मल्टी लेयर फार्मिंग और इससे जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

By : Tractorbird Published on : 24-Apr-2025
मल्टी

भारत एक कृषि प्रधान देश है यहां की आधी से ज्यादा आबादी खेती के माध्यम से आय अर्जित करती है। खेती में नई तकनीकों के इस्तेमाल से किसानों की आय में वृद्धि हो रही है। 

फसलों की उपज बढ़ाने और किसानों की आमदनी में सुधार लाने के लिए कुछ पारंपरिक तरीकों को भी फिर से अपनाया जा रहा है। 

इसी दिशा में मल्टी लेयर फार्मिंग एक उन्नत और प्रभावशाली कृषि तकनीक के रूप में सामने आई है। यह प्रणाली एक ही खेत में एक ही समय पर विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाने की एक बेहतरीन विधि है। 

इस लेख के माध्यम से हम मल्टी लेयर फार्मिंग का महत्व, इसके फायदे, इसे अपनाने की प्रक्रिया, उपयुक्त फसल चयन और इस विषय से जुड़े सामान्य प्रश्नों की जानकारी प्राप्त करेंगे। साथ ही मल्टी लेयर वेजिटेबल फार्मिंग, मल्टी लेयर फार्मिंग में उगाई जाने वाली फसलें और इसके मॉडल्स पर भी चर्चा करेंगे।         

मल्टी लेयर फार्मिंग क्या होती है? 

मल्टी लेयर फार्मिंग की शुरुआत यूरोप में हुई थी और यह एक मजबूत कृषि पद्धति मानी जाती है। इस प्रणाली के तहत किसान एक ही खेत में कई प्रकार की फसलें एक साथ उगा सकते हैं। 

यह खेती का एक सुरक्षित और टिकाऊ तरीका है, जो कई लाभ प्रदान करता है। इस तकनीक के माध्यम से किसान न केवल अपनी उत्पादकता बढ़ा सकते हैं, बल्कि अपनी आमदनी में भी इजाफा कर सकते हैं।

मल्टी लेयर फार्मिंग शुरू करने के लिए आवश्यक बातें 

मल्टी लेयर फार्मिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें एक ही खेत में एक साथ कई प्रकार की फसलें अलग-अलग ऊंचाई पर उगाई जाती हैं। 

इससे भूमि का अधिकतम उपयोग होता है और किसानों की आय भी बढ़ती है। इसे सफलतापूर्वक करने के लिए कुछ जरूरी चरणों का पालन करना होता है।

1. खेत का चयन एवं तैयारी:  

  • सबसे पहले उस खेत का चयन करें जहां जल निकासी अच्छी हो और धूप भरपूर मिलती हो। इसके बाद खेत की गहरी जुताई करें। 
  • गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट खाद मिलाएं ताकि मिट्टी उपजाऊ बन सके। 
  • मिट्टी की जांच जरूर कराएं और उसमें मौजूद पोषक तत्वों के अनुसार नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश जैसे उर्वरकों का प्रयोग करें। इससे फसल की अच्छी बढ़वार होती है।

2. बीज चयन एवं उपचार:  

फसलें चयन करते समय ध्यान दें कि कौन-कौन सी फसलें एक साथ उगाई जा सकती हैं, जैसे – नीचे की परत में अदरक या हल्दी, बीच की परत में टमाटर या बैंगन, ऊपर की परत में मक्का या मिर्च, और सबसे ऊपरी परत में सहारा लेने वाली बेल वाली फसलें जैसे लौकी, करेले आदि। 

बीज उपचार करें ताकि वे बीज और मिट्टी जनित रोगों से सुरक्षित रहें। जैविक उपचार जैसे ट्राइकोडर्मा या नीम तेल भी उपयोगी हो सकते हैं।

3. बुवाई / रोपाई:  

प्रत्येक लेयर की फसलों की बुवाई उनके अनुसार करें। ऊंची फसलों को पीछे या कोनों में लगाएं ताकि वे छोटी फसलों को धूप से वंचित न करें। 

बेल वाली फसलों को सहारा देना आवश्यक है, जैसे बाँस की छड़ियों या जालियों की मदद से उन्हें ऊपर चढ़ाएं।

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4. सिंचाई प्रबंधन:  

चूंकि फसलें अलग-अलग लेयर में होती हैं, इसलिए सिंचाई की व्यवस्था भी सोचसमझकर करनी होती है। ड्रिप या स्प्रिंकलर प्रणाली सबसे बेहतर रहती है क्योंकि इससे सभी फसलों को एक साथ पानी मिल जाता है और पानी की बचत भी होती है।

5. खरपतवार नियंत्रण:  

खरपतवार पौधों से पोषक तत्व छीन लेते हैं, इसलिए समय-समय पर निराईगुड़ाई करें। जैविक मल्चिंग से भी खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है, साथ ही मिट्टी की नमी भी बनी रहती है।

6. रोग एवं कीट प्रबंधन:  

प्राकृतिक कीटनाशकों जैसे नीम का अर्क, लहसुन,अदरक का घोल आदि का प्रयोग करें। नियमित निरीक्षण करते रहें ताकि समय रहते रोगों और कीटों पर नियंत्रण पाया जा सके।

7. फसलों की कटाई:  

हर लेयर की फसल अलग-अलग समय पर तैयार होती है। जब कोई फसल तैयार हो जाए तो उसे तुरंत काटें या तोड़ें। इससे बाकी फसलों को पोषक तत्व मिलने में आसानी होगी और खेत का संतुलन बना रहेगा।

मल्टी लेयर फार्मिंग में फसलों का चयन 

मल्टी लेयर फार्मिंग की सफलता का सबसे बड़ा राज सही फसलों का चयन ही है। अगर एक परत में गलत फसल लगा दी जाए, तो बाकी लेयर का संतुलन बिगड़ जाता है और पूरे सिस्टम पर असर पड़ता है।

यहाँ एक आसान और स्पष्ट चारलेयर सिस्टम का उदाहरण दिया गया है, जो आपकी बात को और अच्छे से समझाता है:

पहली लेयर (भूमिगत फसलें): 

  •  स्थान: मिट्टी के अंदर
  •  फसलें: हल्दी, अदरक, मूली, गाजर, शकरकंद, मूंगफली
  •  खासियत: ये फसलें जमीन के नीचे विकसित होती हैं, इसलिए ऊपरी फसलों से कोई टकराव नहीं होता।

दूसरी लेयर (कम ऊंचाई वाली सागसब्जियाँ):

  •  स्थान: जमीन की सतह के पास
  •  फसलें: पालक, धनिया, मेथी, भिंडी, टमाटर, बैंगन
  •  खासियत: इनका कद छोटा होता है और ये पहली लेयर को प्रभावित नहीं करतीं। इन्हें मध्यम धूप मिलनी चाहिए।

तीसरी लेयर (मध्यम ऊंचाई वाले फलदार पौधे):

  •  स्थान: दूसरी लेयर के ऊपर की ऊंचाई में
  •  फसलें: पपीता, अमरूद, केला, नींबू
  •  खासियत: इन पौधों की छांव से नीचे की फसलें ज़्यादा धूप से बचती हैं, और इन्हें लंबी अवधि तक आय देने वाला माना जाता है।

चौथी लेयर (बेल वाली फसलें):

  •  स्थान: सबसे ऊपरी सतह, मचान/जाल/खम्भे पर
  •  फसलें: लौकी, करेला, खीरा, ककड़ी, तोरई, परवल
  •  खासियत: ये फसलें ऊपर फैलती हैं, जमीन नहीं घेरतीं और नीचे की फसलों को नुकसान नहीं पहुँचातीं। इनसे अतिरिक्त आय होती है।

ध्यान देने योग्य बातें: 

  •  फसलें ऐसे चुनें जिनकी जड़ें एकदूसरे से प्रतिस्पर्धा न करें।
  •  ऊंची फसलों को पूर्वपश्चिम दिशा में लगाएं ताकि नीचे की फसलों को पर्याप्त धूप मिले।
  •  बेल वाली फसलों को मजबूत सहारा देना जरूरी है।
  •  एक ही समय में विभिन्न फसलों से उत्पादन मिलता है जिससे लगातार आय होती रहती है।

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