फ्रेंच बीन्स उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण दलहनी सब्जी फसलों में से एक है। इसे कोमल सब्जी, हरी दालों और सूखी फलियों (राजमा) के रूप में उगाया जाता है।
यह प्रोटीन, विटामिन और खनिजों से भरपूर होती है। इसकी 100 ग्राम हरी फलियों में 1.7 ग्राम प्रोटीन, 4.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 221 आई.यू. विटामिन-ए, 11 मि.ग्रा. विटामिन-सी, 50 मि.ग्रा. कैल्शियम आदि होते हैं। सूखी फलियाँ प्रोटीन से भरपूर होती हैं।
फ्रेंच बीन्स एक अल्पावधि फसल है, जिससे किसानों को कम समय में अधिक लाभ मिलता है।
इस क्षेत्र में इसे वसंत-ग्रीष्म ऋतु में धान की परती भूमि में और शरद-शीत ऋतु में पहाड़ी ढलानों पर उगाया जाता है। सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध होने पर इसे वर्षभर उगाने की संभावना होती है।
फ्रेंच बीन्स की किस्मों को दो समूहों में वर्गीकृत किया जाता है:
1. बौनी या झाड़ीदार किस्में – कंटेंडर, पूसा पार्वती, पंत अनुपमा, अर्का कोमल, सिलेक्शन-एस
2. लता या बेल वाली किस्में – केंटकी वंडर, RCMFB-1
खेत की तैयारी के लिए मिट्टी को पावर टिलर या कुदाल से 2-3 बार जोता जाता है। अंतिम जुताई के दौरान पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरी बनाकर बीज बोने के लिए उपयुक्त किया जाता है।
- बौनी किस्मों के लिए लगभग 50-75 किग्रा/हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है।
- लता या बेल वाली किस्मों के लिए 25 किग्रा/हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है।
मैदानी क्षेत्रों में इसे जनवरी-फरवरी और जुलाई-सितंबर में, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से जून तक बोया जा सकता है।
मिट्टी की तैयारी के समय 30 टन/हेक्टेयर गोबर खाद (FYM) या कम्पोस्ट तथा एनपीके (NPK) 60:120:50 मात्रा में मिलाया जाता है।
- नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय दी जाती है।
- शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा बुवाई के एक महीने बाद डालनी चाहिए।
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लता या बेल वाली किस्मों के पौधे अच्छी वृद्धि के लिए बांस या लकड़ी के खंभों के सहारे लगाए जाते हैं। इन्हें लकड़ी के डंडों को रस्सियों से जोड़कर भी सहारा दिया जाता है।
- स्वस्थ बीजों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई रखें और ऊपर से सिंचाई न करें।
- सल्फर फफूंदनाशक जैसे थिरम, डाइथेन Z-78 तथा बेनलेट या बाविस्टिन @ 2 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- पत्तियों पर गोल या कोणीय धब्बे दिखते हैं, जिनका केंद्र धूसर (ग्रे) रंग का और किनारे लालिमा युक्त होते हैं।
- धीरे-धीरे ये धब्बे पूरी पत्ती को ढक लेते हैं।
- कॉपर फफूंदनाशक @ 3-4 ग्राम/लीटर या थिरम @ 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर 12-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
- पत्तियों के दोनों तरफ और पौधे के अन्य भागों पर सफेद चूर्ण जैसे धब्बे दिखते हैं।
- गंभीर संक्रमण होने पर पत्तियां झड़ने लगती हैं।
- रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।
- फसल पर वेटेबल सल्फर, कराथेन @ 0.2% या बेनलेट/बाविस्टिन @ 0.1% का छिड़काव करें।
- छोटे भूरे या काले रंग के कीट पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
- अधिक संख्या में होने पर ये फली (Pods) को भी नुकसान पहुंचाते हैं जिससे उपज कम हो जाती है।
- फोरेट या एल्डिकार्ब 10-15 किग्रा/हेक्टेयर या कार्बोफ्यूरान 3G @ 30-33 किग्रा/हेक्टेयर बुवाई के समय डालें।
- एंडोसल्फान 35 EC @ 2 मिली/लीटर पानी या BHC 50% वेटेबल पाउडर @ 1-2 ग्राम/लीटर पानी का छिड़काव करें।
- ये पहले फलियों की सतह को खाते हैं और फिर अंदर जाकर बीजों को नुकसान पहुंचाते हैं।
- एंडोसल्फान @ 2 मिली/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- यह कीट भंडारण में बीजों को संक्रमित कर देता है जिससे उनकी खपत और बुवाई दोनों के लिए गुणवत्ता खराब हो जाती है।
- इसे नियंत्रित करने के लिए फॉस्फीन गैस (Phosphine Gas) फ्यूमिगेशन करें, जो सेल्फॉस, फॉसफ्यूम जैसी गोलियों के रूप में मिलती है।
- 1-2 टेबलेट प्रति टन अनाज या प्रति घन मीटर भंडारण स्थान में प्रयोग करें।
- इसके व्यस्क और लार्वा दोनों ही पौधे के सभी हिस्सों को नुकसान पहुंचाते हैं।
- मैलाथियान 0.1% का छिड़काव करें।
- फलियों को अपूर्ण विकसित लेकिन कोमल अवस्था में काटा जाता है।
- फलियां फूल आने के 7-12 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं, जो किस्मों पर निर्भर करता है।
- झाड़ीदार किस्मों (Bush varieties) में 2-3 बार कटाई होती है, जबकि बेल वाली किस्मों (Pole types) में 3-5 बार कटाई की जा सकती है।
- प्रारंभिक कटाई में फलियों की गुणवत्ता अधिक होती है, जबकि बाद की कटाइयों में गुणवत्ता में गिरावट आती है।
- भंडारण के दौरान कुरकुरापन (Crispness) कम होने का कारण जल की हानि और जल में घुलनशील पेक्टिन की वृद्धि होता है।
- झाड़ीदार किस्मों: 8-10 टन/हेक्टेयर
- बेल वाली किस्मों: 12-15 टन/हेक्टेयर
- सूखी फलियों (Dry Beans) की कटाई तब की जाती है जब अधिकतर फलियां पूरी तरह से पककर पीली हो जाती हैं।
- बीज उत्पादन: 1250-1500 किग्रा/हेक्टेयर