बासमती धान की रोपाई में रखें इन बातों का ध्यान

By : Tractorbird Published on : 01-Aug-2025
बासमती

धान भारत में खाद्यान्न उत्पादन का एक प्रमुख स्त्रोत है और देश के करोड़ों किसानों की आजीविका इससे जुड़ी हुई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु सहित देश के अधिकांश राज्यों में धान की खेती की जाती है। 

चूंकि यह खरीफ मौसम की मुख्य फसल है, इसलिए इसकी बुवाई, देखभाल और कटाई की हर प्रक्रिया में वैज्ञानिक तरीके अपनाना अत्यंत आवश्यक है। 

यदि किसान धान की बुवाई से पूर्व खेत की सही तैयारी, उचित बीज चयन, बीजोपचार, नर्सरी प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण जैसी विधियों को अपनाते हैं, तो निश्चित रूप से उन्हें बंपर पैदावार प्राप्त हो सकती है।

इस वर्ष कृषि विभाग ने किसानों को धान की उपज में सुधार लाने के उद्देश्य से कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव और सावधानियाँ जारी की हैं। आइए इस विषय पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं:

1. खेत की वैज्ञानिक तैयारी: अच्छी फसल की नींव

धान की उच्च उपज के लिए खेत की प्रारंभिक तैयारी सबसे जरूरी चरण है। जब खेत की मिट्टी ठीक प्रकार से तैयार होती है, तो पौधों की जड़ें गहराई तक फैलती हैं और पोषक तत्वों को बेहतर ढंग से अवशोषित कर पाती हैं।

खेत की जुताई और समतलीकरण

  • गहरी जुताई करें ताकि पूर्व में फसल के बचे हुए अवशेष मिट्टी में मिल जाएं।
  • पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और इसके बाद दो बार देशी हल या रोटावेटर से जुताई करें।
  • मिट्टी को भुरभुरी और समतल करने के लिए पाटा लगाएं जिससे जल का निकास ठीक से हो।

खाद और पोषक तत्वों की पूर्ति

  • एक कट्ठा (करीब 3 डिसमिल या 121 वर्ग मीटर) भूमि के लिए 1.5 किलोग्राम DAP (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) तथा 2 किलोग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश (MOP) डालना चाहिए।
  • साथ ही, 10 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट, 2–3 किलोग्राम नीम की खली, और सड़ी गोबर की खाद मिलाने से मिट्टी की जैविक गुणवत्ता में सुधार होता है।

खेत में बेड तैयार करना

खेत समतल करने के बाद उसमें 1-1.5 फीट चौड़ी और 10-12 फीट लंबी क्यारियाँ बनाएं। ये बेड बीजों की अंकुरण के लिए उपयुक्त रहती हैं और जल निकासी भी ठीक रहती है।

2. बीज का उपचार: रोगमुक्त और तेज अंकुरण के लिए ज़रूरी कदम

धान की फसल में लगने वाली कई बीमारियाँ और कीट बीजों के माध्यम से ही खेत में फैलते हैं। इसलिए बीज का उपचार (Seed Treatment) करना अत्यंत आवश्यक होता है।

फफूंदनाशक और जीवाणुनाशक से उपचार

30 किलोग्राम धान बीज को 100 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन को 15–20 लीटर पानी में घोलकर 5–6 घंटे तक भिगोएँ।

यह मिश्रण बीजों को फफूंद और बैक्टीरिया जनित रोगों से बचाता है और अंकुरण दर को बढ़ाता है।

कीटनाशक से सुरक्षा

भिगोने के बाद बीजों को सूखने से पहले 250 मिलीलीटर क्लोरपाइरिफॉस (20%) घोल का हल्का छिड़काव करें। यह प्रक्रिया बीजों को कीटों से सुरक्षा प्रदान करती है।

सही सुखाने का तरीका


उपचारित बीजों को छायादार स्थान पर प्लास्टिक शीट पर फैलाकर सुखाएं और गीले बोरे से ढकें। इससे नमी बनी रहती है और अंकुरण के लिए अनुकूल वातावरण मिलता है।

3. नर्सरी प्रबंधन: मजबूत पौध के लिए कारगर तकनीक

बुवाई की विधि

बीज को उगाने के लिए तैयार क्यारियों में समान दूरी पर छिड़काव करें और ऊपर से हल्की मिट्टी या गोबर की खाद की परत दें।

क्यारियों में उचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे अतिरिक्त पानी एकत्र न हो।

जल प्रबंधन

बीज बोने के बाद हल्की सिंचाई करें और फिर 3–4 दिनों तक जलभराव न होने दें।

अंकुरण के बाद पौधों को सप्ताह में 2 बार पानी दें।

कीट व रोग नियंत्रण

प्रारंभिक अवस्था में नीम आधारित जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करें।

नर्सरी में यदि किसी भी प्रकार की बीमारी या पीले पत्ते दिखाई दें तो कृषि विशेषज्ञ की सलाह लें।

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4. खरपतवार नियंत्रण: पोषक तत्वों की बर्बादी से बचाव

धान की नर्सरी या मुख्य खेत में खरपतवार पौधों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और उनके पोषक तत्वों को चुरा लेते हैं।

पूर्व-उद्भेदन शाकनाशी का प्रयोग

पाइराजोसल्फ्यूरान ईथाइल नामक घुलनशील शाकनाशी को पानी में घोलकर बालू में मिलाएं और बुवाई से पहले खेत में छिड़क दें।

यह उपाय खरपतवारों के अंकुरण को रोकता है और फसल को स्वच्छ पोषण देने में सहायक होता है।

जैविक उपाय

वर्मी वॉश और नीम तेल का भी उपयोग किया जा सकता है जो पर्यावरण अनुकूल हैं और मिट्टी की गुणवत्ता को नुकसान नहीं पहुंचाते।

5. राज्य सरकार और केंद्र सरकार की मदद

कई बार प्राकृतिक आपदाओं, कीट प्रकोप या अन्य कारणों से फसल को नुकसान हो जाता है। ऐसे में सरकार किसानों को राहत देने के लिए अनेक योजनाएँ चला रही है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)

यह योजना किसानों को प्राकृतिक आपदाओं, कीटों या बीमारियों से फसल क्षति होने पर बीमा कवर प्रदान करती है।

किसान बहुत कम प्रीमियम पर अपनी खरीफ और रबी फसलों का बीमा कर सकते हैं।

कृषि यंत्रीकरण योजना

बुवाई, कटाई, सिंचाई और अन्य कार्यों के लिए कृषि यंत्रों पर सब्सिडी मिलती है।

किसान [agridarshan.up.gov.in](http://agridarshan.up.gov.in) जैसे पोर्टल पर आवेदन कर सकते हैं।

मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड योजना

इस योजना के अंतर्गत किसानों को उनकी मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार पोषक तत्वों की सिफारिश की जाती है जिससे उर्वरकों का संतुलित उपयोग होता है।

6. बुवाई का सही समय और विधि

धान की बुवाई का समय क्षेत्र विशेष और धान की किस्म पर निर्भर करता है। आमतौर पर उत्तर भारत में जून के अंत से जुलाई तक बुवाई की जाती है, जबकि पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में यह अवधि भिन्न हो सकती है।

रोपाई विधि

20x10 सेमी की दूरी पर रोपाई करें, जिससे पौधों को पर्याप्त स्थान और प्रकाश मिले।

एक स्थान पर 2 पौध ही लगाएं जिससे वे मजबूत बन सकें।

7. धान की प्रमुख किस्में और उनकी विशेषताएं

किसानों को अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार उपयुक्त किस्मों का चयन करना चाहिए। कुछ प्रमुख उच्च उत्पादन वाली किस्में:

  • | किस्म का नाम          | विशेषताएं 
  • | MTU-1010          अधिक उपज, मध्यम समय में पकने वाली
  • | Swarna            | रोग प्रतिरोधी, 135–140 दिन में तैयार 
  • | IR-64             | अच्छी गुणवत्ता वाला चावल, जल्दी तैयार
  • | Pusa Basmati 1121 | सुगंधित, निर्यात के लिए उपयुक्त
  • | Sahbhagi Dhan     | सूखा सहनशील, कम वर्षा क्षेत्रों के लिए उपयुक्त

8. अतिरिक्त सुझाव: फसल प्रबंधन को और बेहतर कैसे बनाएं?

  •  साफ़-सफाई बनाए रखें – खेत में बचे पुराने पौधों और घास को हटाएं।
  •  मौसम की जानकारी पर नजर रखें – बुवाई से पहले और कटाई के समय मौसम की जानकारी ज़रूर लें।
  •  फसल चक्र अपनाएं – लगातार एक ही फसल न लें, फसल चक्र से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है।
  •  ग्राम कृषि सेवक और कृषि वैज्ञानिकों से नियमित सलाह लें।

निष्कर्ष 

धान की खेती में आधुनिक और वैज्ञानिक विधियों का उपयोग कर किसान ना केवल उत्पादन बढ़ा सकते हैं बल्कि गुणवत्तापूर्ण फसल तैयार कर बाज़ार में अच्छा मूल्य भी प्राप्त कर सकते हैं। 

खेत की अच्छी तैयारी, उचित बीजोपचार, नर्सरी प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण और समय पर सिंचाई, इन सभी पर ध्यान देकर बंपर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। 

साथ ही, सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर जोखिम को भी कम किया जा सकता है। कृषि विभाग द्वारा सुझाई गई इन विधियों को अपनाकर किसान आत्मनिर्भर और समृद्ध बन सकते हैं।

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