धान भारत में खाद्यान्न उत्पादन का एक प्रमुख स्त्रोत है और देश के करोड़ों किसानों की आजीविका इससे जुड़ी हुई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु सहित देश के अधिकांश राज्यों में धान की खेती की जाती है।
चूंकि यह खरीफ मौसम की मुख्य फसल है, इसलिए इसकी बुवाई, देखभाल और कटाई की हर प्रक्रिया में वैज्ञानिक तरीके अपनाना अत्यंत आवश्यक है।
यदि किसान धान की बुवाई से पूर्व खेत की सही तैयारी, उचित बीज चयन, बीजोपचार, नर्सरी प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण जैसी विधियों को अपनाते हैं, तो निश्चित रूप से उन्हें बंपर पैदावार प्राप्त हो सकती है।
इस वर्ष कृषि विभाग ने किसानों को धान की उपज में सुधार लाने के उद्देश्य से कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव और सावधानियाँ जारी की हैं। आइए इस विषय पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं:
धान की उच्च उपज के लिए खेत की प्रारंभिक तैयारी सबसे जरूरी चरण है। जब खेत की मिट्टी ठीक प्रकार से तैयार होती है, तो पौधों की जड़ें गहराई तक फैलती हैं और पोषक तत्वों को बेहतर ढंग से अवशोषित कर पाती हैं।
खेत समतल करने के बाद उसमें 1-1.5 फीट चौड़ी और 10-12 फीट लंबी क्यारियाँ बनाएं। ये बेड बीजों की अंकुरण के लिए उपयुक्त रहती हैं और जल निकासी भी ठीक रहती है।
धान की फसल में लगने वाली कई बीमारियाँ और कीट बीजों के माध्यम से ही खेत में फैलते हैं। इसलिए बीज का उपचार (Seed Treatment) करना अत्यंत आवश्यक होता है।
30 किलोग्राम धान बीज को 100 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन को 15–20 लीटर पानी में घोलकर 5–6 घंटे तक भिगोएँ।
यह मिश्रण बीजों को फफूंद और बैक्टीरिया जनित रोगों से बचाता है और अंकुरण दर को बढ़ाता है।
भिगोने के बाद बीजों को सूखने से पहले 250 मिलीलीटर क्लोरपाइरिफॉस (20%) घोल का हल्का छिड़काव करें। यह प्रक्रिया बीजों को कीटों से सुरक्षा प्रदान करती है।
उपचारित बीजों को छायादार स्थान पर प्लास्टिक शीट पर फैलाकर सुखाएं और गीले बोरे से ढकें। इससे नमी बनी रहती है और अंकुरण के लिए अनुकूल वातावरण मिलता है।
बीज को उगाने के लिए तैयार क्यारियों में समान दूरी पर छिड़काव करें और ऊपर से हल्की मिट्टी या गोबर की खाद की परत दें।
क्यारियों में उचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे अतिरिक्त पानी एकत्र न हो।
बीज बोने के बाद हल्की सिंचाई करें और फिर 3–4 दिनों तक जलभराव न होने दें।
अंकुरण के बाद पौधों को सप्ताह में 2 बार पानी दें।
प्रारंभिक अवस्था में नीम आधारित जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करें।
नर्सरी में यदि किसी भी प्रकार की बीमारी या पीले पत्ते दिखाई दें तो कृषि विशेषज्ञ की सलाह लें।
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धान की नर्सरी या मुख्य खेत में खरपतवार पौधों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और उनके पोषक तत्वों को चुरा लेते हैं।
पाइराजोसल्फ्यूरान ईथाइल नामक घुलनशील शाकनाशी को पानी में घोलकर बालू में मिलाएं और बुवाई से पहले खेत में छिड़क दें।
यह उपाय खरपतवारों के अंकुरण को रोकता है और फसल को स्वच्छ पोषण देने में सहायक होता है।
वर्मी वॉश और नीम तेल का भी उपयोग किया जा सकता है जो पर्यावरण अनुकूल हैं और मिट्टी की गुणवत्ता को नुकसान नहीं पहुंचाते।
कई बार प्राकृतिक आपदाओं, कीट प्रकोप या अन्य कारणों से फसल को नुकसान हो जाता है। ऐसे में सरकार किसानों को राहत देने के लिए अनेक योजनाएँ चला रही है।
यह योजना किसानों को प्राकृतिक आपदाओं, कीटों या बीमारियों से फसल क्षति होने पर बीमा कवर प्रदान करती है।
किसान बहुत कम प्रीमियम पर अपनी खरीफ और रबी फसलों का बीमा कर सकते हैं।
बुवाई, कटाई, सिंचाई और अन्य कार्यों के लिए कृषि यंत्रों पर सब्सिडी मिलती है।
किसान [agridarshan.up.gov.in](http://agridarshan.up.gov.in) जैसे पोर्टल पर आवेदन कर सकते हैं।
इस योजना के अंतर्गत किसानों को उनकी मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार पोषक तत्वों की सिफारिश की जाती है जिससे उर्वरकों का संतुलित उपयोग होता है।
धान की बुवाई का समय क्षेत्र विशेष और धान की किस्म पर निर्भर करता है। आमतौर पर उत्तर भारत में जून के अंत से जुलाई तक बुवाई की जाती है, जबकि पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में यह अवधि भिन्न हो सकती है।
20x10 सेमी की दूरी पर रोपाई करें, जिससे पौधों को पर्याप्त स्थान और प्रकाश मिले।
एक स्थान पर 2 पौध ही लगाएं जिससे वे मजबूत बन सकें।
किसानों को अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार उपयुक्त किस्मों का चयन करना चाहिए। कुछ प्रमुख उच्च उत्पादन वाली किस्में:
धान की खेती में आधुनिक और वैज्ञानिक विधियों का उपयोग कर किसान ना केवल उत्पादन बढ़ा सकते हैं बल्कि गुणवत्तापूर्ण फसल तैयार कर बाज़ार में अच्छा मूल्य भी प्राप्त कर सकते हैं।
खेत की अच्छी तैयारी, उचित बीजोपचार, नर्सरी प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण और समय पर सिंचाई, इन सभी पर ध्यान देकर बंपर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
साथ ही, सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर जोखिम को भी कम किया जा सकता है। कृषि विभाग द्वारा सुझाई गई इन विधियों को अपनाकर किसान आत्मनिर्भर और समृद्ध बन सकते हैं।