किसानों को अब नहीं लगानी होगी पराली को आग, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने खोजा नया इलाज

By : Tractorbird News Published on : 04-Oct-2023
किसानों

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने धान की पुआल और गेहूं की बुआई के लिए एक तकनीक विकसित की है जिसे "सरफेस सीडिंग-कम-मल्चिंग" कहा जाता है। धान की फसल के दौरान 22 लाख टन पराली का रखरखाव एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गया है। धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच कम समय होने के कारण अधिक कृषि उपकरण उपलब्ध होने के बावजूद, इन उपकरणों की ऊंची कीमतों और चलने की लागत के कारण पराली में आग लगा दी जाती है।

पीएयू ने "सरफेस सीडिंग-कम-मल्चिंग" नामक एक तकनीक विकसित की है जो गेहूं की बुआई को स्थायी रूप से हल करेगी। विश्वविद्यालय के कुलपति डा. सतबीर सिंह गोसल ने बताया कि इस तकनीक से गेहूं की अगेती बुआई और धान की पराली को बचाया जा सकता है। 

डॉ. गोसल ने इस बीच तकनीक की प्रक्रिया को समझाते हुए कहा कि कंबाइन हार्वेस्टर से धान की कटाई के बाद, संशोधित गेहूं का बीज खेत में छिड़का जाता है और फिर 4-5 इंच ऊंचा कटर-कम-स्प्रेडर चलाया जाता है। इसके बाद हल्का पानी खेत में दिया जाता है। इस तकनीक में मूल उर्वरक के रूप में प्रति एकड़ 45 किलोग्राम बीज और 65 किलोग्राम डीपी डाला जाता है।

डॉ अनुसंधान निदेशक अजमेर सिंह धट्ट ने इस तकनीक के मशीनीकरण के लिए पीएयू मशीनों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बीज और उर्वरक ड्रिल को 2016 के दौरान पीएयू द्वारा विकसित कटर-कम-स्प्रेडर मशीन के साथ फिट किया गया था। यह मशीन कंबाइन से काटी गई धान की फसल में बीज और उर्वरक को एक साथ समान रूप से वितरित करती है, साथ ही धान के भूसे को मोटा-मोटा काट कर खेत में वितरित करती है।

45 हॉर्स पावर के ट्रैक्टर से चलती है ये मशीन

इस मशीन को 45 हॉर्स पावर के ट्रैक्टर से चलाया जा सकता है। भविष्य में इस तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाए जाने की संभावना को देखते हुए इसका मशीनीकरण तैयार किया गया है। जिसमें मौजूदा कंबाइनों में बुआई का अटैचमेंट लगा दिया जाता है। इस प्रणाली से हम धान की कटाई के साथ-साथ खेतों में गेहूं भी बो सकते हैं।

Join TractorBird Whatsapp Group

Categories

Similar Posts