जीरे की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले किट और रोगों के नियंत्रण उपाय

By : Tractorbird News Published on : 02-Jan-2025
जीरे

जीरा (Cumin) का वानस्पतिक नाम Cuminum cyminum है। यह पौधा एपिएसी (Apiaceae) परिवार से संबंधित है और मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान तथा कुछ हिस्सों में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में रबी फसल के रूप में उगाया जाता है। 

जीरा मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों को स्वादिष्ट बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे आयुर्वेदिक औषधियों में भी उपयोग किया जाता है। 

जीरे की फसल की पैदावार इसमें लगने वाले रोगों और कीटों से प्रभावित होती है जिससे की किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है

इस लेख में हम आपको जीरे की फसल में लगने वाले मुख्य किट और रोगों के नियंत्रण उपाय के बारे में विस्तार में जानकारी देंगे।

जीरे की फसल में लगने वाले मुख्य किट और उनके नियंत्रण उपाय

जीरे की फसल में सबसे ज्यादा 2किट नुकसान करते है जिनका नाम है एफिड (माहू) और 

पत्ते खाने वाले कैटरपिलर इनके नियंत्रण के उपाय निम्नलिखित दिए गए है। 

एफिड (माहू)

  • एफिड जीरे की फसल का मुख्य कीट है, जो कोमल भागों का रस चूसकर उपज को कम करता है। 
  • एफिड को नियंत्रित करने के लिए 0.03% डाइमेथोएट, 0.025% मिथाइल डेमेटोन या 0.04% मोनोक्रोटोफॉस के घोल का छिड़काव करने की सिफारिश की जाती है।

पत्ते खाने वाले कैटरपिलर

यह कीट पौधों की पत्तियों को नुकसान पहुंचाकर फसल की उपज कम करता है। 

इसे नियंत्रित करने के लिए फसल की प्रारंभिक अवस्था में 0.02% फॉस्फोमिडोन के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

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जीरे की फसल में लगने वाले मुख्य रोग और उनके नियंत्रण उपाय

जीरे की फसल में मुख्य रूप से फ्यूजेरियम विल्ट, अल्टरनेरिया ब्लाइट और पाउडरी मिल्ड्यू का प्रकोप होता है इनके नियंत्रण के उपाय आपको नीचे दिए गए है।

फ्यूजेरियम विल्ट

  • संक्रमित पौधों में पत्तियों और टहनियों के झुकने के लक्षण दिखाई देते हैं, जिससे पूरा पौधा सूख जाता है। यह रोग छोटे पौधों में अधिक घातक होता है। 
  • इस बीमारी का कोई रासायनिक उपचार नहीं है। फसल चक्र और नीम खली का उपयोग करने से इस रोग के फैलाव को रोका जा सकता है। 
  • बुवाई के लिए केवल रोग-मुक्त खेतों से प्राप्त बीजों का उपयोग करना चाहिए।

अल्टरनेरिया ब्लाइट

  • ब्लाइट से प्रभावित पौधों में छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में काले रंग में बदल जाते हैं। 
  • आमतौर पर रोगग्रस्त पौधे बीज नहीं बना पाते हैं। यदि बीज बनते भी हैं तो वे सिकुड़े हुए, हल्के और गहरे रंग के होते हैं। 
  • इस रोग को नियंत्रित करने के लिए बीज उपचार और 0.2% डिथेन-एम-45 के घोल का 4 बार छिड़काव (40 दिन बाद शुरू करके हर 10 दिन के अंतराल पर) करना चाहिए। 
  • फंगसाइड की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर साबुन का घोल मिलाएं। फसल को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। 
  • इस फसल के आसपास अधिक सिंचाई वाली फसलें और सरसों की फसल नहीं उगानी चाहिए

पाउडरी मिल्ड्यू

प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित पौधों में पत्तियों, डंठलों, तनों और बीजों पर छोटे सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। गंभीर स्थिति में पौधे सफेद पाउडर से ढके हुए प्रतीत होते हैं। 

बाद के चरणों में बीज सफेद, सिकुड़े और हल्के हो जाते हैं। जैसे ही लक्षण दिखाई दें, 300 मेष सल्फर डस्ट @ 25 किग्रा/हेक्टेयर का उपयोग करके फसल पर धूल डालनी चाहिए। 

इस रोग को नियंत्रित करने के लिए वेटेबल सल्फर या डाइनोकैप (कराथेन या थियोवेट) का 20-25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें। 

यदि आवश्यक हो, तो पहला छिड़काव के 15-20 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।

जीरे की फसल में समय पर रोगों और कीटों का नियंत्रण करके अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। 

फसल में कीटों और रोगों से बचाव के लिए फसल पर निरंतर निगरानी रखना बहुत आवश्यक है। जिससे की किट और रोग को नुकसान के पहले चरण में ही नियंत्रण किया जा सकें।

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