सर्दी के मौसम में उगाये जाने वाली चारा फसलों की सम्पूर्ण जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 25-Oct-2023
सर्दी

सर्दी के मौसम में दुधारू पशुओं का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इस मौसम में पशुओं से अच्छा दूध उत्पादन करने के लिए उनके खान पान पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है। अगर ठंड के मौसम में उचित हरे चारे की उपलब्ध्ता बनी रहे तो दुधारू पशुओं से अच्छा दूध उत्पादन लिया जा सकता है। इस लेख में हम आपको सर्दी के मौसम में उगाये जाने वाली चारा फसलों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे। 

सर्दी में उगाई जाने वाली चारा फसलें

सर्दी या रबी के मौसम में भारत में मुख्य रूप से बरसीम, जई और रिज़का आदि चारा फसलें लगाई जाती हैं। इस लेख में आप इन फसलों के उत्पादन से जुड़ी संपूर्ण जानकारी के बारे में जानेंगे। 

बरसीम और जई की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु चाहिए?

बरसीम हरे चारों में अपने गुणों द्वारा दुधारू पशुओं के लिए प्रसिद्ध हैI उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्रों में मक्का या धान के बाद रबी की फसल में बरसीम की खेती की जाती है बरसीम की खेती हरे चारे हेतु लगभग पूरे भारतवर्ष में की जाती है जई शरद ऋतू में उगाई जाती है।

जई की खेती चारा और अनाज के उत्पादन के लिए की जाती है। इससे अच्छा चारा और अनाज भी प्राप्त होता है। जई के चारे से अच्छा चारा प्राप्त होता है जिससे की पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता में भी वृद्धि होती है। 

बरसीम और जई की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु एवं भूमि चाहिए?

बरसीम को रबी की फसलों के साथ उगाते हैं इसके लिए गर्मी की आवश्यकता नहीं होती है इसलिए शरद ऋतु में ही इसकी खेती पूरे उत्तर प्रदेश में की जाती हैI बरसीम की खेती के लिए दोमट तथा भारी दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है इसकी खेती के लिए अम्लीय भूमि उपयुक्त नहीं होती हैI जई शरद ऋतू में उगाई जाती है जई की खेती के लिए दोमट या भारी दोमट भूमि उपयुक्त होती है भूमि में पानी का निकास होना चाहिए।

बरसीम और जई की उन्नत किस्में

बरसीम की मुख्य किस्मे इस प्रकार से हैं जैसे कि बरदान, मैस्कावी, बुंदेलखंड बरसीम जिसे जे.एच.पी.146 भी कहते है जे.एच.टी.वी.146, वी.एल.10, वी.एल. 2, वी.एल. 1, वी.एल. 22 एवं यु.पी.वी.110 तथा यु.पी.वी.103 हैI

जई की एकल कटाई वाली किस्मे कैंट, ओ एस6, नरेंद्र जई 1, बुंदेल जई 99-2 ऐसी को जे.एच ओ 99-2 भी कहते है I बहु-कटाई यानि की बार बार कटाई वाली किस्मे जैसे यू.पी.ओ.212, बुंदेल जई 822, बुंदेल जई851 इसे जे.एच ओ 851 भी कहते हैं।

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बुवाई के लिए खेत की तैयारी

खरीफ की फसल के बाद बरसीम और जई की बुवाई की जाती है पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2 से 3 जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करके खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिएI इसके बाद ही बुवाई करनी चाहिएI

बरसीम के बीज की बुवाई और बुवाई का समय 

बरसीम का बीज 10 से 15 किलोग्राम प्रति एकड़ लगता है I चारे की उपज अधिक प्राप्त करने हेतु साथ में मिलाकर चारे वाली सरसों टाइप9 का बीज 400 ग्राम प्रति एकड़ बोते हैं I बरसीम में प्रायः कसनी का बीज मिला रहता है इसको निकालने हेतु 5 से 10 प्रतिशत नमक के घोल में मिश्रित बीज डाल देने से कसनी के बीज ऊपर आ जाते हैं उन्हें छानकर अलग कर लेना चाहिएI 

नमक के घोल से बीज को तुरंत निकालकर अलग कर लेना चाहिए जब बरसीम खेत में पहली बार बोई जा रही हो तो 10 किलोग्राम बीज को 200 ग्राम बरसीम कल्चर की दर से उपचारित कर लेना चाहिएI कल्चर न मिलने पर बीज के बराबर मात्रा में पहले बोये गए खेत की मिट्टी मिला लेते हैं I मृदा उपचार हेतु ट्राइकोडर्मा 2 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें तथा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार भी करना चाहिए। 

बरसीम की बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक करना ठीक रहता है देर से बोने पर कटाई की संख्या कम तथा उपज भी कम प्राप्त होती हैI खेत की 4 गुने 5 की तैयार क्यारियों में 5 सेंटीमीटर गहरा पानी भरकर उसके ऊपर शोधित बीज छिड़ककर बुवाई करते हैं बुवाई के 24 घंटे बाद पानी क्यारियों से निकाल देना चाहिए I 

जहाँ धान कटाने के बाद बरसीम की बुवाई की जाती है वहाँ पर यदि धान काटने में यदि देर हो तो धान काटने से पहले 10 से 15 दिन पूर्व भी बरसीम को धान की खड़ी फसल में छिड़काव विधि से बुवाई करते हैंI

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जई के बीज की बुवाई और बुवाई का समय 

जई की बुवाई दो प्रकार से की जाती है कतारों में बुवाई और छिटकवा। कतारों में बुवाई - जब समय से बुवाई करते हैं तो 30 से 32 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज लगता है और पिछेती बुवाई करते हैं तो 40 से 45 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ लगता है दूसरा छिटकवा बुवाई हेतु इसमे भी समय से बुवाई करने पर 40 से 45 किलोग्राम बीज लगता है और पिछेती बुवाई करने पर 50  किलोग्राम प्रति एकड़ बीज लगता हैI बीज शोधन के लिए थीरम या कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत 2 से 2.5 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करते हैंI बीज उपचारित करके ही बुवाई करनी चाहिए।

जई की बुवाई दो समय में की जाती है समय पर बुवाई अक्टूबर के प्रथम पखवारा से नवम्बर के प्रथम पखवारा तक होती है तथा देर से बुवाई करने पर नवम्बर का अंतिम सप्ताह माना जाता हैI जई की बुवाई कूड़ो में 20 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनों में की जाती है बुवाई के बाद खेत में लम्बी-लम्बी क्यारियां बना लेनी चाहिए जिससे पानी लगाने में सुविधा रहे और साथ ही साथ बैलों द्वारा चालित मशीनों तथा ट्रेक्टर द्वारा चालित मशीनों द्वारा कटाई की जा सकेI

बरसीम और जई की फसल में पोषण प्रबंधन 

बरसीम में नत्रजन की मात्रा की आवश्यकता कम पड़ती हैI बरसीम हेतु 20 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से बोते समय खेत में छिड़ककर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए इसके बाद क्यारी बनाकर पानी भरना चाहिए तथा बुवाई के बाद करते हैI

जई की खेती में 60 किलोग्राम नत्रजन तथा 40 किलोग्राम फास्फोरस अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिएI 20 किलोग्राम नत्रजन को बराबर-बराबर मात्रा में दो बार में देना चाहिएI पहली बार बुवाई के 20 से 25 दिन बाद छिड़ककर सिंचाई करनी चाहिए तथा दूसरी मात्रा इसी तरह से पहली कटाई के बाद देना चाहिए जिस भूमि में सल्फर कम हो उसमे 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर से प्रयोग करना चाहिएI

बरसीम में पहली सिंचाई बीज अंकुरित होने के तुरंत बाद करनी चाहिए बाद में प्रत्येक सप्ताह के अंतर पर दो-तीन सिंचाई करनी चाहिए इसके बाद अंत तक 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें तथा मार्च से मई तक 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिएI

जई को पलेवा करके खेत को तैयार करके बुवाई करने पर आगे की सिंचाईयां एक माह के अंतराल पर करनी चाहिएI कल्ले निकलते समय एवं फूल आने पर सिंचाई करना अति आवश्यक हैI

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