वैज्ञानिकों ने इस वर्ष गेहूं की सात और जौ की एक अधिक पैदावार देने वाली वैराइटी का इजाद किया

By : Tractorbird News Published on : 15-Sep-2023
वैज्ञानिकों

इस वर्ष वैज्ञानिकों ने जौ और गेहूं की सात नई किस्में ईजाद की है। इन नई जातियों को सिंचित और सीमित सिंचाई के लिए बनाया गया है। इन किस्मों को दिल्ली, हिसार, करनाल और छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिकों ने खोजा है और इसी वर्ष से किसानों को बीज मिलेगा। 

इन किस्मों की घोषणा महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर में भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल की 62वीं कार्यशाला में की गई है।

गेहूं की नई किस्म की पहचान 

उत्तर पश्चिमी मैदानी भागों में सिंचित एवं समय से बुआई के लिए गेहूं की एचडी 3386 किस्म की पहचान की गई। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा दिल्ली की ओर से खोजा गया है। इसके साथ ही सीमित सिंचाई के साथ गेहूं की फसल के लिए डब्ल्यूएच 1402 की पहचान की गयी इसकी खोज हिसार कृषि विश्वविद्यालय की ओर से की गई है। 

राष्ट्रीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान केंद्र करनाल के निदेशक डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया एचडी 3388 गेहूं किस्म उत्तर पूर्वी मैदानों में सिंचित और समय से बुआई के लिए निर्धारित है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा (दिल्ली) भी इसकी खोज में शामिल है। भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने कर्ण शिवानी DBW 327 की किस्म भी विकसित की। भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल ने DBW 359 को भी सीमित सिंचाई के लिए इजाद किया है।

112.7 मिलियन टन हुआ गेहूं उत्पादन 

उन्हें बताया गया कि इस वर्ष गेहूं की पांच नई किस्में (DBW-370, DBW-371, DBW-372, DBW-316 और DBW-55) का व्यवसायीकरण किया जाएगा। किसानों को यह किस्में अब बीज के रूप में उपलब्ध कराई जाएंगी। भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान करनाल ने इन सभी किस्मों को खोजै है। 

संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि आने वाले समय में संस्थान अपने अनुसंधान विकास और प्रचार कार्यक्रमों के माध्यम से गेहूं और जौ के उत्पादन मूल्य संख्या में सुधार करने के लिए निरंतर प्रयास करेगा। डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले वर्ष उनका गेहूं उत्पादन लक्ष्य 112.7 मिलियन टन था, जो एक रिकॉर्ड है। 


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