टिंडे की खेती : समय, विधि और लाभदायक जानकारी

By : Tractorbird Published on : 02-Jul-2025
टिंडे

इस समय टिंडे सब्जी की बुवाई का उपयुक्त मौसम चल रहा है। यदि किसान उन्नत किस्मों का चुनाव करके वैज्ञानिक तरीकों से इसकी खेती करें, तो उन्हें अच्छा मुनाफा मिल सकता है। 

कृषि वैज्ञानिकों के सुझावों को अपनाकर और उचित प्रबंधन करके टिंडे की खेती को लाभकारी बनाया जा सकता है। ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से हम आपको टिंडे सब्जी की खेती से जुड़ी आवश्यक जानकारी प्रदान कर रहे हैं।

टिंडे की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

टिंडे की फसल के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु अनुकूल होती है। ठंडी जलवायु और पाला इस फसल के लिए हानिकारक माने जाते हैं, इसलिए इसकी खेती गर्मियों में करना ज्यादा फायदेमंद रहता है। 

वर्षा ऋतु में भी इसकी खेती संभव है, लेकिन इस मौसम में कीट और रोगों का खतरा बढ़ जाता है। मृदा की बात करें तो टिंडे लगभग हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, मगर जलधारण क्षमता वाली, जीवांशयुक्त और हल्की दोमट मिट्टी को सर्वोत्तम माना गया है।

बुवाई का सही समय

टिंडे की खेती साल में दो बार की जा सकती है:

  • पहली बुवाई: फरवरी से मार्च तक
  • दूसरी बुवाई: जून से जुलाई के बीच

टिंडे की प्रमुख उन्नत किस्में

टिंडे की कुछ अच्छी किस्में इस प्रकार हैं:

एस-48, लुधियाना टिंडे, पंजाब टिंडे-1, अर्का टिंडे, अन्नामलाई टिंडे, मायको टिंडे, स्वाती, बीकानेरी ग्रीन, हिसार चयन-1, एस-22 आदि। ये किस्में बेहतर उत्पादन देती हैं और लगभग दो महीनों में फसल तैयार हो जाती है।

खेत की तैयारी

खेत की तैयारी के लिए पहले मृदा पलटने वाले हल से जुताई करें, फिर 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। 

इसके बाद प्रति एकड़ 8-10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डालें और बैड तैयार करें। बीजों की बुवाई डोलियों या गड्ढों में की जाती है।

बीज मात्रा और उपचार

बीज मात्रा: प्रति बीघा में लगभग 1.5 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है।

बीज उपचार:

  • बुवाई से 12-24 घंटे पहले बीजों को पानी में भिगोना चाहिए ताकि अंकुरण अच्छा हो।
  • बीजों को कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो) या थायरम (2.5 ग्राम/किलो) से उपचारित करें।
  • फिर ट्राइकोडरमा विराइड (4 ग्राम/किलो) या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस (10 ग्राम/किलो) से जैविक उपचार करें।
  • इसके बाद बीजों को छाया में सुखाकर बुवाई करें।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

  • नाइट्रोजन: 40 किलो (यूरिया – 90 किलो)
  • फास्फोरस: 20 किलो (सिंगल सुपर फास्फेट – 125 किलो)
  • पोटाश: 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश – 35 किलो)
  • फास्फोरस, पोटाश और नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा बुवाई के समय डालें और बाकी नाइट्रोजन बाद में डालें। उत्पादन बढ़ाने के लिए मैलिक हाइड्राजाइड (50 PPM) का 2–4% घोल बनाकर पत्तियों पर छिड़काव करें। इससे उत्पादन में 50–60% तक वृद्धि हो सकती है।

बुवाई की विधि

  • क्यारियां: 1.5-2 मीटर चौड़ी और 15 से.मी. ऊँची बनाएं।
  • नालियां: क्यारियों के बीच 1 मीटर की नाली रखें।
  • बीज दूरी: दोनों किनारों पर 60 से.मी. के अंतराल पर बीज बोएं।
  • गहराई: बीज 1.5-2 से.मी. से अधिक गहराई में न रखें।

सिंचाई व्यवस्था

  • ग्रीष्मकालीन खेती: प्रति सप्ताह सिंचाई करें।
  • वर्षाकालीन खेती: प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर रहती है।

खरपतवार नियंत्रण

  • फसल के साथ उगने वाले खरपतवार फसल की वृद्धि पर असर डालते हैं। ऐसे में 2-3 बार निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को हटाना जरूरी होता है।
  • तुड़ाई, उपज और बाजार मूल्य
  • तुड़ाई: बुवाई के 40-50 दिन बाद शुरू हो जाती है। मध्यम आकार के फल तैयार होने पर तुड़ाई करें।
  • फ्रिक्वेंसी: हर 4-5 दिन के अंतराल पर तुड़ाई की जा सकती है।
  • पैदावार: एक हैक्टेयर में 100-125 क्विंटल उपज मिल सकती है यदि वैज्ञानिक विधि से खेती की जाए।
  • कीमत: बाजार में टिंडे की कीमत आम तौर पर ₹20 से ₹40 प्रति किलो रहती है।

अगर किसान वैज्ञानिक तरीकों को अपनाते हैं और उचित समय पर उचित प्रबंधन करते हैं, तो टिंडे की खेती से कम लागत में अच्छी आमदनी संभव है।

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