गार्सिनिया की खेती: स्वास्थ्य, स्वाद और समृद्धि की ओर एक हरित पहल

By : Tractorbird Published on : 09-Jul-2025
गार्सिनिया

भारत में गार्सिनिया (जिसे कोकम भी कहा जाता है) की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। यह खेती अब छोटे किसानों से लेकर बड़े उद्यमियों तक के लिए एक आकर्षक व्यवसाय बनती जा रही है।

विशेषकर गार्सिनिया कैम्बोजिया जैसी किस्में अपने औषधीय लाभों और पाक उपयोगों के चलते घरेलू ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी काफी मांग में हैं। 

भारत की विविध जलवायु और समृद्ध जैव विविधता इसे गार्सिनिया उत्पादन के लिए आदर्श बनाते हैं, जिससे यह ग्रामीण आय को बढ़ाने और सतत कृषि को बढ़ावा देने का एक बेहतरीन साधन बन चुका है।

अनुकूल जलवायु परिस्थितियाँ

  • गार्सिनिया को गर्म और आर्द्र उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की आवश्यकता होती है। इसके लिए आदर्श तापमान 20°C से 30°C तक होता है, और अधिक आर्द्रता इसके विकास में सहायक होती है। 
  • यह पौधा अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में ही अच्छा प्रदर्शन करता है, क्योंकि अधिक नमी इसकी जड़ों को नुकसान पहुँचा सकती है। 
  • इसे समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जा सकता है और प्रतिदिन कम से कम 6 घंटे की सीधी धूप इसकी अच्छी वृद्धि के लिए जरूरी है।

मिट्टी का सही चयन

गार्सिनिया को दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है, जिसमें बालू, गाद और चिकनी मिट्टी का संतुलन हो। 

ऐसी मिट्टी जो जल धारण और जल निकासी दोनों में संतुलित हो, सबसे बेहतर होती है। pH मान 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए और जैविक पदार्थों की उपस्थिति भी लाभकारी होती है।

खेत की तैयारी

खेत को अच्छी तरह जोतकर भुरभुरी और साफ मिट्टी तैयार करें। पौधों के लिए 60x60x60 सेमी के गड्ढे बनाएं और इनमें गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाकर थोड़ा सुपरफॉस्फेट मिलाएं। पौधों के बीच 6x6 मीटर की दूरी बनाकर रोपाई करें ताकि विकास के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके।

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प्रमुख किस्में

  •  गार्सिनिया इंडिका (कोकम): पश्चिमी घाटों में प्रमुख रूप से पाई जाती है।
  •  गार्सिनिया गुम्मिगुट्टा: मसालों और हाइड्रॉक्सीसाइट्रिक एसिड (HCA) के लिए जानी जाती है।
  •  गार्सिनिया मैंगोस्टाना (मैंगोस्टीन): एक बहुमूल्य उष्णकटिबंधीय फल।
  •  गार्सिनिया ज़ैंथोकाइमस (पीला मैंगोस्टीन): अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध।

अन्य लोकप्रिय किस्मों में शामिल हैं:

  • गार्सिनिया एट्रोविरिडिस (दक्षिण भारत)
  • गार्सिनिया पेडुनकुलाटा (असम)
  • गार्सिनिया मोरेला और टैलबोटी (महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक)

रोपण का उचित समय

मानसून का मौसम (जून से सितंबर) पौधारोपण के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है, क्योंकि इस दौरान मिट्टी में नमी पर्याप्त होती है और तापमान भी अनुकूल रहता है।

पौधे तैयार करने की विधियाँ

1. बीज द्वारा:

ताजे बीज लेकर गीली मिट्टी में आधा इंच गहराई पर बोएं।

अंकुर फूटने के बाद इन्हें गमलों में स्थानांतरित करें।

2. कलम द्वारा:

स्वस्थ शाखाओं की कटिंग लें और रूटिंग हार्मोन लगाकर नम मिट्टी में रोपें।

 जड़ें विकसित होने पर पौधों को खेत में प्रत्यारोपित करें।

उर्वरक और पोषण प्रबंधन

  • गार्सिनिया की बेहतर उपज के लिए जैविक और रासायनिक उर्वरकों का संतुलित प्रयोग जरूरी है।
  • गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, और कम्पोस्ट जैविक उर्वरता बढ़ाते हैं।
  • प्रति पौधा 2 किलो FYM (जरूरत के अनुसार मात्रा बढ़ाई जा सकती है)।
  • नीम खली या सुपरफॉस्फेट को मिलाकर मिट्टी में मिलाना फायदेमंद होता है।

सिंचाई व्यवस्था

  • प्रारंभिक वर्षों में नियमित सिंचाई आवश्यक है।
  • ड्रिप सिंचाई पद्धति से गहरी जड़ें विकसित होती हैं।
  • जलभराव से बचाव जरूरी है – इसके लिए अच्छी जल निकासी अनिवार्य है।
  • सूखे मौसम में अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है।

तुड़ाई और भंडारण

  • तुड़ाई का समय: अप्रैल से मई के बीच, जब फल गहरे लाल या बैंगनी रंग के हो जाएं।
  • हाथ या जालीदार औजारों की मदद से सावधानीपूर्वक फल तोड़ें।
  • नीचे प्लास्टिक की चादर बिछाकर फल एकत्र करना एक प्रभावी तरीका है।

भंडारण:

पके फल जल्दी खराब हो सकते हैं, इसलिए तुरंत उपयोग या प्रक्रिया जरूरी है।

इन्हें सामान्य तापमान पर कुछ दिन, या नियंत्रित तापमान (13°C) और आर्द्रता (86%) में 28 दिन तक रखा जा सकता है।

गार्सिनिया की खेती पारंपरिक खेती से हटकर एक लाभकारी और नवाचारी विकल्प है, जो न केवल किसानों की आमदनी बढ़ा सकती है, बल्कि स्वास्थ्य, पोषण और निर्यात क्षमता के लिहाज़ से भी अत्यंत उपयोगी है। सही जलवायु, उपयुक्त मिट्टी और वैज्ञानिक देखभाल के साथ यह एक स्थायी कृषि मॉडल बन सकता है।

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