शंख पुष्पी एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जिसे औषधीय फसल के रूप में उगाया जाता है। यह पौधा मुख्य रूप से एक वर्षीय होता है और गर्म जलवायु में इसकी अच्छी वृद्धि होती है।
इसका उपयोग विभिन्न प्रकार की मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों के उपचार में किया जाता है, जैसे कि याददाश्त बढ़ाना, चिंता व अवसाद को कम करना, और तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाना। भारत में इसकी खेती विशेष रूप से औषधीय पौधों की मांग को देखते हुए कई क्षेत्रों में की जाती है।
शंख पुष्पी की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। इसे गर्म और आर्द्र स्थानों की आवश्यकता होती है।
इस पौधे को वर्ष भर में 350 से 400 सेंटीमीटर तक की संतुलित वर्षा की आवश्यकता होती है। लगातार नमी की कमी इस पौधे की वृद्धि को प्रभावित करती है, इसलिए विशेष रूप से फूल आने की अवस्था तक नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। सूखे की स्थिति में पौधे की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
इस पौधे की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है, जिसका पीएच स्तर 5.5 से 7.0 के बीच हो। मिट्टी में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि शंख पुष्पी जलभराव को सहन नहीं कर सकता।
भारी, चिकनी अथवा पानी रोकने वाली मिट्टी इस फसल के लिए हानिकारक होती है। खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को बारीक ढेलेदार बनाना चाहिए और 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए।
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प्राकृतिक रूप से उपचारित प्रकंदों को वर्षा ऋतु में नालियों में 6-8 सेमी की गहराई में, पौधे से पौधे की दूरी 20-30 सेमी रखते हुए लगाया जाता है।
निकट दूरी पर रोपण करने से परागण की संभावना बढ़ती है और फल बनने की दर में सुधार होता है। औसतन एक एकड़ क्षेत्र के लिए लगभग 600 किलोग्राम प्रकंदों की आवश्यकता होती है, जिससे लगभग 50,000 से 55,000 पौधों की घनता प्राप्त होती है।
शंख पुष्पी की खेती में शुरुआत में नियमित सिंचाई आवश्यक होती है, विशेषकर अंकुरण के समय। प्रारंभिक अवस्था में हर 4 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए और बाद में यह अंतराल 15 दिन किया जा सकता है।
एक पौधे को प्रतिदिन औसतन 5 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। फूल आने के बाद सिंचाई बंद कर दी जाती है। हाल के वर्षों में बाढ़ सिंचाई के स्थान पर ड्रिप सिंचाई प्रणाली अधिक प्रचलित हो रही है, जिससे जल की बचत होती है और पौधे की जड़ों तक नमी बराबर पहुँचती है।
शंख पुष्पी की खेती औषधीय दृष्टिकोण से अत्यंत लाभदायक है। इसकी मांग आयुर्वेदिक उद्योगों और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में तेजी से बढ़ रही है।
यदि इसे वैज्ञानिक तरीके से किया जाए, तो यह किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बन सकता है। उचित जलवायु, उपयुक्त मिट्टी, सही रोपण तकनीक और संतुलित खाद एवं सिंचाई प्रबंधन से इसकी बेहतर उपज प्राप्त की जा सकती है।