गमारी (सफेद सागौन) की व्यावसायिक खेती: एक लाभदायक औषधीय और वानिकी विकल्प

By : Tractorbird Published on : 24-Jul-2025
गमारी

गमारी, जिसे सफेद सागौन, खमेर, गमार या मेलिया डूबिया (Melia dubia) के नाम से जाना जाता है, एक तेजी से बढ़ने वाला बहुउपयोगी वृक्ष है। 

यह वृक्ष मध्य एशिया से लेकर पूरे भारतवर्ष में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है और अब व्यावसायिक रूप से भी इसकी खेती की जा रही है। इसका उपयोग औषधीय, वानिकी, निर्माण, फर्नीचर और पशुचारा उद्योगों में होता है।

यह वृक्ष मध्यम से बड़े आकार का होता है जिसकी ऊंचाई 30 मीटर तक और तना की परिधि 4.5 मीटर तक हो सकती है। इसके पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं और शाखाएं फैली हुई होती हैं, जिससे यह दिखने में भी आकर्षक होता है।

वनवर्धन एवं पर्यावरणीय गुण

  • प्रकाश सहनशीलता: यह वृक्ष उच्च प्रकाश सहनशील होता है, अतः खुली धूप में अच्छे से बढ़ता है।
  • सूखा सहनशीलता: सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में भी जीवित रह सकता है।
  • आग की संवेदनशीलता: यह आग के प्रति संवेदनशील होता है, अतः सूखे मौसम में अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता होती है।
  • गुल्मवन पुनरुत्पादन क्षमता: इसकी coppicing क्षमता अच्छी होती है, यानी कटने के बाद भी दोबारा नई शाखाएं विकसित होती हैं।

पुनरुत्पादन विधियाँ

गमारी का पौधारोपण प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों तरीकों से किया जा सकता है:

प्राकृतिक पुनरुत्पादन

  • बीज से उत्पादन
  • गुल्मवन विधि (Coppice shoots)
  • मूल चूषक (Root suckers)

कृत्रिम पुनरुत्पादन

  • बीज रोपण
  • ठूंठ रोपण (Stump Planting)
  • पूर्ण पौधा स्थानांतरण
  • कलम/वर्धी प्रजनन (Vegetative Propagation)

बीज संग्रहण और उपचार

पौधे सामान्यतः 3–4 वर्षों में पुष्प देना प्रारंभ करते हैं। पुष्पन का समय फरवरी से मार्च होता है, और फल मई-जून में परिपक्व होते हैं। 

बीजों को एकत्र कर गूदा अलग करना जरूरी होता है और फिर तेज धूप में सुखाया जाता है। सूखे बीजों को जूट के बोरों में संग्रहित करना चाहिए।

बीजों की अंकुरण क्षमता 90% तक हो सकती है, विशेषकर यदि वे ताजे हों।

नर्सरी तकनीक

  • बीजों को 7.5 × 7.5 सेमी. दूरी पर तथा 1 से 2.5 सेमी. गहराई में बेड्स पर बोया जाता है।
  • अंकुरण 10 से 15 दिनों में प्रारंभ हो जाता है।
  •  जब पौधे 15 सेमी. के हो जाएं तो उन्हें पॉलिथीन बैग में स्थानांतरित किया जाता है।

ये भी पढ़ें: औषधीय पौधों की खेती का भारत में महत्व

पौधरोपण विधियाँ

1. सीधे बीज बुवाई

  • चप्पा पद्धति में 0.3 वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाले चप्पे बनाकर उनमें बीज बोए जाते हैं।
  • प्रत्येक चप्पा 1.8 × 1.8 मीटर की दूरी पर होता है।
  • बुआई से एक माह पूर्व गड्ढे खोदकर उन्हें जैविक उर्वरक व मिट्टी से भरकर 7.5 सेमी. ऊपर उठा दिया जाता है।
  • प्रति हेक्टेयर 14 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

2. रेखीय बुवाई (Row planting)

इसमें पौधों के बीच 0.9 मीटर की दूरी रखी जाती है।

3. ठूंठ रोपण

एक वर्ष पुराने पौधों से ठूंठ काटकर जून माह में मानसून से पूर्व रोपण किया जाता है।

4. पूर्ण पौधा स्थानांतरण

यह सबसे विश्वसनीय विधि मानी जाती है जिसमें जड़ों के साथ मिट्टी का गोला बनाकर रोपण किया जाता है।

इसकी सफलता दर 90–95% तक होती है।

5. वर्धी प्रजनन (Vegetative Propagation)

  • जबलपुर स्थित वन अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित यह विधि कटिंग और टिशू कल्चर दोनों पर आधारित है।
  • टिशू कल्चर में एमएस मीडिया + BA व IBA संयोजन का उपयोग किया जाता है।
  • यह विधि बड़े स्तर पर क्लोनिंग के लिए उपयुक्त है।

चक्रण अवधि (Rotation Period)

गमारी एक तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है:

  • ईंधन लकड़ी के लिए – 5 से 10 वर्षों का चक्रण
  • लुग्दी काष्ठ – 6 वर्ष
  • फर्नीचर व शानवुड – 10 वर्ष

10 वर्षों वाले चक्रण में:

  •  5वें वर्ष में पहली thinning (50%)
  •  7वें वर्ष में दूसरी thinning (शेष 50%) की जाती है।

आर्थिक पक्ष (आर्थिकी)

  • गमारी की वृद्धि दर असाधारण होती है।
  • उपजाऊ भूमि में 5 वर्षों में 20 मीटर की ऊंचाई और 60 सेमी. व्यास तक विकास संभव है।
  • सामान्य भूमि में 12 वर्षों में प्रति हेक्टेयर 210 घन मीटर तक लकड़ी उत्पादन होता है, जबकि जलोद मिट्टी में यह 10 वर्षों में 252 घन मीटर तक पहुंच सकता है।
  • यह उत्पादन क्षमता इसे अन्य परंपरागत वृक्षों जैसे नीम, शीशम, बबूल आदि से कहीं बेहतर बनाती है।

रोग एवं कीट नियंत्रण

प्रमुख रोग:

  • फ्यूजेरियम विल्ट (Fusarium solani)
  • डाईबैक – शीर्ष शाखाओं का सूखना
  • पर्ण धब्बा और पर्ण मरोड़

निवारण उपाय:

  • मिश्रित कृषि अपनाना
  • रोगी पौधों को हटाना
  • प्रतिरोधी क्लोन का चयन
  • उचित स्थल चयन
  • जैविक फफूंदनाशक या नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग

संरक्षण के उपाय

  • बकरी, गाय आदि पशु नवरोपित पौधों को खा सकते हैं, इसलिए घेराबंदी आवश्यक है।
  • मानसून में अधिक जलभराव से बचाना चाहिए।
  • मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करें।

गमारी के बहुउपयोगी फायदे

1. लकड़ी के उपयोग:

  • प्लाईवुड, फर्नीचर, माचिस, क्रेट बॉक्स, कृषि औजार
  • यह हल्की परंतु मजबूत लकड़ी होती है जिसे आसानी से मशीन से आकार दिया जा सकता है।

2. औषधीय गुण:

  • जड़ें बलवर्धक औषधि में प्रयोग होती हैं
  • पेट दर्द, रक्ताल्पता, कुष्ठ, मिर्गी, फोड़े, मलबन्ध जैसे रोगों में उपयोगी
  • दशमूल आयुर्वेदिक योग में शामिल
  • इसकी पत्तियों से पशुओं को चारा भी मिलता है

3. पर्यावरणीय लाभ:

  • कार्बन कैप्चर में सहायक
  • भूमि कटाव को रोकता है
  • जल संरक्षण में सहायक

सरकारी सहयोग और लाभ

  • कई राज्य सरकारें गमारी जैसी तेज़ी से बढ़ने वाली वाणिज्यिक वानिकी फसलों पर सब्सिडी या रियायती कृषि ऋण देती हैं।
  • यह फसल किसानों को गैर परंपरागत आय स्रोत देने में मदद करती है।

निष्कर्ष

गमारी या सफेद सागौन की खेती किसानों के लिए एक स्वर्णिम अवसर है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ परंपरागत कृषि लाभदायक नहीं रही। 

तेज़ी से बढ़ने वाली, रोग प्रतिरोधक, बहुउपयोगी और आय बढ़ाने वाली यह प्रजाति आने वाले समय में वानिकी और औषधीय उद्योग का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन सकती है।

Join TractorBird Whatsapp Group

Categories

Similar Posts