डेयरी पालन छोटे एवं सीमांत किसानों और कृषि मजदूरों के लिए आय का एक सशक्त माध्यम बन चुका है। यह न केवल दूध उत्पादन तक सीमित है, बल्कि इससे प्राप्त गोबर का उपयोग भूमि की उर्वरता बढ़ाने, फसल उत्पादन सुधारने और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए भी किया जाता है।
गोबर से उत्पन्न बायोगैस घरेलू ईंधन के रूप में और सिंचाई के लिए इंजन चलाने हेतु ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनती है। अतिरिक्त चारा और कृषि उपोत्पादों का उपयोग पशुओं के आहार के रूप में करके लागत को काफी हद तक घटाया जा सकता है।
इसके अलावा, बैल कृषि कार्यों और माल ढुलाई में भी अहम भूमिका निभाते हैं। कृषि के मौसमीय स्वरूप के कारण जहाँ किसानों को आमतौर पर केवल कुछ महीनों के लिए ही रोजगार मिलता है, वहीं डेयरी पालन उन्हें सालभर कार्य और स्थायी आय प्रदान करता है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार आता है और वे अधिक आत्मनिर्भर बनते हैं।
विश्व बैंक के अनुसार, भारत की लगभग 75% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जहाँ छोटे किसानों और भूमिहीन मजदूरों के पास देश के कुल पशु संसाधनों का 53% हिस्सा है, जो कुल दूध उत्पादन में 51% का योगदान देते हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि भारत के दुग्ध उत्पादन में इन वर्गों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। शहरी क्षेत्रों के निकट डेयरी फार्म स्थापित करना और भी अधिक लाभकारी सिद्ध होता है, क्योंकि वहाँ दूध की मांग निरंतर बनी रहती है।
डेयरी फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकारें भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। केंद्र और राज्य स्तर पर विभिन्न वित्तीय सहायता और अनुदान योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
उदाहरणस्वरूप, नवें पंचवर्षीय योजना के तहत डेयरी विकास के लिए ₹2,345 करोड़ का प्रावधान किया गया था, जिससे इस क्षेत्र को नई गति मिली।
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डेयरी यूनिट स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता और ऋण सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। NABARD जैसे संस्थान किसानों को ऋण और पुनर्वित्त सुविधा प्रदान करते हैं।
वाणिज्यिक और सहकारी बैंकों के माध्यम से ऋण आवेदन किया जा सकता है। बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करना आवश्यक होता है, जिसमें पशुओं की खरीद, आवास, उपकरण, चारा लागत, परिवहन और दूध प्रोसेसिंग आदि का विवरण शामिल होता है।
भूमि की खरीद का खर्च सीधे ऋण में शामिल नहीं होता, लेकिन यदि भूमि विशेष रूप से डेयरी फार्म के लिए खरीदी जाती है, तो उसकी लागत का 10% किसानों के अंशदान के रूप में मान्य किया जा सकता है।
अंततः कहा जा सकता है कि डेयरी पालन न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करता है।
आधुनिक प्रबंधन तकनीकों, सरकारी सहयोग और उचित विपणन रणनीतियों को अपनाकर डेयरी फार्मिंग आज के समय में एक स्थायी और अत्यधिक लाभकारी व्यवसाय के रूप में उभर रही है।