आम की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

By : Tractorbird Published on : 02-May-2025
आम

आम (Mangifera indica) भारत की प्रमुख फल फसल है और इसे फलों का राजा माना जाता है। स्वादिष्टता, उत्कृष्ट खुशबू और आकर्षक सुगंध के साथ-साथ यह विटामिन A और C से भरपूर होता है। 

आम का पेड़ स्वभाव से मजबूत होता है और इसकी देखभाल में अपेक्षाकृत कम खर्च आता है।

भारत में फलों के तहत कुल क्षेत्रफल का 22% भाग आम के अधीन है, जो लगभग 12 लाख हेक्टेयर में फैला है, और इसका कुल उत्पादन लगभग 1.1 करोड़ टन है। 

उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक क्षेत्रफल आम की खेती के अंतर्गत है, प्रत्येक राज्य में लगभग 25% क्षेत्रफल है, इसके बाद बिहार, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु का स्थान है।

ताजे आम और आम का गूदा भारत के प्रमुख कृषि-निर्यात उत्पाद हैं। भारत के आम के मुख्य निर्यात गंतव्य यूएई, कुवैत और अन्य मध्य-पूर्वी देश हैं, जबकि सीमित मात्रा में यूरोपीय बाजार में भी निर्यात होता है। 

भारत विश्व का सबसे बड़ा आम उत्पादक देश है, जो विश्व उत्पादन का लगभग 60% प्रदान करता है, फिर भी ताजे आम का निर्यात केवल अल्फांसो और दशहरी किस्मों तक सीमित है। 

विश्व आम बाजार में भारत की हिस्सेदारी लगभग 15% है। आम देश के कुल फल निर्यात का 40% हिस्सा बनाता है। देश में आम की खेती के क्षेत्र और उत्पादकता बढ़ाने की अच्छी संभावना है।

आम की खेती के लिए जलवायु 

आम को उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय दोनों प्रकार की जलवायु में समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जा सकता है, बशर्ते कि फूल आने के समय अत्यधिक नमी, वर्षा या पाला न हो। 

अच्छी वर्षा और सूखी गर्मी वाले स्थान आम की खेती के लिए उपयुक्त होते हैं। ऐसे क्षेत्रों से बचना चाहिए जहाँ तेज़ हवाएं या चक्रवात आते हैं, क्योंकि इससे फूल और फल झड़ सकते हैं और शाखाएँ टूट सकती हैं।

आम की खेती के लिए मिट्टी 

आम की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टियों जैसे की जलोढ़ से लेकर लेटराइट मिट्टी तक में की जा सकती है, बशर्ते मिट्टी गहरी (कम से कम 6 फीट) और अच्छी जल निकासी वाली हो। आम को हल्की अम्लीय मिट्टी (pH 5.5 से 7.5) पसंद होती है।

आम की खेती की उन्नत किस्में 

भारत में लगभग 1000 किस्मों के आम पाए जाते हैं, लेकिन नीचे दी गई किस्में विभिन्न राज्यों में प्रमुख रूप से उगाई जाती हैं:

अल्फांसो, बंगालोरा, बंगनपल्ली, बम्बई, बॉम्बे ग्रीन, दशहरी, फजली, फर्नांदिन, हिमसागर, केसर, किशन भोग, लंगड़ा, मानखुर्द, मुलगोआ, नीलम, समरबहिश्त, चौसा, सुवर्णरेखा, वनराज और ज़रदालु।

आम की खेती में पौधे कैसे तैयार किए जाते है ?

किसानों को हमेशा प्रमाणित नर्सरियों से पौधों की पहचान कर, असली किस्मों के वनस्पतिक (vegetatively propagated) पौधे लेने चाहिए। आम के प्रजनन की लोकप्रिय विधियाँ हैं:

- इनआर्चिंग (Inarching)

- विनीयर ग्राफ्टिंग (Veneer Grafting)

- साइड ग्राफ्टिंग (Side Grafting) 

- एपिकॉटिल ग्राफ्टिंग (Epicotyl Grafting)

ये भी पढ़ें: आम की फसल (mango farming) में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण

रोपण (Planting):

भूमि की गहरी जुताई कर, बाद में हरोइंग और समतलीकरण कर हल्की ढलान दी जाती है ताकि जल निकासी सुचारु रहे।

स्पेसिंग:

- शुष्क क्षेत्रों में 10x10 मीटर

- भारी वर्षा व उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्रों में 12x12 मीटर

- बौनी किस्में जैसे अमरपाली को कम दूरी पर लगाया जा सकता है।

गड्ढे भरना:

गड्ढों को मूल मिट्टी में 20–25 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद (FYM), 2.5 किग्रा सिंगल सुपर फॉस्फेट, और 1 किग्रा म्यूरिएट ऑफ पोटाश मिलाकर भरें।

पौध रोपण का समय और तरीका:

बारिश के मौसम में एक वर्ष पुराने, सीधे बढ़ने वाले, स्वस्थ ग्राफ्ट को मिट्टी की गांठ के साथ इस प्रकार लगाएँ कि जड़ें फैले नहीं और ग्राफ्ट का जोड़ ज़मीन के ऊपर रहे। रोपण के बाद तुरंत सिंचाई करें।

प्रारंभिक 1–2 वर्षों में पौधों को छाया और सहारा देना लाभकारी होता है ताकि वे सीधे और स्वस्थ बढ़ सकें।

आम की खेती में प्रशिक्षण और छंटाई (Training and Pruning):

मुख्य तने से लगभग एक मीटर की ऊँचाई तक शाखाओं को नहीं बढ़ने देना चाहिए। इसके बाद मुख्य तने से 20–25 सेंटीमीटर की दूरी पर शाखाओं को इस तरह फैलने देना चाहिए कि वे विभिन्न दिशाओं में बढ़ें। 

जो शाखाएं एक-दूसरे के ऊपर से गुज़रती हैं या आपस में रगड़ खाती हैं, उन्हें पेंसिल की मोटाई के समय ही हटा देना चाहिए।

आम की खेती में उर्वरक प्रबंधन (Fertiliser Application):

आमतौर पर पहले वर्ष से दसवें वर्ष तक, प्रति पौधा प्रति वर्ष निम्नलिखित मात्रा में खाद दी जाती है:

- 170 ग्राम यूरिया

- 110 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट

- 115 ग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश

दस वर्ष के बाद यह मात्रा बढ़ा कर की जाती है:

- 1.7 किलोग्राम यूरिया

- 1.1 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट

- 1.15 किलोग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश

इन उर्वरकों को दो बराबर भागों में बाँटकर जून-जुलाई और अक्टूबर में देना चाहिए। रेत वाली ज़मीनों में फूल आने से पहले 3% यूरिया का पत्तियों पर छिड़काव करना लाभकारी होता है।

आम की खेती में सिंचाई (Irrigation):

नए पौधों को अच्छी बढ़वार के लिए बार-बार सिंचाई करनी चाहिए।

बड़े पेड़ों में फल सेट होने से पकने तक 10–15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करने से उत्पादन बेहतर होता है।

हालाँकि, फूल आने से पहले 2–3 महीने तक सिंचाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे पौधे में अनावश्यक पत्तों की वृद्धि हो सकती है और फूलों की संख्या घट सकती है।

आम की फसल की कटाई और उपज (Harvesting and Yield):

कलम किए हुए पौधे 3–4 साल की उम्र में फल देना शुरू कर देते हैं (10–20 फल प्रति पौधा)।

10 से 15 वर्ष की उम्र में पौधा अधिकतम उपज देने लगता है और अच्छे प्रबंधन में यह क्षमता 40 वर्ष तक बनी रहती है।

आम की खेती में कटाई के बाद भंडारण (Storage):

आम का शेल्फ लाइफ (खपत अवधि) कम (2 से 3 सप्ताह) होता है, इसलिए फलों को 13 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर जल्दी से ठंडा करना चाहिए। कुछ किस्में 10 डिग्री सेल्सियस तक सहन कर सकती हैं।

कटाई के बाद के मुख्य कार्य होते हैं:

- तैयारी

- ग्रेडिंग

- धुलाई

- सुखाना

- वैक्सिंग

- पैकिंग

- प्री-कूलिंग

- पैलेटाइजेशन

- परिवहन

आम के फलों की पैकेजिंग (Packaging):

आम को सामान्यतः 40 सेमी × 30 सेमी × 20 सेमी के नालीदार फाइबर बोर्ड के डिब्बों में पैक किया जाता है।

प्रत्येक डिब्बे में आमों की एक पंक्ति में 8 से 20 फल भरे जाते हैं।

डिब्बे में लगभग 8% क्षेत्रफल में हवा के छेद होने चाहिए ताकि वेंटिलेशन अच्छी बनी रहे।

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