इस रबी सीजन चना उगाकर पाएं दोगुना मुनाफा

By : Tractorbird Published on : 23-Oct-2025
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रबी सीजन में चना एक प्रमुख दलहनी फसल के रूप में किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी विकल्प है। यह न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है बल्कि कम लागत में अधिक लाभ दिलाने वाली फसल भी है। 


तबीजी फार्म, अजमेर के उप निदेशक कृषि (शस्य) श्री मनोज कुमार शर्मा के अनुसार, वर्तमान समय चने की बुवाई के लिए अत्यंत उपयुक्त है। उन्होंने बताया कि यदि किसान वैज्ञानिक बुवाई पद्धति, मृदा उपचार (Soil Treatment) और बीजोपचार (Seed Treatment) अपनाएं, तो फसल की उत्पादकता में 25–40% तक वृद्धि संभव है।

चने की खेती के लिए उपयुक्त भूमि और जलवायु


चना अच्छी जल निकासी वाली, लवण एवं क्षार रहित दोमट या हल्की काली मिट्टी में उत्कृष्ट उपज देता है। भूमि की गहराई 20–25 सेंटीमीटर होनी चाहिए ताकि जड़ें गहराई तक जा सकें। हल्की वर्षा और ठंडी जलवायु इस फसल के लिए आदर्श होती है।


श्री शर्मा का कहना है कि किसान बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह जोतें, मिट्टी को भुरभुरा बनाएं, और सिंचाई व्यवस्था का ध्यान रखें। यदि भूमि तैयार करने के साथ ही मृदा उपचार भी कर लिया जाए तो फसल कई प्रकार के रोगों से सुरक्षित रहती है।


बीजोपचार और भूमि उपचार से बढ़ेगी उत्पादकता


कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेन्द्र शर्मा के अनुसार, चना फसल में जड़ गलन (Root Rot), सूखा जड़ गलन (Dry Root Rot) और उकठा (Wilt) जैसे रोग आम होते हैं, जो उपज को 30–40% तक घटा सकते हैं।

इनसे बचाव के लिए बीजोपचार और भूमि उपचार सबसे प्रभावी उपाय हैं।


भूमि उपचार की विधि

  • 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा को 100 किलो आर्द्र गोबर की खाद में मिलाएं।
  • मिश्रण को 10–15 दिनों तक छाया में रखें ताकि फफूंद कल्चर सक्रिय हो सके।
  • बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर इस मिश्रण को खेत की मिट्टी में मिलाएं।
  • इससे मिट्टी में रोगाणु नष्ट होते हैं और पौधों की जड़ें अधिक मजबूत बनती हैं।

बीजोपचार की विधि


बुवाई से पहले बीजों का उपचार नीचे दिए गए किसी एक विकल्प से करें:


  • कार्बेण्डाजिम 1 ग्राम + थाइरम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज, या
  • कार्बोक्सीन 37.5% + थाइरम 37.5% (2 ग्राम प्रति किलो बीज), या
  • ट्राईकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो बीज
  • ससे बीज रोगमुक्त रहते हैं और अंकुरण दर 85–90% तक बढ़ जाती है।

कीट नियंत्रण के लिए उन्नत उपाय


  • सहायक कृषि अनुसंधान अधिकारी (कीट) डॉ. सुरेश चौधरी के अनुसार, चने की फसल में दीमक, कटवर्म और वायरवर्म जैसे कीटों का प्रकोप आम है।
  • अंतिम जुताई से पूर्व क्यूनालफॉस 1.5% चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में भुरकाव करें।
  • बीज उपचार के लिए फिप्रोनिल 5 एस.सी. (10 मि.ली./किलो बीज) या इमीडाक्लोप्रिड 600 एफ.एस. (5 मि.ली./किलो बीज) का उपयोग करें।
  • इन उपचारों से फसल की शुरुआती अवस्था में कीटों से प्रभावी सुरक्षा मिलती है और पौधे स्वस्थ रहते हैं।

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खाद एवं उर्वरक प्रबंधन: संतुलित पोषण से बढ़ेगी उपज


कृषि अनुसंधान अधिकारी (रसायन) डॉ. कमलेश चौधरी बताते हैं कि चना फसल की अधिक पैदावार के लिए संतुलित पोषण प्रबंधन (Balanced Nutrient Management) अत्यंत आवश्यक है।

जैव उर्वरक उपचार

बुवाई से पहले बीजों को तरल जैव उर्वरकों जैसे —


  • राईजोबियम,
  • फॉस्फेट सॉल्युबिलाइजिंग बैक्टीरिया (PSB),
  • गंधक घोलक, और
  • जिंक घोलक
  • की 3–5 मिलीलीटर प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।

ये सूक्ष्मजीव नाइट्रोजन स्थिरीकरण और फॉस्फोरस घुलनशीलता बढ़ाकर पौधों को बेहतर पोषण प्रदान करते हैं।


रासायनिक उर्वरक की अनुशंसित मात्रा


कृषि अनुसंधान अधिकारी (शस्य) रामकरण जाट के अनुसार:

असिंचित क्षेत्रों के लिए:

 10 किलो नाइट्रोजन (N) + 25 किलो फॉस्फोरस (P₂O₅) प्रति हेक्टेयर

सिंचित क्षेत्रों के लिए:

20 किलो नाइट्रोजन (N) + 40 किलो फॉस्फोरस (P₂O₅) प्रति हेक्टेयर

इन उर्वरकों को अंतिम जुताई के समय 12–15 सेंटीमीटर गहराई तक मिट्टी में मिलाना चाहिए।


 खरपतवार नियंत्रण: फसल को दें प्रतिस्पर्धा-मुक्त वातावरण

चना की सिंचित फसल में प्रारंभिक 30 दिनों के भीतर खरपतवार तेजी से फैलते हैं। इन्हें नियंत्रण में रखने के लिए:


  • पेन्डीमिथेलीन 30 ई.सी. – 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर, या
  • पेन्डीमिथेलीन 38.7 सी.एस. – 1.9 लीटर प्रति हेक्टेयर

इनमें से किसी एक शाकनाशी को 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरंत बाद लेकिन अंकुरण से पहले छिड़काव करें।

इससे खेत लगभग 25–30 दिनों तक खरपतवार मुक्त रहता है और पौधों की वृद्धि समान रूप से होती है।


फसल सुरक्षा में किसानों के लिए सावधानियाँ


श्री शर्मा ने किसानों को यह भी सलाह दी कि कृषि रसायनों का उपयोग करते समय सुरक्षा उपकरणों — जैसे पूरे कपड़े, दस्ताने, मास्क और जूते — का अवश्य प्रयोग करें। इससे रसायनों के दुष्प्रभाव से स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।


वैज्ञानिक पद्धति से पाएं 20–25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज


यदि किसान बीजोपचार, भूमि उपचार, फसल चक्र, संतुलित पोषण और खरपतवार नियंत्रण जैसी उन्नत तकनीकों का पालन करें, तो वे प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल तक की उपज प्राप्त कर सकते हैं।


चना न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने वाली दलहनी फसल है, बल्कि यह किसानों को रबी सीजन में स्थिर और अधिक आमदनी का बेहतर विकल्प भी प्रदान करती है।

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