मूंगफली एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है जिसका उपयोग खाने के अलावा तेल निकालने के लिए भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होने के कारण यह पोषण का अच्छा स्रोत भी मानी जाती है।
इसकी खेती मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में इसकी रबी में भी खेती की जाती है। सफल खेती के लिए किसानों को मूंगफली की प्रमुख किस्मों की जानकारी होना आवश्यक है ताकि जलवायु और मिट्टी के अनुसार उपयुक्त किस्म का चयन किया जा सके।
इस किस्म से कम समय में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। पौधे की ऊंचाई लगभग 1 से 1.5 फीट तक होती है।
बुवाई के 95–100 दिनों में फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा ज्यादा होती है और प्रति एकड़ 8–9 क्विंटल उपज मिलती है।
मुख्यतः उत्तर प्रदेश में इसकी खेती की जाती है। फसल की खुदाई 115–120 दिनों में की जाती है और एक एकड़ से लगभग 8 क्विंटल उत्पादन प्राप्त होता है।
यह किस्म उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए उपयुक्त है। इसकी फलियों में लगभग 72% दाने पाए जाते हैं। प्रति एकड़ 10–12 क्विंटल तक उपज मिलती है। बुवाई के बाद 115–120 दिनों में फसल तैयार हो जाती है।
रेतीली मिट्टी में इसकी खेती अच्छी होती है। फसल तैयार होने में 125–130 दिन लगते हैं। प्रति एकड़ 12 क्विंटल तक उपज होती है। इसकी फलियों में 66% दाने होते हैं।
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खरीफ सीजन के लिए उपयुक्त इस किस्म के दाने बड़े होते हैं। यह किस्म 115–120 दिनों में तैयार होती है और प्रति एकड़ 7–9 क्विंटल उपज देती है।
यह किस्म सिंचित और असिंचित दोनों प्रकार की जमीन के लिए उपयुक्त है। 120–130 दिनों में फसल खुदाई योग्य होती है। प्रति एकड़ उपज 6.8 से 13.2 क्विंटल तक होती है।
इस छोटे दानों वाली किस्म में 51% तक तेल होता है। फसल की खुदाई 125 दिनों में की जाती है और एकड़ में 12–14 क्विंटल उपज मिलती है। यदि समय पर खुदाई न की जाए तो दाने अंकुरित हो सकते हैं।
राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में इस किस्म की खेती अधिक होती है। फसल 125–130 दिनों में खुदाई योग्य हो जाती है और प्रति एकड़ 10 क्विंटल उपज मिलती है। इसकी फलियों में सामान्यतः दो दाने होते हैं।
मूंगफली की अन्य लाभदायक किस्मों में एम ए -10, एम 548, जी 201, ए के 12-24, टी जी-26, उत्कर्ष, जी जी 20, वर्जीनिया, सी 501 और पी जी 1 शामिल हैं। ये किस्में भी अच्छी पैदावार और मुनाफे के लिए उपयुक्त हैं।
मूंगफली की किस्म का चयन क्षेत्र की जलवायु, मिट्टी की प्रकृति और सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर किया जाना चाहिए। सही किस्म का चुनाव और उचित कृषि तकनीकों को अपनाकर किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनकी आमदनी में वृद्धि संभव है।
इसके अलावा, फसल चक्र और जैविक खादों के प्रयोग से भूमि की उर्वरता बनी रहती है और मूंगफली की गुणवत्ता भी सुधरती है।