भारत में गार्सिनिया (जिसे कोकम भी कहा जाता है) की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। यह खेती अब छोटे किसानों से लेकर बड़े उद्यमियों तक के लिए एक आकर्षक व्यवसाय बनती जा रही है।
विशेषकर गार्सिनिया कैम्बोजिया जैसी किस्में अपने औषधीय लाभों और पाक उपयोगों के चलते घरेलू ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी काफी मांग में हैं।
भारत की विविध जलवायु और समृद्ध जैव विविधता इसे गार्सिनिया उत्पादन के लिए आदर्श बनाते हैं, जिससे यह ग्रामीण आय को बढ़ाने और सतत कृषि को बढ़ावा देने का एक बेहतरीन साधन बन चुका है।
गार्सिनिया को दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है, जिसमें बालू, गाद और चिकनी मिट्टी का संतुलन हो।
ऐसी मिट्टी जो जल धारण और जल निकासी दोनों में संतुलित हो, सबसे बेहतर होती है। pH मान 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए और जैविक पदार्थों की उपस्थिति भी लाभकारी होती है।
खेत को अच्छी तरह जोतकर भुरभुरी और साफ मिट्टी तैयार करें। पौधों के लिए 60x60x60 सेमी के गड्ढे बनाएं और इनमें गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाकर थोड़ा सुपरफॉस्फेट मिलाएं। पौधों के बीच 6x6 मीटर की दूरी बनाकर रोपाई करें ताकि विकास के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके।
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मानसून का मौसम (जून से सितंबर) पौधारोपण के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है, क्योंकि इस दौरान मिट्टी में नमी पर्याप्त होती है और तापमान भी अनुकूल रहता है।
ताजे बीज लेकर गीली मिट्टी में आधा इंच गहराई पर बोएं।
अंकुर फूटने के बाद इन्हें गमलों में स्थानांतरित करें।
स्वस्थ शाखाओं की कटिंग लें और रूटिंग हार्मोन लगाकर नम मिट्टी में रोपें।
जड़ें विकसित होने पर पौधों को खेत में प्रत्यारोपित करें।
पके फल जल्दी खराब हो सकते हैं, इसलिए तुरंत उपयोग या प्रक्रिया जरूरी है।
इन्हें सामान्य तापमान पर कुछ दिन, या नियंत्रित तापमान (13°C) और आर्द्रता (86%) में 28 दिन तक रखा जा सकता है।
गार्सिनिया की खेती पारंपरिक खेती से हटकर एक लाभकारी और नवाचारी विकल्प है, जो न केवल किसानों की आमदनी बढ़ा सकती है, बल्कि स्वास्थ्य, पोषण और निर्यात क्षमता के लिहाज़ से भी अत्यंत उपयोगी है। सही जलवायु, उपयुक्त मिट्टी और वैज्ञानिक देखभाल के साथ यह एक स्थायी कृषि मॉडल बन सकता है।