्त रहता है और पौधों की वृद्धि समान रूप से होती है।
श्री शर्मा ने किसानों को यह भी सलाह दी कि कृषि रसायनों का उपयोग करते समय सुरक्षा उपकरणों — जैसे पूरे कपड़े, दस्ताने, मास्क और जूते — का अवश्य प्रयोग करें। इससे रसायनों के दुष्प्रभाव से स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।
यदि किसान बीजोपचार, भूमि उपचार, फसल चक्र, संतुलित पोषण और खरपतवार नियंत्रण जैसी उन्नत तकनीकों का पालन करें, तो वे प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल तक की उपज प्राप्त कर सकते हैं।
चना न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने वाली दलहनी फसल है, बल्कि यह किसानों को रबी सीजन में स्थिर और अधिक आमदनी का बेहतर विकल्प भी प्रदान करती है।