सूरजमुखी की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 14-Apr-2025
सूरजमुखी

सूरजमुखी की खेती मुख्यतः खाद्य तेल के लिए की जाती है। चूँकि भारत को बड़ी मात्रा में खाद्य तेल आयात करना पड़ता है, इसलिए सूरजमुखी और सरसों जैसी तिलहनी फसलों पर सरकार भी विशेष ध्यान दे रही है। 

सूरजमुखी की बुवाई आमतौर पर मार्च में की जाती है। बुवाई के समय खेत में भरपूर गोबर की खाद और नाइट्रोजन की मौजूदगी जरूरी होती है।

इस फूल को "सूरजमुखी" नाम इसलिए मिला क्योंकि इसका आकार सूरज जैसा होता है और यह सूरज की दिशा में घूमता है – यानी इसका मुख हमेशा सूरज की ओर रहता है।

यह फसल किसानों के लिए उपयोगी मानी जाती है, खासकर तब जब खेत सरसों, आलू या गेहूं जैसी फसलों से खाली हो जाते हैं। सूरजमुखी से जो तेल निकाला जाता है, वह स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है। 

इसे खरीफ, रबी और जायद – तीनों मौसमों में उगाया जा सकता है, लेकिन खरीफ के मौसम में इसमें रोग और कीटों का खतरा ज्यादा होता है। जायद में यह फसल बेहतर होती है – मोटे दाने और ज्यादा तेल की मात्रा के साथ।

खेत की तैयारी

  • मार्च-अप्रैल में जब खेत खाली हो जाता है, तो उसमें पर्याप्त नमी नहीं होती। इसलिए पहले सूखे खेत में दो बार हैरों या कल्टीवेटर से जोताई करें। 
  • संभव हो तो गहरी जुताई करके मिट्टी को उलट-पलट दें। फिर उसमें पानी (पलेवा) देकर दो से तीन बार कल्टीवेटर चलाएं और पाटा लगाएं ताकि खेत समतल और नमीयुक्त हो जाए।

उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

  • सूरजमुखी के लिए सूखी जलवायु उपयुक्त होती है। इसकी बुवाई फरवरी के अंत से मार्च के दूसरे सप्ताह तक करनी चाहिए। फूल और बीज पकने के समय बारिश नुकसानदेह होती है। 
  • यह फसल किसी भी मिट्टी में उगाई जा सकती है, लेकिन दोमट या रेतीली भुरभुरी मिट्टी सबसे बेहतर रहती है। 
  • खेत में जल निकासी की व्यवस्था जरूरी है, क्योंकि पानी जमा होने से पौधे सड़ सकते हैं।

खाद और उर्वरक

  • खेत की मिट्टी का परीक्षण कराकर उसमें उचित मात्रा में उर्वरक डालें। सामान्यतः प्रति एकड़ 80 किलो नाइट्रोजन और 60 किलो फास्फोरस की आवश्यकता होती है। 
  • नाइट्रोजन खेत में बिखेरकर जुताई करें, जबकि फास्फोरस और पोटाश को बीज बोने के समय खुरों में डालें। अगर खेत में पहले आलू की फसल ली गई हो, तो खाद की मात्रा 25–30% कम की जा सकती है।

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बुवाई का समय और बीज की तैयारी

  • फरवरी से मार्च के दूसरे सप्ताह तक बुवाई करना सर्वोत्तम होता है, ताकि फसल जून के दूसरे सप्ताह तक तैयार होकर बारिश से पहले घर लाई जा सके। 
  • बीजों को बुवाई से 12 घंटे पहले पानी में भिगोकर फिर छाया में सुखा लें। 
  • बुवाई दोपहर बाद करें ताकि बीज ठंडी मिट्टी में अंकुरित हो सकें। गर्मी में ऐसा करना आवश्यक होता है क्योंकि मिट्टी में पर्याप्त नमी नहीं रहती।

सूरजमुखी की उन्नत किस्में

- मार्डन: 6–8 क्विंटल/हेक्टेयर उत्पादन, 80–90 दिन में तैयार, तेल की मात्रा 38–40%

- बी.एस.एच.–1: 10–15 क्विंटल/हेक्टेयर, 90–95 दिन, तेल की मात्रा 41%

- एम.एस.एच.: 15–18 क्विंटल/हेक्टेयर, 90–95 दिन, तेल की मात्रा 42–44%

- सूर्या: 8–10 क्विंटल/हेक्टेयर, 90–100 दिन, पिछली बुवाई के लिए उपयुक्त

- ई.सी. 68415: 8–10 क्विंटल/हेक्टेयर, 110–115 दिन, पिछली बुवाई के लिए उपयुक्त

कीट नियंत्रण

सूरजमुखी पर दीमक और हरे फुदके जैसे कीटों का प्रकोप होता है। इनके लिए मिथाइल ओडिमेंटान (1 लीटर, 25 ईसी) या फेन्बलारेट (750 मिलीलीटर) को 900–1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

कटाई और बीज निकालना

फूल जब पीले रंग के हो जाएं तभी तोड़ें और छाया में सुखाएं। बीज निकालने के लिए दो तरीके अपनाए जा सकते हैं – फूलों को आपस में रगड़ें या डंडे से पीटें। अधिक उत्पादन होने पर थ्रेसर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

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