सरकार ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में उत्पन्न धान के भूसे के कुशल पूर्व-स्थिति प्रबंधन को सक्षम करने के उद्देश्य से फसल अवशेष प्रबंधन योजना दिशानिर्देशों को संशोधित किया है। तकनीकी-वाणिज्यिक पायलट परियोजनाओं की स्थापना के लिए प्रावधान किए गए हैं।
लाभार्थी/एग्रीगेटर (किसान, ग्रामीण उद्यमी, किसानों की सहकारी समितियां, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और पंचायतें) और धान के भूसे का उपयोग करने वाले उद्योगों के द्विपक्षीय समझौते के तहत धान के भूसे की आपूर्ति श्रृंखला के लिए किया गया है।मशीनरी की पूंजीगत लागत पर 65% की दर से वित्तीय सहायता रुपये तक की लागत सरकार की ओर से 1.50 करोड़ रुपये उपलब्ध कराये गये हैं। परियोजना के प्राथमिक प्रमोटर के रूप में उद्योग को परियोजना लागत का 25% योगदान देना होगा और शेष 10% लाभार्थी/एग्रीगेटर का योगदान होगा।
अगले तीन वर्षों के दौरान, इस पहल के माध्यम से 1.5 मिलियन मीट्रिक टन अधिशेष धान का भूसा एकत्र होने की उम्मीद है। प्रत्येक परियोजना की संग्रहण क्षमता 4500 टन/वर्ष मानते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि 1.5 मिलियन मीट्रिक टन धान के भूसे को एकत्रित करने के लिए कुल 333 परियोजनाएँ स्थापित करनी होंगी।
यह पहल इन-सीटू विकल्पों के माध्यम से धान के भूसे प्रबंधन के प्रयासों को पूरक बनाएगी और धान के डंठल जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने में मदद करेगी। इस हस्तक्षेप का उद्देश्य बायोमास बिजली उत्पादन और जैव ईंधन क्षेत्रों में विभिन्न अंतिम उपयोगकर्ता उद्योगों के लिए धान के भूसे की एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करना है और इस प्रकार इन क्षेत्रों में नए निवेश के रास्ते और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी पैदा करना है।
यह जानकारी केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी है।