जीरा (Cumin) का वानस्पतिक नाम Cuminum cyminum है। यह पौधा एपिएसी (Apiaceae) परिवार से संबंधित है और मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान तथा कुछ हिस्सों में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में रबी फसल के रूप में उगाया जाता है।
जीरा मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों को स्वादिष्ट बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे आयुर्वेदिक औषधियों में भी उपयोग किया जाता है।
जीरे की फसल की पैदावार इसमें लगने वाले रोगों और कीटों से प्रभावित होती है जिससे की किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है।
इस लेख में हम आपको जीरे की फसल में लगने वाले मुख्य किट और रोगों के नियंत्रण उपाय के बारे में विस्तार में जानकारी देंगे।
जीरे की फसल में लगने वाले मुख्य किट और उनके नियंत्रण उपाय
जीरे की फसल में सबसे ज्यादा 2किट नुकसान करते है जिनका नाम है एफिड (माहू) और
पत्ते खाने वाले कैटरपिलर इनके नियंत्रण के उपाय निम्नलिखित दिए गए है।
यह कीट पौधों की पत्तियों को नुकसान पहुंचाकर फसल की उपज कम करता है।
इसे नियंत्रित करने के लिए फसल की प्रारंभिक अवस्था में 0.02% फॉस्फोमिडोन के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
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जीरे की फसल में मुख्य रूप से फ्यूजेरियम विल्ट, अल्टरनेरिया ब्लाइट और पाउडरी मिल्ड्यू का प्रकोप होता है इनके नियंत्रण के उपाय आपको नीचे दिए गए है।
प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित पौधों में पत्तियों, डंठलों, तनों और बीजों पर छोटे सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। गंभीर स्थिति में पौधे सफेद पाउडर से ढके हुए प्रतीत होते हैं।
बाद के चरणों में बीज सफेद, सिकुड़े और हल्के हो जाते हैं। जैसे ही लक्षण दिखाई दें, 300 मेष सल्फर डस्ट @ 25 किग्रा/हेक्टेयर का उपयोग करके फसल पर धूल डालनी चाहिए।
इस रोग को नियंत्रित करने के लिए वेटेबल सल्फर या डाइनोकैप (कराथेन या थियोवेट) का 20-25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।
यदि आवश्यक हो, तो पहला छिड़काव के 15-20 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।
जीरे की फसल में समय पर रोगों और कीटों का नियंत्रण करके अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
फसल में कीटों और रोगों से बचाव के लिए फसल पर निरंतर निगरानी रखना बहुत आवश्यक है। जिससे की किट और रोग को नुकसान के पहले चरण में ही नियंत्रण किया जा सकें।