साहीवाल गाय से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 30-Dec-2024
साहीवाल

साहीवाल नस्ल के पशुओं के शरीर का रंग लाल-भूरा, आकार मध्यम, छोटी टांगे, सिर चौड़ा होता है। छोटे और भारी सींग, गर्दन के नीचे लटकती हुई भारी चमड़ी और भारी लेवा होता है। 

यह सर्वाधिक दूध देने वाली भारतीय नस्ल है। यह नस्ल पंजाब के फिरोजपुर और अमृतसर जनपद में तथा राजस्थान के श्री गंगानगर जनपद में पायी जाती है। 

पंजाब में फिरोजपुर जनपद के फाजिल्का और अबोहर कस्बों में शुद्ध साहीवाल गायों के झुंड उपलब्ध रहते हैं। 

इस नस्ल के बैल काफी सुस्त और काम में धीमे होते हैं। इस नस्ल को लंबी बार, लोला, मोंटगोमेरी, मुल्तानी और तेली के नाम से जाना जाता है। 

इस नस्ल के प्रौढ़ बैल का औसतन भार 5.5 क्विंटल और गाय का औसतन भार 4 क्विंटल तक होता है।

साहीवाल गाय के लिए खुराक प्रबंधन 

  • साहीवाल नस्ल की गायों को आवश्यकता के अनुसार ही खुराक दें। फलीदार चारे को खिलाने से पहले उनमें तूड़ी या अन्य चारे को मिला दें, ताकि अफारा या बदहजमी ना हो। 
  • जरूरत के मुताबिक खुराक का प्रबंध नीचे लिखे अनुसार है। जानवरों के लिए आवश्यक खुराकी तत्व: उर्जा, प्रोटीन, खनिज पदार्थ और विटामिन।

साहीवाल गाय के लिए खुराकी वस्तुऐं क्या हैं ?

1. अनाज और इसके अन्य पदार्थ 

मक्की, जौं, ज्वार, बाजरा, छोले, गेहूं, जई, चोकर, चावलों की पॉलिश, मक्की का छिलका, चूनी, बड़ेवें, बरीवर शुष्क दाने, मूंगफली, सरसों, बड़ेवें, तिल, अलसी, मक्की से तैयार खुराक, गुआरे का चूरा, तोरिये से तैयार खुराक, टैपिओका, टरीटीकेल आदि।

2. हरे चारे 

बरसीम (पहली, दूसरी, तीसरी, और चौथी कटाई), लूसर्न (औसतन), लोबिया (लंबी ओर छोटी किस्म), गुआरा, सेंजी, ज्वार (छोटी, पकने वाली, पकी हुई), मक्की (छोटी और पकने वाली), जई, बाजरा, हाथी घास, नेपियर बाजरा, सुडान घास आदि।

3. सूखे चारे और अचार 

बरसीम की सूखी घास, लूसर्न की सूखी घास, जई की सूखी घास, पराली, मक्की के टिंडे, ज्वार और बाजरे की कड़बी, गन्ने की आग, दूर्वा की सूखी घास, मक्की का आचार, जई का आचार आदि।

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4. अन्य रोजाना खुराक भत्ता 

मक्की/ गेहूं/ चावलों की कणी, चावलों की पॉलिश, छाणबुरा/ चोकर, सोयाबीन/ मूंगफली की खल, छिल्का रहित बड़ेवे की ख्ल/सरसों की खल, तेल रहित चावलों की पॉलिश, शीरा, धातुओं का मिश्रण, नमक, नाइसीन आदि।

शैड की आवश्यकता

  • पशुओं को अच्छे प्रदर्शन के लिए अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की जरूरत होती है। 
  • पशुओं को भारी बारिश, तेज धूप, बर्फबारी, ठंड और परजीवी से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है। सुनिश्चित करें, कि चुने हुए शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा होनी चाहिए। 
  • पशुओं की संख्या के अनुसार भोजन के लिए जगह काफी बड़ी और खुली होनी चाहिए, जिससे कि वे आसानी से भोजन खा सकें। 
  • पशुओं के व्यर्थ पदार्थ की निकास पाइप 30-40 सैं.मी. चौड़ी और 5-7 सैं.मी. गहरी होनी चाहिए।

गाभिन पशुओं क देखभाल

अच्छे प्रबंधन का नतीजा अच्छे बछड़े में होगा और दूध की मात्रा भी अधिक मिलती है। गाभिन गाय को 1 किलो अधिक फीड दें, क्योंकि वे शारीरिक रूप से भी बढ़ती है।

बछड़ों की देखभाल और प्रबंधन

  • जन्म के शीघ्र उपरांत नाक या मुंह के आस पास चिपचिपे पदार्थ को साफ करना चाहिए। 
  • अगर बछड़ा सांस नहीं ले रहा है तो उसे दबाव द्वारा बनावटी सांस दें और हाथों से उसकी छाती को दबाकर आराम दें। शरीर से 2-5 सैं.मी. की दूरी पर से नाभि को बांधकर नाडू को काट दें। 
  • 1-2 प्रतिशत आयोडीन की सहायता से नाभि को आस पास से साफ करना चाहिए।

सिफारिश किए गए टीके

  • जन्म के पश्चात कटड़े/बछड़े को 6 महीने के हो जाने पर पहला टीका ब्रूसीलोसिस का लगवाएं। फिर एक महीने उपरांत आप मुंह खुर का टीका लगवाएं और गलघोटू का भी टीका लगवाएं। 
  • एक महीने के बाद लंगड़े बुखार का टीका लगवाएं। बड़ी उम्र के पशुओं की हर तीन माह के पश्चात डीवॉर्मिंग करें। 
  • कट्डे/बछड़े के एक महीने से पहले सींग ना दागें। एक बात का और ध्यान रखें कि पशु को बेहोश करके सींग ना दागें आजकल इलैक्ट्रोनिक हीटर से ही सींग दागें।

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