उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन और किसानों की आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से पशुपालन, विशेषकर बकरी पालन को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
सरकार की इस पहल का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति के भूमिहीन और आर्थिक रूप से कमजोर पशुपालकों को आत्मनिर्भर बनाना है, जिससे उनकी आय बढ़े और कुपोषण से भी बचाव हो सके। योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सभी जिलाधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए हैं।
पशुधन विभाग के अनुसार, इस योजना से न केवल बकरी मांस और दूध का उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि इससे प्रदेश की सकल आय में भी इजाफा होगा। साथ ही, अनुसूचित जाति के गरीब परिवारों को स्थायी रोजगार मिलने से उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में भी सुधार आएगा।
बकरी पालन एक लाभदायक एवं कम जोखिम वाला व्यवसाय माना जाता है, जो ग्रामीण जीवनशैली और पोषण से सीधा जुड़ा हुआ है। इस योजना के तहत राज्य के सभी 75 जिलों में प्रतिवर्ष 750 बकरी पालन इकाइयों (प्रत्येक जिले में 10 इकाइयाँ) की स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
प्रत्येक इकाई में एक नर और पाँच मादा बकरियाँ दी जाएंगी। पशुधन विभाग ने एक इकाई की कुल लागत ₹60,000 तय की है, जिसमें से 90% यानी ₹54,000 की राशि अनुदान के रूप में सरकार द्वारा दी जाएगी, जबकि शेष 10% (₹6,000) लाभार्थी को स्वयं वहन करना होगा। इसमें पशुओं की खरीद, बीमा, चिकित्सा और परिवहन की लागत भी शामिल होगी।
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इस योजना का लाभ वे अनुसूचित जाति के बेरोजगार महिला एवं पुरुष पशुपालक ले सकते हैं, जिनकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है और जिनके पास बकरियों को रखने के लिए उचित स्थान उपलब्ध है।
प्रशिक्षण प्राप्त आवेदकों को प्राथमिकता दी जाएगी, विशेष रूप से भेड़-बकरी पालन प्रशिक्षण केंद्र, इटावा या केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा से प्रशिक्षण प्राप्त उम्मीदवारों को।
इसके अतिरिक्त, विधवा एवं निराश्रित महिलाओं और दिव्यांगजन को भी योजना में प्राथमिकता दी जाएगी।
इस योजना से न सिर्फ लाभार्थियों की आय में वृद्धि होगी बल्कि उन्हें एक स्थायी आजीविका का साधन भी मिलेगा।