काचरी की खेती कैसे की जाती है? जानिए सम्पूर्ण जानकारी

By : Tractorbird Published on : 10-Jul-2025
काचरी

काचरी (Mango Melon), जिसे वैज्ञानिक नाम Cucumis pubescens से जाना जाता है, कुष्माण्ड परिवार की एक वार्षिक बेलधारी फसल है। 

यह देश के विभिन्न क्षेत्रों में कई स्थानीय नामों से पहचानी जाती है—जैसे काचरिया, काचर, मट-काचर, सैंद (छोटी/बड़ी), पथेया, गोरड़ी आदि। इसके पकने पर फल खट्टे-मीठे स्वाद के लिए प्रसिद्ध होते हैं और ये स्वादिष्ट, गुणकारी तथा पोषक तत्वों से भरे होते हैं।

फलों का उपयोग विभिन्न तरह की सब्जी, चटनी और अचार बनाने में होता है। इन्हें सुखाकर सालभर के लिए भंडारित किया जाता है। 

कुछ विधियों में फल बिना छिले सुखाते हैं, फिर इन्हें सब्जियों, अचारों या मसालेदार चूर्ण (पाउडर) में उपयोग किया जाता है। 

आधुनिक उन्नत किस्मों की वजह से किसानों को एक फसल में दो पैदावार, कम लागत और अधिक लाभ मिल रहा है, इसलिए व्यावसायिक खेती में इन किस्मों को अपनाना फायदेमंद है।

उपयुक्त जलवायु

काचरी एक गर्म-सीमांत और शुष्क जलवायु वाली फसल है, जो अधिक तापमान और कम बारिश (250–300 मिमी) में भी अच्छी पैदावार देती है। 

बीज अंकुरण के लिए 20–22 °C तथा पौधों की वृद्धि व फल जमाव के लिए 32–38 °C आदर्श होता है। उच्च तापमान (45–48 °C) वाले मरूस्थलीय क्षेत्रों में भी यह सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।

भूमि चयन

यह फसल लगभग किसी भी मिट्टी में उपज सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी उत्तम होती है। इसके लिए जल निकास का उचित इंतजाम जरूरी है और मिट्टी का pH 5.5–6.5 होना चाहिए।

खेत की तैयारी

मानसून के पहले—जून में—गहरी जुताई करें। इस दौरान गोबर की खाद मिलाकर दूसरी बार जुताई एवं पाटा करके खेत तैयार करें। 

कीट बचाव के लिए कीटनाशक छिड़काव पाटा लगाने से पहले करना चाहिए। कटाई के पश्चात नवम्बर–दिसंबर में अवशेष व खरपतवार मिट्टी में मिला दें, जिससे सर्दियों में वर्षा का जल जमा रहता है। ग्रीष्मकालीन बुवाई के लिए जनवरी–फरवरी में दो बार हैरो से जुताई और पाटा करवाएं।

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उन्नत किस्में

  • शुद्ध बीजों के आधार पर विकसित किस्मों में AHK‑119 और AHK‑200 को विशेष रूप से व्यावसायिक खेती के लिए सुझाया गया है:
  • AHK‑119: 1998 में विकसित। छोटे अण्डाकार फल (50–60 ग्राम), गहरे व खंडित धारियों वाले, छिलका कठोर; 68–70 दिन में तुड़ाई शुरू, 110–120 दिन तक जारी; प्रति पौधे 20–23 फल, 95–100 क्विंटल/हैक्टेयर उत्पादन।
  • AHK‑200: 1998 में विकसित। मध्यम बड़े, दीर्घाकार फल (100–120 ग्राम), हल्के पीले–केसरिया छिलके वाले; यहाँ खट्टे–मीठे, गुदेदार और रसदार फल आते हैं; तुड़ाई 65–70 दिन में शुरू, 100–110 दिन तक; प्रति पौधे 18–20 फल, 115–120 क्विंटल/हैक्टेयर उत्पादन।

बुवाई का समय

काचरी (Kachri) की वर्षा आधारित खेती के लिए बुवाई का सबसे उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के अंत तक होता है, जब वर्षा की पर्याप्त मात्रा प्राप्त हो रही हो। 

वहीं, सिंचित फसलों के लिए जुलाई और फरवरी माह में बुवाई करना सर्वाधिक लाभकारी सिद्ध होता है। 

बीज मात्रा एवं उपचार

उन्नत किस्मों हेतु 1–1.5 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। अंकुरण के लिए 1–2 घंटे पानी या नमकयुक्त गर्म पानी में बीज भिगोएँ। 

बीजों को गीली टाट की पट्टी में बाँधकर गोबर खाद की गड्ढों में एक रात रखकर फिर सि‍ंचित करें। बुवाई के पहले कैप्टान, थाइरम या बैवेस्टिन (2–3 ग्राम/किग्रा बीज) से उपचारित करें।

बुवाई विधि

  • वर्षा आधारित: छिटकाँव या कुड़ विधि।
  • सिंचित: कीड़ी, कुड़, या नाली विधि अपनायें तथा फव्वारा या बूंद-बूंद सिंचाई करें।
  • नाली विधि: 1.5–2 मीटर दूरी पर 50–60 सेमी चौड़ी नालियाँ बनाएं, इसमें खाद-उर्वरक मिलाकर 25 सेमी अंतर में 3–4 बीज बोएं। अंकुरण पर पौधों को छाँट लें। 30–35 दिनों में बेल फैलने दें और घास-फूस से पलवार करें।
  • कुड़ विधि: गहरे कुड़ बनाएँ और 3–4 बीज बोएँ। 2–4 पत्तियों पर पौधों को छाँटें, फिर नाली की तरह बनाकर सिंचाई करें।

खाद-उर्वरक

प्रति हैक्टेयर: देशी खाद 50 क्विंटल, वर्मीकम्पोस्ट 5 क्विंटल; DAP और SSP 100 किग्रा each; यूरिया व पोटाश 50 किग्रा each; कीटनाशी पाउडर 10 किग्रा।

यूरिया का आधा मात्रा: बुवाई के 18–25 दिन, 30–35 दिन और 45–50 दिन पर तीन भागों में छिड़काव करें। बूंद-बूंद सिंचाई में यूरिया 4–6 भागों में बांटकर दी जाती है। वर्षा आधारित खेती में यूरिया नुक्ता (20 ग्राम/लीटर) का 2% घोल छिड़कना लाभकारी है।

सिंचाई प्रबंधन

  • नाली विधि: 6–7 दिनों के अंतर पर।
  • बूँद-बूँद प्रणाली: शुरुआती दौर में 3–4 दिन अंतराल और फलन के समय 1.0–2.0 घंटे प्रति सत्र।
  •  सिंचाई शाम को करना बेहतर होता है।

खरपतवार नियंत्रण

12–25 दिन की अवस्था में निराई-गुड़ाई जरूरी है, साथ में 25–40 दिनों में अतिरिक्त निराई करें। बेल फैली जगह पर घास-फूस की पलवार से नमी बनी रहती है और जमीन ठंडी रहती है, जिससे उत्पादन अच्छा होता है।

उत्पादन (Yield)

उन्नत प्रबंधन से एक पौधे पर 20–23 फल लगते हुए 115–120 क्विंटल/हैक्टेयर तक की पैदावार संभव होती है।

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