सूरजमुखी की खेती मुख्यतः खाद्य तेल के लिए की जाती है। चूँकि भारत को बड़ी मात्रा में खाद्य तेल आयात करना पड़ता है, इसलिए सूरजमुखी और सरसों जैसी तिलहनी फसलों पर सरकार भी विशेष ध्यान दे रही है।
सूरजमुखी की बुवाई आमतौर पर मार्च में की जाती है। बुवाई के समय खेत में भरपूर गोबर की खाद और नाइट्रोजन की मौजूदगी जरूरी होती है।
इस फूल को "सूरजमुखी" नाम इसलिए मिला क्योंकि इसका आकार सूरज जैसा होता है और यह सूरज की दिशा में घूमता है – यानी इसका मुख हमेशा सूरज की ओर रहता है।
यह फसल किसानों के लिए उपयोगी मानी जाती है, खासकर तब जब खेत सरसों, आलू या गेहूं जैसी फसलों से खाली हो जाते हैं। सूरजमुखी से जो तेल निकाला जाता है, वह स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।
इसे खरीफ, रबी और जायद – तीनों मौसमों में उगाया जा सकता है, लेकिन खरीफ के मौसम में इसमें रोग और कीटों का खतरा ज्यादा होता है। जायद में यह फसल बेहतर होती है – मोटे दाने और ज्यादा तेल की मात्रा के साथ।
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- मार्डन: 6–8 क्विंटल/हेक्टेयर उत्पादन, 80–90 दिन में तैयार, तेल की मात्रा 38–40%
- बी.एस.एच.–1: 10–15 क्विंटल/हेक्टेयर, 90–95 दिन, तेल की मात्रा 41%
- एम.एस.एच.: 15–18 क्विंटल/हेक्टेयर, 90–95 दिन, तेल की मात्रा 42–44%
- सूर्या: 8–10 क्विंटल/हेक्टेयर, 90–100 दिन, पिछली बुवाई के लिए उपयुक्त
- ई.सी. 68415: 8–10 क्विंटल/हेक्टेयर, 110–115 दिन, पिछली बुवाई के लिए उपयुक्त
सूरजमुखी पर दीमक और हरे फुदके जैसे कीटों का प्रकोप होता है। इनके लिए मिथाइल ओडिमेंटान (1 लीटर, 25 ईसी) या फेन्बलारेट (750 मिलीलीटर) को 900–1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
फूल जब पीले रंग के हो जाएं तभी तोड़ें और छाया में सुखाएं। बीज निकालने के लिए दो तरीके अपनाए जा सकते हैं – फूलों को आपस में रगड़ें या डंडे से पीटें। अधिक उत्पादन होने पर थ्रेसर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।