गुलदाउदी की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण उपाय

By : Tractorbird Published on : 26-Jun-2025
गुलदाउदी

गुलदाउदी दुनिया के सबसे प्राचीन खेती वाले फूलों में से एक है। गुलदाउदी क्राइसैन्थेमम फूल के रूप में अत्यधिक लोकप्रिय है। 

भारत में गुलदाउदी के बड़े फूल वाली किस्मों को प्रदर्शनी के उद्देश्य से उगाया जाता है। गुलदाउदी की फसल कई रोगों से भी प्रभावित होती है, इस लेख में हम आपको गुलदाउदी की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण उपाय के बारे में जानकारी देंगे।    

गुलदाउदी में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके लक्षण 

गुलदाउदी की फसल में कई प्रकार के रोग लगते है इनके लक्षण और नियंत्रण के उपाय निम्नलिखित दिए गए है - 

1. विल्ट रोग – Fusarium oxysporum f.sp. chrysanthemi

लक्षण:

  • गुलदाउदी में प्रारंभिक लक्षणों में पत्तियों का पीला और भूरा पड़ना शामिल है। प्रभावित पत्तियाँ पौधे के निचले भाग से ऊपर की ओर मरने लगती हैं। 
  • संक्रमित पौधे बौने रह जाते हैं और अक्सर फूल नहीं आते। विल्ट के कारण जड़ों या तने के निचले हिस्से में सड़न हो सकती है। यह फफूंदी मिट्टी जनित होती है और रोग संक्रमित कटिंग्स के माध्यम से फैलता है।

नियंत्रण उपाय 

  • इस रोग का नियंत्रण करने के लिए मिट्टी में कार्बेन्डाजिम 0.1% का ड्रेंचिंग करना प्रभावी होता है। रोपण से पहले जड़युक्त कटिंग्स को थिरम @1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में डुबोकर उपचारित करें। 
  • चूंकि यह रोग मुख्यतः कटिंग्स के माध्यम से फैलता है, इसलिए रोग रहित रोपण सामग्री का उपयोग आवश्यक है। 
  • इसके अलावा, सख्त स्वच्छता, समय-समय पर निगरानी, फसल चक्र और संक्रमित पौधों को नष्ट (रोगिंग) कर देने से रोग को कम किया जा सकता है।

ये भी पढ़ें: गुलदाउदी फूल क्या है और इसकी कीट व रोगों से कैसे सुरक्षा करें ?

2. सेप्टोरिया लीफ स्पॉट – Septoria chrysanthemella

लक्षण:

  • यह रोग वर्षा ऋतु की ठंडी और आर्द्र परिस्थितियों में दिखाई देता है। वर्षा के छींटों से रोग फैलता है, इसलिए सबसे पहले पौधे की निचली पत्तियाँ संक्रमित होती हैं। 
  • गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियाँ समय से पहले मुरझा जाती हैं और कुछ समय तक तने से लटकी रहती हैं। जब फूल बनना शुरू होता है, तो रोग फूल की कलियों पर भी असर करता है, जिससे वे पूरी तरह सड़ जाती हैं।

नियंत्रण उपाय 

इस रोग पर नियंत्रण के लिए जुलाई के अंत से हर 15 दिन के अंतराल पर 6 बार कार्बेन्डाजिम 0.1% का छिड़काव करें या बेनोमाइल (0.1%) के छिड़काव के बाद कैप्टाफोल (0.2%) का छिड़काव करें। रोगग्रस्त अवशेषों का नाश करें और अत्यधिक सिंचाई से बचें।

3. पाउडरी मिल्ड्यू – Oidium chrysanthemi

लक्षण:

यह रोग मुख्यतः पुराने पौधों में और आर्द्र परिस्थितियों में अधिक होता है। पत्तियों पर फफूंद की सफेद पाउडर जैसी परत बनती है। संक्रमित पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और सूख जाती हैं। संक्रमित पौधे बौने रह जाते हैं और फूल नहीं आते।

नियंत्रण उपाय 

इस रोग को सल्फर आधारित फफूंदनाशकों या कैप्टन (0.2%) से प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। अच्छे वेंटिलेशन और पौधों के बीच उचित दूरी रखकर वायु संचरण सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।

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