भारत एक कृषि प्रधान देश है, इसकी लगभग 60% से ज्यादा आबादी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।
कृषि को भारत की रीढ़ की हड्डी की संज्ञा या उपाधि दी जाती है। भारत में अनेकों प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है। कुछ भारतीय फसलें विश्व पटल पर अपना विशेष स्थान रखती हैं।
आज हम भारत की एक ऐसी खेती के संदर्भ में चर्चा करेंगे, जो कि सर्वाधिक मध्य प्रदेश के हिस्सों में की जाती है।
अगर हम भारतीय वन संरक्षण द्वारा प्रेषित आंकड़े के मुताबिक बात करें तो मध्य प्रदेश में 18394 वर्ग किलोमीटर का बांस क्षेत्र है, जो कि भारत में सबसे ज्यादा है।
बांस एक वाणिज्यिक फसल है, जिसको प्लास्टिक का विकल्प भी कहते हैं। किसान भाई आज के समय में बांस के उपयोग से विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे कि चटाइयां, टोकरियां, बर्तन, सजावटी सामान, जाल, मकान, खिलौने और फर्नीचर जैसे विभिन्न सामान बनाकर बेचे जा रहे हैं।
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बांस के उपयोग से तैयार किए गए उत्पादों की मांग अब केवल भारत ही नहीं विदेशों में भी बड़ी तेजी से बढ़ रही है।
यही प्रमुख कारण है, कि आज इस मांग को पूरा करने के लिए बहुत सारे राज्यों में बांस आधारित उद्योग और बांस की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
जहां एक ओर केंद्र सरकार ने नेशनल बैंबू मिशन चलाया है, तो वहीं दूसरी तरफ मध्यप्रदेश सरकार भी बांस की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 50% प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है।
यदि आप भी मध्यप्रदेश के किसान हैं, तो आधे खर्चे में बांस की खेती कर सकते हैं। शेष बची हुई आधी धनराशि राज्य सरकार के द्वारा प्रदान की जाएगी।
जी हाँ, बांस की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निरंतर बढ़ती मांग की वजह से अब मध्य प्रदेश सरकार बांस की खेती करने वाले किसानों को सब्सिडी दे रही है, आप भी बांस की खेती कर मोटी कमाई उगा सकते हैं।
इसमें आपको केवल 50 प्रतिशत खर्च करना है, बाकी का आधा पैसा राज्य सरकार वहन करेगी।
भारत के अंदर बांस की खेती के क्षेत्रफल की दृष्टि से मध्य प्रदेश अग्रणीय राज्य है। भारतीय वन संरक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में 18394 वर्ग किलोमीटर का बांस क्षेत्र है, जो कि देश में सबसे ज्यादा है। वहीं, अरुणाचल प्रदेश द्वितीय और महाराष्ट्र तृतीय स्थान पर आता है।
वर्तमान में मध्य प्रदेश में बांस के प्रत्येक वृक्ष पर सरकार 120 रुपये की सब्सिड़ी प्रदान कर रही है।
इससे पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने भी बांस की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 50% प्रतिशत अनुदान देने का फैसला लिया था।