गन्ने की खेती करने वाले किसानों को इन दिनों सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि वर्तमान समय में गन्ने की फसल पर काला चिकटा रोग का असर देखने को मिल रहा है। यह रोग पौधों की वृद्धि को रोक देता है और पत्तियों में छेद कर देता है, जिससे फसल को काफी नुकसान पहुंच सकता है।
अगर समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो फसल पूरी तरह बर्बाद हो सकती है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि काला चिकटा रोग क्या है, इसके लक्षण क्या हैं और इससे कैसे बचाव किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में गन्ने की फसल पर ब्लैक बग या काला चिकटा कीट का प्रकोप देखा गया है। इसे लेकर प्रदेश के गन्ना एवं चीनी आयुक्त प्रमोद कुमार उपाध्याय ने किसानों के लिए एक सलाह जारी की है।
उनके अनुसार, वैज्ञानिकों की टीमों द्वारा स्थानीय स्तर पर गन्ना क्षेत्रों का निरीक्षण किया गया है जिसमें ब्लैक बग और पायरिया रोग दोनों का असर देखा गया है।
गन्ना शोध परिषद के निर्देशों के आधार पर किसानों, विभागीय अधिकारियों और चीनी मिलों को इस कीट से बचाव के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
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लेकिन यदि ब्लैक बग की संख्या अधिक हो और परजीवी की मौजूदगी न हो तो रासायनिक नियंत्रण अनिवार्य हो जाता है।
गन्ने की फसल पर केवल काला चिकटा ही नहीं, बल्कि कई अन्य कीटों का भी खतरा बना रहता है। इनमें दीमक, सफेद गिडार, जड़ बेधक (रूट बोरर), अंकुर बेधक, चोटी बेधक (टॉप शूट बोरर), कडुआ रोग, तना बेधक (स्टेम बोरर), गुरदासपुर बेधक और पोरी बेधक (इंटरनोड बोरर) शामिल हैं।
ये कीट अलग-अलग मौसम में फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए किसानों को सतर्क रहना चाहिए और किसी भी कीटनाशक का प्रयोग करने से पहले नजदीकी कृषि विभाग से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। रासायनिक छिड़काव किसी विशेषज्ञ की देखरेख में करना ही सुरक्षित होता है।