गर्मियों में मिर्च की खेती कैसे करें?

By : Tractorbird News Published on : 25-Mar-2025
गर्मियों

मिर्च की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है, मिर्च का उपयोग भारत की हर रसोई में किया जाता है। मिर्च की कई किस्में होती है जो की भारत में उगाई जाती है।

मिर्ची में एक अलकानोइड होता है जिसके कारण इसमें तीखा पन होता हैं। मिर्च हर भारतीय व्यंजन में एक महत्वपूर्ण सब्जी और मसाला है और पूरे देश में उगाई जाती है। 

तीखे रूपों का उपयोग हरी मिर्च, साबुत सूखी मिर्च, मिर्च पाउडर, मिर्च पेस्ट, मिर्च सॉस, मिर्च ओलियोरेसिन या मिश्रित करी पाउडर के रूप में किया जाता है। 

मसाले में सूखे मेवों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। इस लेख में हम आपको इस मिर्च की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे। 

मिर्च की खेती के लिए जलवायु 

  • मिर्च की खेती के लिए आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती हैं, मिर्च की खेती के लिए 15 से 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती हैं। 
  • इसकी खेती के लिए रात्रि का तापमान 16 से 21 डिग्री होना आवश्यक होता हैं इस तापमान में अच्छे फल बनते हैं।

भूमि की तैयारी

  • भूमि को 2-3 बार जुताई करके भुरभुरी (fine tilth) बनाई जानी चाहिए। अंतिम जुताई के समय खेत में गोबर की खाद (FYM) मिलानी चाहिए। 
  • मेड़ और नालियां (ridges and furrows) 45-60 सेमी की दूरी पर तैयार की जाती हैं। 
  • पौधों को समतल भूमि पर सिंचाई के लिए उपयुक्त आकार के प्लॉट्स में प्रतिरोपित किया जाता है।

बुवाई (Sowing)

ऊँची क्यारियों पर मिर्च की नर्सरी

  • 1.0-1.5 किलोग्राम बीज तीन सेंट क्षेत्र में बोया जाता है, जिससे एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त पौध तैयार हो सके। 
  • आमतौर पर 40-45 दिन पुरानी पौधों को खेत में प्रतिरोपित किया जाता है। 
  • प्रतिरोपण से लगभग 10 दिन पहले शिमला मिर्च और मिर्च के पौधों की शीर्ष कली काटने (clipping) से पार्श्व कली (axillary buds) की वृद्धि तेज होती है और शाखाएं अधिक फैलती हैं।

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प्रजातियां (Varieties)

भारत में इस फसल (तीखी और मीठी मिर्च) को पहली बार पुर्तगालियों ने लाया था, विशेष रूप से गोवा में। वर्तमान में, गोवा में इसकी तीन मुख्य किस्में हैं - तरवट्टी, लोवोंगी और पुर्तगाली, जो इसके स्थान, उपयोग और तीखेपन के आधार पर पहचानी जाती हैं। 

इनमें पुर्तगाली किस्म लगभग विलुप्त हो चुकी है। तरवट्टी किस्म अभी भी उपलब्ध है, क्योंकि यह बहुवर्षीय (perennial) किस्म है और इसके बीज पक्षियों द्वारा फैलाए जाते हैं।

- अर्का मेघना: उच्च उत्पादन देने वाली F1 संकर किस्म, जिसके फल लंबे (10 सेमी) होते हैं। यह जल्दी पकने वाली किस्म है, जो प्रतिरोपण के 25 दिनों बाद 50% फूल विकसित कर लेती है।

- पुसा ज्वाला: हरी मिर्च की उपज 7.5 टन/हेक्टेयर होती है। पौधे छोटे और झाड़ीदार होते हैं। फल 9-10 सेमी लंबे, हल्के हरे, पतले, घुमावदार और मध्यम तीखे होते हैं। यह मोज़ेक रोग के प्रति सहनशील है।

पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient Management)

  • अधिकांश राज्यों में 20 टन गोबर की खाद (FYM), 120 किग्रा नाइट्रोजन (N), 40-60 किग्रा फास्फोरस (P₂O₅) और 20-40 किग्रा पोटाश (K₂O) की सिफारिश की जाती है। 
  • गोबर की खाद को अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दिया जाता है। कुछ किसान इसे बोवाई की जगह (furrows) या पौधारोपण के स्थान पर बिंदुवार (spot application) भी डालते हैं। 
  • फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा प्रतिरोपण के 10-15 दिन बाद दी जाती है।

सिंचाई प्रबंधन (Water Management)

समय पर सिंचाई करना फल बनने और उनके विकास के लिए आवश्यक होता है। 

- गर्मी के मौसम में हर तीसरे या चौथे दिन सिंचाई की जरूरत होती है।

- सर्दियों में सिंचाई का अंतराल 7-8 दिन का होना चाहिए।

- कतारों में लगाए गए फसलों के लिए ड्रिप सिंचाई लाभकारी होती है, जिससे खाद भी आसानी से दी जा सकती है।

निराई-गुड़ाई प्रबंधन (Weed Management)

मिर्च की फसल में सभी अंतर-सांस्कृतिक क्रियाओं (intercultural operations) का उद्देश्य मिट्टी में नमी बनाए रखना, खरपतवार हटाना और मिट्टी को हवा प्रदान करना होता है।

- जब पौधे स्थापित हो जाते हैं, तो पहली गुड़ाई शुरू कर दी जाती है।

- प्रारंभिक अवस्था में, उथली गुड़ाई (shallow hoeing) की जाती है, ताकि खरपतवार हटाए जा सकें और मिट्टी की नमी सुरक्षित रखी जा सके।

- बाद की अवस्था में, गहरी गुड़ाई (deep hoeing) की जाती है, जिसमें मिट्टी चढ़ाना (earthing up) और मेड़-नाली बनाना (ridges and furrows) शामिल है।

- खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथ से निराई-गुड़ाई के साथ-साथ खरपतवारनाशी (herbicides) का उपयोग भी किया जाता है।

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