नाशपाती की खेती के बारे में विस्तार से जानिए यहां

By : Tractorbird News Published on : 15-Mar-2025
नाशपाती

नाशपाती (Pyrus) प्रजाति की संभावित उत्पत्ति पर्वतीय चीन मानी जाती है। वहाँ से यह पूर्व और पश्चिम की ओर फैली और विभिन्न पारिस्थितिक परिस्थितियों के अनुसार इसका विकास हुआ। 

नाशपाती, सेब के बाद दूसरा महत्वपूर्ण समशीतोष्ण फल है। इसमें शर्करा, स्टार्च और सेलूलोज़ के रूप में कार्बोहाइड्रेट होते हैं और कैल्शियम (8 मिलीग्राम/100 ग्राम), फॉस्फोरस (15 मिलीग्राम/100 ग्राम) और सल्फर (14 मिलीग्राम/100 ग्राम) जैसे खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

इस लेख में नाशपाती की खेती, उसकी जलवायु आवश्यकताएँ, किस्में, प्रवर्धन (प्रोपेगेशन), रोपण, प्रशिक्षण, खाद एवं उर्वरक प्रबंधन, कटाई, उपज, भंडारण और परिपक्वता प्रक्रिया का विवरण दिया गया है।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ 

  • नाशपाती विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में उगाई जा सकती है। यह -26°C (सुप्तावस्था में) से लेकर 45°C (विकास चरण में) तक सहन कर सकती है। 
  • अधिकांश किस्मों को उचित फूल और फलन के लिए लगभग 1200 घंटे 7°C से कम तापमान की आवश्यकता होती है। 
  • हालाँकि, कलियाँ निकलने के बाद यदि फूलने और फलने की अवस्था में तापमान शून्य से नीचे चला जाए, तो फसल को भारी नुकसान हो सकता है।
  • नाशपाती समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय दोनों क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में यह समुद्र तल से 1300-2100 मीटर की ऊँचाई पर उगाई जाती है। 
  • इसकी खेती के लिए गहरी, अच्छी जल निकासी वाली, उपजाऊ और मध्यम बनावट वाली चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH 6.0 से 7.5 के बीच होना आदर्श माना जाता है। 
  • न्यूनतम 180 सेंटीमीटर गहरी मिट्टी आवश्यक होती है। नाशपाती, सेब की तुलना में सूखे को कम सहन कर पाती है लेकिन अधिक नमी वाली मिट्टी को बेहतर सहन कर सकती है।

नाशपाती की उन्नत किस्मे

नाशपाती की किस्मों को तीन प्रमुख समूहों में बाँटा जाता है:

1. यूरोपीय प्रकार (Pyrus communis)

2. एशियाई प्रकार (Pyrus pyrifolia, Pyrus ussuriensis और इनके संकर) 

3. यूरोपीय और एशियाई प्रकारों के संकर

यूरोपीय प्रकार (Tail Pears):

1. बार्टलेट (या विलियम्स नाशपाती)

  - यह दुनिया भर में (चीन और जापान को छोड़कर) सबसे लोकप्रिय व्यावसायिक किस्म है। 

 - इसे कली टूटने और फूलने के लिए 1500 घंटे ठंड की आवश्यकता होती है।

 - फल मध्यम बड़े, हार्वेस्ट के समय हरे और पकने पर चमकीले पीले रंग के होते हैं।

 - गूदा सफेद, मुलायम, दृढ़ और रसीला होता है।

 - इसकी उत्पत्ति इंग्लैंड में हुई थी।

2. एंजू (Anjou)

 - यह फ्रांस में विकसित हुई किस्म है।

   - कम तापमान और "फायर ब्लाइट" रोग के प्रति सहनशील।

   - फल बड़े, गहरे हरे रंग के, पकने पर हल्के हरे-पीले हो जाते हैं।

   - गूदा महीन, हल्का अम्लीय और बेहतरीन स्वाद वाला होता है।

3. फ्लेमिश ब्यूटी (Flemish Beauty)

   - वृक्ष बड़े और शाखाओं से भरे होते हैं।  

   - फल बड़े, चिकने और श्वेत गूदे वाले होते हैं।  

   - रस से भरपूर और ग्रिट कोशिकाओं से मुक्त।  

   - यह आत्म-परागण करने वाली किस्म है और परागण के लिए अन्य किस्मों के साथ भी उगाई जा सकती है।  

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4. मैक्स रेड बार्टलेट (Max Red Bartlett)  

   - बार्टलेट का एक उत्परिवर्ती रूप, फल गहरे लाल रंग के होते हैं।  

5. जॉर्गोनेल (Jargonelle)  

   - यूरोपीय किस्म, जिसे दक्षिण भारतीय पहाड़ियों (जैसे कोडईकनाल) में गर्म सर्दियों की स्थितियों के लिए अनुकूल माना गया है।  

6. स्टारक्रिमसन (Starcrimson)  

   - फल मध्यम आकार के, गहरे लाल रंग के और उत्कृष्ट मिठास व स्वाद के साथ होते हैं।  

एशियाई प्रकार और संकर (Common Pears):  

1. कीफर (Kieffer)  

   - विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के लिए अनुकूल और "फायर ब्लाइट" रोग के प्रति मध्यम रूप से प्रतिरोधी।  

   - फल भूरे, खुरदरे और सख्त होते हैं।  

   - यह आत्म-अनुपजाऊ (Self-unfruitful) किस्म है।  

2. गोला (Gola)  

   - कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त।  

   - फल बड़े, गोल और लंबी दूरी के परिवहन के लिए आदर्श होते हैं।  

3. ले कॉन्टे (Le Conte)

   - कम ऊँचाई वाली पहाड़ियों के लिए उपयुक्त।  

   - फल छोटे, गोल और हल्के हरे-पीले रंग के होते हैं।  

   - यह "फायर ब्लाइट" रोग के प्रति संवेदनशील होती है।

4. पठारनख (Pathar Nakh)

   - यह कम ठंड सहने वाली किस्म है।

   - उच्च तापमान और गर्म हवाओं के प्रति सहिष्णु।

   - सूखे और जलभराव दोनों को सहन करने की विशेषता।

   - फल गोल और मजबूत छिलके वाले होते हैं, जिससे यह लंबी दूरी के परिवहन के लिए आदर्श है।

नाशपाती के पौधे कैसे तैयार किये जाते हैं ?

- नाशपाती का व्यावसायिक रूप से प्रवर्धन शील्ड या ‘T’ बडिंग और व्हिप एवं टंग ग्राफ्टिंग द्वारा किया जाता है।

- अधिकतर Pyrus communis की संकर प्रजातियाँ जड़-स्टॉक के रूप में उपयोग की जाती हैं।

- Quince (Cydonia oblonga) का उपयोग भी जड़-स्टॉक के रूप में किया जाता है, क्योंकि यह ऊनी एफिड्स और सूत्रकृमियों के प्रति प्रतिरोधी है।

खेत की तैयारी और रोपाई:

रोपाई से एक वर्ष पहले, खेत को तैयार करना आवश्यक है। इसके लिए पुराने पेड़ों और झाड़ियों की जड़ें और तने हटाकर भूमि को समतल किया जाता है, जिससे भारी बारिश के दौरान अतिरिक्त पानी की निकासी सुनिश्चित हो सके। 

रोपाई की दूरी:

- यदि पेड़ अपने मूल रूटस्टॉक (निजी जड़ प्रणाली) पर लगाया जाता है, तो प्रारंभिक दूरी 3 मीटर × 2 मीटर रखी जाती है, जिसे 4-5 वर्षों के बाद 6 मीटर × 4 मीटर किया जाता है।

- यदि नाशपाती को क्विंस (Quince) रूटस्टॉक पर लगाया जाता है, तो 3.5 मीटर × 1.1 मीटर की दूरी पर्याप्त होती है, क्योंकि क्विंस के कारण वृक्ष छोटे रहते हैं।

गड्ढे की तैयारी:

- प्रत्येक गड्ढे का आकार 1 मीटर × 1 मीटर × 1 मीटर होना चाहिए।

- इन गड्ढों को मिट्टी और खाद के मिश्रण से भरकर तैयार किया जाता है।

- रोपाई पतझड़ के अंत (late fall) या वसंत ऋतु (early spring) में की जाती है।

- रोपाई के तुरंत बाद, पौधों के चारों ओर थाला (basin) बनाकर सिंचाई की जाती है। 

प्रशिक्षण (Training) और छंटाई (Pruning):

नाशपाती के पेड़ों को विभिन्न प्रणालियों में प्रशिक्षित किया जाता है, जैसे कि पाइन-आकार, पिरामिड, स्पिंडल, पैलमेट और ट्रेलिस।

- पैलमेट सिस्टम और टाटुरा ट्रेलिस (Tatura Trellis) व्यावसायिक रूप से अधिक लाभदायक माने जाते हैं। 

- टाटुरा ट्रेलिस प्रणाली में पंक्तियाँ उत्तर-दक्षिण दिशा में होती हैं। प्रत्येक पेड़ को शीर्ष से काटकर दो शाखाएँ विकसित की जाती हैं, जो पूर्व-पश्चिम दिशा में ‘Y’ आकार बनाती हैं। 

- स्टील के फ्रेम और तारों का उपयोग कर शाखाओं को 4-5 मीटर की ऊँचाई तक सहारा दिया जाता है।

- फलों वाले वृक्षों की छंटाई (Pruning) हेडिंग बैक (heading back) और थिनिंग आउट (thinning out) दोनों विधियों से की जाती है। 

- नाशपाती में फल दो वर्ष पुराने लकड़ी के स्पर्स (spurs) पर लगते हैं, और ये स्पर्स छह वर्षों तक फल दे सकते हैं। 

खाद एवं उर्वरक (Manures and Manuring):

उच्चतम उपज प्राप्त करने के लिए प्रति पेड़ निम्नलिखित उर्वरकों की आवश्यकता होती है: 

- नाइट्रोजन (N): 600 ग्राम 

- फॉस्फोरस (P): 150 ग्राम 

- पोटैशियम (K): 300 ग्राम 

महत्वपूर्ण बातें:

- सामान्यत: नाशपाती में फॉस्फोरस (P) और पोटाश (K) की प्रतिक्रिया तभी स्पष्ट रूप से देखी जाती है जब मिट्टी में इनकी उपलब्धता कम हो।

- ऊँचाई वाले क्षेत्रों में, जहाँ मिट्टी का pH 7 से कम होता है, वहाँ फॉस्फोरस का अवशोषण कम होता है।

- इसी तरह, जब मिट्टी का pH 7 से अधिक (क्षारीय मिट्टी) हो, तब भी फॉस्फोरस उपलब्ध नहीं होता।

- ऐसी परिस्थितियों में, अतिरिक्त फॉस्फोरस देने से उपज में वृद्धि होती है।

नाइट्रोजन का अनुप्रयोग:

- 60 ग्राम नाइट्रोजन प्रति पेड़ दो भागों में दिया जाता है: 

  - 2/3 भाग जनवरी में 

  - 1/3 भाग मई में 

- इसके साथ ही, 40 ग्राम फॉस्फोरस और 40 ग्राम पोटाश को बेसल ड्रेसिंग के रूप में दिया जाता है।

- यह संयोजन बगुगोशा (Babugosha) किस्म की कम-ठंडे की आवश्यकता वाली नाशपाती के लिए सबसे उपयुक्त पाया गया है।

फसल कटाई, उपज और भंडारण 

कटाई (Harvesting):

- पूरी तरह से परिपक्व फलों की कटाई की जाती है, लेकिन यदि फलों को लंबी दूरी तक भेजना हो, तो उन्हें थोड़ा कच्चा और हरा रहते हुए ही तोड़ा जाता है।

- स्थानीय बाजार के लिए, फलों को पेड़ पर ही पूरी तरह पकने दिया जाता है, जिससे उनकी गुणवत्ता बेहतर होती है।

- हर 3-4 दिन के अंतराल में 2-3 बार तुड़ाई की जाती है।

- फलों को सावधानीपूर्वक संभालना आवश्यक है, क्योंकि रगड़ लगने या डंठल (stalk) के टूटने से वे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।

उपज 

- एक अच्छी तरह से प्रबंधित बाग से 30-40 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष उपज प्राप्त की जा सकती है।

भंडारण (Storage):

- सही परिपक्वता पर तोड़े गए कच्चे फल को –1°C तापमान पर 5 महीने तक भंडारित किया जा सकता है।

- फलों को 15-21°C या 21-25°C तापमान और 80-85% आर्द्रता (RH) में 3-6 दिनों तक रखने से पकाने की प्रक्रिया पूरी होती है, जो किस्म के अनुसार भिन्न हो सकती है।

- अधिकांश व्यावसायिक किस्मों को कटाई के बाद ठंडी प्रक्रिया (chilling treatment) की आवश्यकता होती है ताकि फल सही ढंग से पकें।

- यदि यह ठंडी प्रक्रिया उपलब्ध न हो, तो फलों को एथिलीन गैस से उपचारित किया जा सकता है। इससे फल सही रूप से पकते हैं और स्वाद व रंग दोनों में सुधार होता है।

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