गन्ने की बढ़वार को प्रभावित करता है काला चिकटा रोग, पत्तियों में होते हैं छेद जानिए इसकी जानकारी

By : Tractorbird Published on : 01-Jul-2025
गन्ने

गन्ने की खेती करने वाले किसानों को इन दिनों सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि वर्तमान समय में गन्ने की फसल पर काला चिकटा रोग का असर देखने को मिल रहा है। यह रोग पौधों की वृद्धि को रोक देता है और पत्तियों में छेद कर देता है, जिससे फसल को काफी नुकसान पहुंच सकता है। 

अगर समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो फसल पूरी तरह बर्बाद हो सकती है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि काला चिकटा रोग क्या है, इसके लक्षण क्या हैं और इससे कैसे बचाव किया जा सकता है।

गन्ना एवं चीनी विभाग की ओर से किसानों को सलाह

उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में गन्ने की फसल पर ब्लैक बग या काला चिकटा कीट का प्रकोप देखा गया है। इसे लेकर प्रदेश के गन्ना एवं चीनी आयुक्त प्रमोद कुमार उपाध्याय ने किसानों के लिए एक सलाह जारी की है। 

उनके अनुसार, वैज्ञानिकों की टीमों द्वारा स्थानीय स्तर पर गन्ना क्षेत्रों का निरीक्षण किया गया है जिसमें ब्लैक बग और पायरिया रोग दोनों का असर देखा गया है। 

गन्ना शोध परिषद के निर्देशों के आधार पर किसानों, विभागीय अधिकारियों और चीनी मिलों को इस कीट से बचाव के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।

ब्लैक बग या काला चिकटा की पहचान कैसे करें किसान ?

  • गन्ना एवं चीनी आयुक्त ने बताया कि काला चिकटा एक रस चूसने वाला कीट है, जिसका प्रकोप अधिकतर अप्रैल से जून के बीच, गर्म और शुष्क मौसम में अधिक होता है। 
  • यह कीट खासकर पेड़ी गन्ने में ज्यादा पाया जाता है जबकि पौधा गन्ना अपेक्षाकृत कम प्रभावित होता है। प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली हो जाती हैं और उन पर कत्थई रंग के धब्बे दिखते हैं। 
  • इस कीट के शिशु गन्ने के गोफ और पत्तियों के बीच छिपे रहते हैं और पत्तियों का रस चूसते हैं। प्रकोप ज्यादा होने पर पत्तियों में छेद नजर आने लगते हैं और गन्ने की वृद्धि रुक जाती है।

ये भी पढ़ें: गन्ने की फसल में टॉप बोरर और पायरिला से बचाव हेतु एडवाइजरी

ब्लैक बग नियंत्रण के उपाय

  • किसान इस कीट पर नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय अपना सकते हैं:
  • गन्ने की कटाई के बाद प्रभावित गन्ने की पताई और ठूठों को खेत से हटा कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • खेत की सिंचाई करने से काला चिकटा के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  • यदि कीट का प्रकोप अधिक हो तो रासायनिक नियंत्रण जरूरी हो जाता है। इसके लिए:

  1.  प्रोफेनोफॉस 40% + साइपरमेंथरिन 4% ई.सी. – 750 मिली
  2.  इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. – 200 मिली
  3.  क्वीनालफॉस 25% ई.सी. – 825 मिली
  4.  क्लोरोपायरीफॉस 20% ई.सी. – 800 मिली को 625 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव  करना चाहिए।
  5.  यदि ब्लैक बग का प्रभाव कम हो और पायरिया रोग का असर अधिक हो, साथ ही परजीवी कीट भी मौजूद हों, तो रासायनिक उपायों की आवश्यकता नहीं होती।

लेकिन यदि ब्लैक बग की संख्या अधिक हो और परजीवी की मौजूदगी न हो तो रासायनिक नियंत्रण अनिवार्य हो जाता है।

अन्य कीटों का प्रकोप भी रहता है संभावित

गन्ने की फसल पर केवल काला चिकटा ही नहीं, बल्कि कई अन्य कीटों का भी खतरा बना रहता है। इनमें दीमक, सफेद गिडार, जड़ बेधक (रूट बोरर), अंकुर बेधक, चोटी बेधक (टॉप शूट बोरर), कडुआ रोग, तना बेधक (स्टेम बोरर), गुरदासपुर बेधक और पोरी बेधक (इंटरनोड बोरर) शामिल हैं। 

ये कीट अलग-अलग मौसम में फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए किसानों को सतर्क रहना चाहिए और किसी भी कीटनाशक का प्रयोग करने से पहले नजदीकी कृषि विभाग से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। रासायनिक छिड़काव किसी विशेषज्ञ की देखरेख में करना ही सुरक्षित होता है।

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