नारियल की किस्में: लंबी, बौनी और संकर किस्मों की विस्तृत जानकारी

By : Tractorbird Published on : 28-Jul-2025
नारियल

नारियल (Cocos nucifera) को "कल्पवृक्ष" भी कहा जाता है क्योंकि इसका हर हिस्सा किसी न किसी रूप में उपयोगी होता है। यह एक बहुवर्षीय पाम प्रजाति है जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है। 

नारियल भारत के दक्षिणी राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसकी खेती की सफलता में किस्म का चयन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

नारियल की किस्में? 

नारियल की मूलतः दो प्रमुख किस्में होती हैं:

1. लंबी किस्में (Tall Varieties)

2. बौनी किस्में (Dwarf Varieties)

इसके अलावा, इन दोनों के बीच संकर किस्में (Hybrid Varieties) भी विकसित की गई हैं जो उत्पादन, गुणवत्ता और जल्दी फलने के लिए प्रसिद्ध हैं।

1. लंबी किस्में (Tall Varieties)

मुख्य विशेषताएँ:

  • ये किस्में आमतौर पर 80–90 वर्षों तक जीवित रहती हैं।
  • यह किस्म मिट्टी की विविधता को सहन करने में सक्षम होती है — चाहे वह रेतीली हो, लाल दोमट हो या लेटराइट मिट्टी।
  • यह समुद्र तल से 3000 फीट तक की ऊँचाई पर भी अच्छी तरह पनपती है।
  • लम्बी किस्में रोगों और कीटों के प्रति अधिक सहनशील होती हैं।
  • वृक्ष की औसत ऊँचाई 15 से 18 मीटर या उससे अधिक होती है।
  • ये किस्में रोपण के 8–10 वर्षों के बाद फल देना शुरू करती हैं।
  • फलों का आकार मध्यम से बड़ा और आकार गोल से लंबवत तक होता है।
  • फलों के रंग – हरा, पीला, नारंगी और भूरे रंग के विभिन्न शेड्स में पाए जाते हैं।
  • औसतन 6000 नारियल से एक टन कोप्रा प्राप्त होता है।

लंबी किस्मों की सूची:

1. वेस्ट कोस्ट टॉल (WCT)

  • भारत में सबसे अधिक प्रचलित किस्म
  • अच्छे कोप्रा और तेल उत्पादन के लिए जानी जाती है
  • अच्छी वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त

2. ईस्ट कोस्ट टॉल (ECT)

  •  दक्षिण भारत के पूर्वी तटों में उगाई जाती है
  •  मध्यम से बड़ी मात्रा में उत्पादन
  • मीठा नारियल पानी देने वाली किस्म

3. चंद्रकल्प या लक्षद्वीप ऑर्डिनरी (LCT)

  • अच्छे तेल और कोप्रा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध
  • समुद्र तटीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त

4. फिलीपींस ऑर्डिनरी (केराचंद्रा)

  • विदेशी मूल की किस्म
  • बड़े आकार के फल
  • तेल की अच्छी गुणवत्ता

5. वीपीएम – 3 (अंडमान ऑर्डिनरी)

  • जलवायु सहनशीलता में बेहतर
  • अच्छी पैदावार

6. अलीयार नगर 1

  • तमिलनाडु के लिए उपयुक्त
  • उच्च उत्पादकता

7. टिपटूर टॉल

  • कर्नाटक में प्रमुख रूप से उगाई जाती है। 
  • सूखे क्षेत्रों में सहनशील

8. केरा सागरा (सेशेल्स)

  • बड़ी और भारी गिरी वाले फल
  • तेल उत्पादन हेतु उपयुक्त

राज्यवार उपयुक्त लंबी किस्में:

तमिलनाडु:

WCT, ECT, LCT, VPM-3, अलीयार नगर 1, केराचंद्रा

केरल:

WCT, LCT, केराचंद्रा, VPM-3, केरा सागरा

कर्नाटक:

WCT, टिपटूर टॉल, LCT, VPM-3, केराचंद्रा

ये भी पढ़ें: किसानों के लिए सुनहरा अवसर: नारियल पौधों पर भारी सब्सिडी के कारण लाभकारी होगी खेती

2. बौनी किस्में (Dwarf Varieties)
मुख्य विशेषताएँ:

  • वक्ष की ऊँचाई केवल 5 से 7 मीटर होती है।
  • तीसरे वर्ष से फूल आना शुरू हो जाता है और 5वें से 7वें वर्ष में उपज देना शुरू करता है।
  • औसत जीवनकाल 40–50 वर्ष होता है।
  • सूखा सहन करने की क्षमता कम होती है।
  • छोटे आकार के गोल या अंडाकार फल
  • एक फल का औसत वजन लगभग 85 ग्राम होता है और इसमें 65% तेल की मात्रा होती है।
  • इन किस्मों से प्राप्त नारियल पानी पीने हेतु भी उपयुक्त होता है।

बौनी किस्मों की सूची:

1. चौघाट ऑरेंज ड्वार्फ (COD):

  • नारंगी रंग के फल
  • जलवायु परिवर्तन सहन करने की क्षमता कम
  • सुंदर आकार व उच्च जल मात्रा

2. चौघाट ग्रीन ड्वार्फ (CGD):

  • हरे रंग के नारियल
  • पानी के लिए अधिक उपयुक्त
  • तेल उत्पादन औसत

राज्यवार उपयुक्त बौनी किस्में:

तमिलनाडु: COD, CGD

केरल: COD, CGD

कर्नाटक: COD

बौनी किस्में आमतौर पर बड़े स्तर पर नारियल पानी के उत्पादन के लिए उगाई जाती हैं, जबकि लंबी किस्में कोप्रा और तेल उत्पादन हेतु उपयुक्त मानी जाती हैं।

3. संकर किस्में (Hybrid Varieties)

संकरण का महत्व:

संकर किस्में दो भिन्न किस्मों (लंबी और बौनी) को मिलाकर विकसित की जाती हैं ताकि उनके गुणों का सम्मिलन हो सके — जैसे जल्दी उपज, अधिक उपज, उच्च कोप्रा गुणवत्ता और बेहतर रोग प्रतिरोध।

संकरण के प्रकार:

  • T × D हाइब्रिड (लंबी × बौनी): लंबी किस्म को माता और बौनी को पिता के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • ये संकरण अधिक उपज और तेल देने में श्रेष्ठ होते हैं।
  • D × T हाइब्रिड (बौनी × लंबी): बौनी किस्म को माता और लंबी को पिता के रूप में लिया जाता है।
  • ये किस्में जल्दी फल देती हैं और छोटे कद की होती हैं।
  • इसके अतिरिक्त T × T (लंबी × लंबी) और D × D (बौनी × बौनी) भी विकसित की गई हैं।

संकर किस्मों की सूची:

1. केरसंकरा (WCT × COD) – जल्दी फलने वाली और उच्च उपज

2. चंद्रसंकरा (COD × WCT) – बौनी माता वाली, मध्यम कद की

3. चंद्रलक्ष (LCT × COD) – विशेष रूप से कोस्टल इलाकों के लिए

4. केरागंगा (WCT × GBGD) – बड़ी गिरी और पानीयुक्त

5. लक्षगंगा (LCT × GBGD) – अच्छी पैदावार

6. आनंदगंगा (ADOT × GBGD) – सुंदर वृक्ष और अच्छे तेल उत्पादन

7. केरस्री (WCT × MYD) – पीने के पानी और तेल दोनों के लिए

8. केरासौभाग्य (WCT × SSAT) – विशेष संकरण

9. VHC 1 (ECT × MGD) – व्यावसायिक स्तर पर उपयुक्त

10. VHC 2 (ECT × MYD) – पीले नारियल वाले फल

11. VHC 3 (ECT × MOD) – नारंगी रंग वाले मध्यम आकार के नारियल

संकर किस्मों की विशेषताएँ:

  • 4 से 6 वर्षों में उपज देना शुरू करती हैं।
  • औसतन 100 से 130 फल प्रति पेड़ प्रतिवर्ष।
  • फलों में कोप्रा की मात्रा अधिक (150–200 ग्राम प्रति फल)।
  • तेल की गुणवत्ता व मात्रा बेहतर।
  • वैज्ञानिक तरीके से विकसित की गई ये किस्में वाणिज्यिक किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी हैं।

 निष्कर्ष:

नारियल की खेती के लिए किस्म का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक है। यदि आपका लक्ष्य तेल उत्पादन है तो लंबी किस्में उपयुक्त हैं, जबकि अगर नारियल पानी प्राथमिक उत्पाद है तो बौनी या संकर किस्में अधिक उपयुक्त रहेंगी। संकर किस्में उन किसानों के लिए श्रेष्ठ विकल्प हैं जो जल्दी उपज और अधिक उत्पादन की चाह रखते हैं।

किस्म के चयन में स्थानीय जलवायु, मिट्टी का प्रकार, सिंचाई की सुविधा और बाजार की मांग को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए। 

सरकारी कृषि अनुसंधान केंद्रों द्वारा समय-समय पर नई किस्में और संकर विकसित की जाती हैं, जिन्हें अपनाकर किसान अपनी आय और उत्पादकता दोनों बढ़ा सकते हैं।

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