अजवाइन की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा
By : Tractorbird Published on : 03-Jul-2025
अजवाइन, जिसे अजमोद बीज (Trachyspermum ammi L.) के नाम से भी जाना जाता है, Apiaceae (अजवाइन कुल) परिवार से संबंधित एक प्रसिद्ध मसाला फसल है।
इसकी उत्पत्ति मिस्र में मानी जाती है, लेकिन आज यह भारत में एक लोकप्रिय मसाले के रूप में व्यापक रूप से उगाई जाती है।
यह एक वार्षिक शाकीय पौधा होता है, जिसके बीज छोटे, अंडाकार और भूरे रंग के होते हैं।
अजवाइन उत्पादन करने वाले प्रमुख देश
भारत, फारस, ईरान, मिस्र, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर अफ्रीका प्रमुख अजवाइन उत्पादक देश हैं।
भारत में राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
जलवायु की आवश्यकता
- अजवाइन ठंडे मौसम में अच्छी तरह उगने वाली फसल है और इसे मुख्यतः रबी मौसम में बोया जाता है, हालांकि कुछ स्थानों पर इसे खरीफ मौसम में भी उगाया जाता है।
- मध्यम ठंड और शुष्क जलवायु इसके विकास के लिए अनुकूल होती है।
- फूल आने के समय अत्यधिक आर्द्रता से बचना फायदेमंद रहता है, क्योंकि अत्यधिक नमी कीट व रोगों को न्योता देती है।
- फसल की वृद्धि अवधि के दौरान 15-27° C तापमान और 60-70% आर्द्रता आदर्श मानी जाती है, जबकि बीज पकने के समय गर्म व शुष्क मौसम उत्तम होता है।
मिट्टी की उपयुक्तता
- यह फसल विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में बेहतर उपज देती है।
- जैविक पदार्थों से समृद्ध चिकनी दोमट मिट्टी भी उपयुक्त रहती है, बशर्ते जल निकासी की व्यवस्था ठीक हो।
- रेतीली या बजरीयुक्त मिट्टी में यह ठीक से विकसित नहीं हो पाती।
- भारी मिट्टी, जो नमी बनाए रखती है, इसके लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती है।
- यह फसल लवणीय मिट्टी को कुछ हद तक सहन कर सकती है, परंतु उच्च गुणवत्ता की उपज तटस्थ pH (6.5–8.5) वाली मिट्टी में ही मिलती है। अम्लीय मिट्टी से बचाव करना चाहिए।
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प्रमुख किस्में
किस्मों का चयन स्थानीय जलवायु व मिट्टी के अनुसार करना चाहिए।
कीट व रोग प्रतिरोधी किस्मों को प्राथमिकता देना लाभकारी होता है।
राज्यवार अनुशंसित किस्में:
- राजस्थान: अजमेर अजवाइन 1 (AA-1), AA-2, AA-73, AA-93, प्रताप अजवाइन-1
- गुजरात: गुजरात अजवाइन-1
- आंध्र प्रदेश: लम सिलेक्शन 1 और 2
- बिहार: R.A. 1-80, R.A. 19-80
भूमि की तैयारी
- अच्छी अंकुरण के लिए मिट्टी को बारीक, समतल और नम बनाना चाहिए।
- पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें
- इसके बाद 2-3 बार कल्टीवेटर या हेरो से हल्की जुताई करें
- हर जुताई के बाद पाटा चलाएं
- दीमक प्रभावित क्षेत्रों में अंतिम जुताई के समय एंडोसल्फान (4%), क्विनालफॉस (1.5%) या मिथाइल पेराथियॉन (3%) का उपयोग करें
बुवाई का समय
- बुवाई का समय फसल की उपज व रोग नियंत्रण में अहम भूमिका निभाता है।
- रबी मौसम: सितंबर-अक्टूबर (उत्तर भारत)
- खरीफ मौसम: जुलाई-अगस्त
- दक्षिण भारत: अगस्त मध्य में बुवाई, कटाई दिसंबर-जनवरी में बुवाई ऐसा समय चुनें जब फसल का बीज पकने का दौर शुष्क व साफ मौसम में आए।
बीज मात्रा
रबी फसल हेतु: 2.5–3.0 किग्रा/हेक्टेयर
खरीफ फसल हेतु: 4–5 किग्रा/हेक्टेयर
बुवाई से पहले पर्याप्त नमी जरूरी होती है।
बुवाई की विधि
- अजवाइन की बुवाई छिड़काव विधि या पंक्ति विधि से की जाती है।
- सिंचित खेती में पंक्ति-दूरी: 45 सेमी
- वर्षा आधारित खेती में: 30 सेमी
- पौधों के बीच अंतर: 20–30 सेमी
- बीज गहराई: 1–1.5 सेमी
- बीजों को सूखी रेत में मिलाकर फैलाना उपयोगी रहता है।
- पंक्ति विधि से बुवाई करने पर खरपतवार नियंत्रण और अंतर-संवर्धन कार्य सरल हो जाते हैं।
खाद और उर्वरक प्रबंधन
10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाएं अंतिम जुताई पर:
40 किग्रा नाइट्रोजन
50 किग्रा फॉस्फोरस
50 किग्रा पोटाश
कम उपजाऊ मिट्टी में अतिरिक्त नाइट्रोजन दो भागों में दें – एक 45 दिन बाद और दूसरा फूल से पहले।
राजस्थान और गुजरात की मिट्टियों में पोटाश की अतिरिक्त आवश्यकता नहीं होती।
सिंचाई व्यवस्था
- सिंचित खेती में 5 हल्की सिंचाइयों की जरूरत होती है।
- यदि बुवाई के समय नमी कम हो, तो 4-5 दिन बाद हल्की सिंचाई करें
- सामान्यतः 15–25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
- IW/CPE अनुपात 0.8 रखने से अच्छी उपज मिलती है।
खरपतवार नियंत्रण
- प्रारंभिक अवस्था में फसल की वृद्धि धीमी होती है, अतः खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है।
- पहली निराई: 30 दिन बाद
- आवश्यकतानुसार हर 30 दिन पर गुड़ाई करें
- पंक्ति दूरी बनाए रखें और कमजोर पौधे हटाएं
रसायनिक नियंत्रण:
- ऑक्साडियार्जिल @0.075 किग्रा/हेक्टेयर (पूर्व-उद्भव)
- पेंडिमेथालिन @1 किग्रा/हेक्टेयर (बुवाई के बाद)
- एक बार हाथ से निराई 45 दिन बाद अवश्य करें।
फसल की कटाई व उपज
- अजवाइन की फसल सामान्यतः 130–180 दिनों में परिपक्व होती है।
- कटाई फरवरी से मई के बीच होती है।
- बीज पकने पर भूरे होकर गुच्छों में दिखाई देते हैं।
- कटाई दरांती से करें और फसल को उल्टा करके सुखाएं।
- सूखे डंठलों को पीटकर बीज अलग करें।
उपज:
- वर्षा आधारित: 4–6 क्विंटल/हेक्टेयर
- सिंचित: 12–15 क्विंटल/हेक्टेयर
- सफाई, भंडारण और पैकेजिंग
- बीजों को वैक्यूम ग्रैविटी सेपरेटर से साफ करें।
- 7-8% नमी और 40% सापेक्ष आर्द्रता में सुरक्षित रखें।
- पॉलीथीन लाइनिंग वाली जूट बोरियों में संग्रह करें।
- ठंडी, सूखी और हवादार जगह पर अगले सीजन तक सुरक्षित रखा जा सकता है।