सोयाबीन की उन्नत किस्मों की बुवाई करके आप काम सकते है अच्छा मुनाफा

By : Tractorbird News Published on : 06-May-2024
सोयाबीन

सोयाबीन भारत में मुख्य खाद्य फसलों में से एक है और इसकी खेती देशभर में की जाती है। यह एक प्रमुख प्रोटीन स्रोत के रूप में भी माना जाता है। 

सोयाबीन का उत्पादन भारतीय कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण अंग है, जिससे अनेक उत्पादों का निर्माण किया जा सकता है, जैसे कि सोयाबीन तेल, ब्राउन सोया सॉस, सोया दूध, और बहुत कुछ सोयाबीन की खेती के लिए उचित मौसम, अच्छी जलवायु, और उपयुक्त मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसका मुख्य खेती काल जून से अक्टूबर के महीनों तक होता है। 

सोयाबीन की बुआई गर्मियों में की जाती है और उसकी कटाई ठंडी सितंबर-अक्टूबर में की जाती है। 

सोयाबीन की खेती में सही बीज चयन, समय पर खाद और पानी की उपलब्धता, उचित रोग प्रबंधन, और समय पर रोपाई का महत्व होता है। 

सोयाबीन की फसल को पेस्टिसाइड्स और उर्वरकों से प्रतिरोधी बनाए रखने के लिए प्राकृतिक कीटनाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है।

सोयाबीन की खेती भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है और किसानों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने में मदद करती है। 

सरकारी योजनाओं और तकनीकी सहायता के माध्यम से, किसानों को सोयाबीन की खेती में नवाचारी तकनीकों का प्रयोग करने का अवसर मिलता है। 

सोयाबीन की खेती से अधिक उपज पाने के लिए किस्मों का सबसे अहम् योगदान होता है। इसलिए किसानों को अधिक उपज देने वाली किस्मों का ही चुनाव करना चाहिए। 

आज के इस लेख में हम आपको अलग-अलग राज्यों में सोयाबीन की अलग-अलग किस्मों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे। 

सोयाबीन की उन्नत किस्में

1. सोयाबीन जे एस 20-34 

  • इस किस्म को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (JNKVV) मध्य प्रदेश द्वारा तैयार किया गया है। ये किस्म कम अवधि में पक कर तैयार हो जाती है। 
  • सोयाबीन की ये किस्म बुवाई के ले लिए मध्यक्षेत्र मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र हेतु उपयुक्त है। सोयाबीन की JS 20-34 किस्म महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड के लिए प्रतिकूल है। 
  • इस किस्म की खेती को एक या दो बार सिंचाई की जरूरत होती है। इस किस्म के पौधे में चार बीज वाली फली, भाले के आकार की पत्तियां, बैंगनी फूल और न टूटने वाली काली हिलम हैं। 
  • इसकी फसल 90 से 95 दिनों में पक जाती है और प्रति हेक्टेयर 25 से 32 क्विंटल उपज मिलती है। यह किस्म रोगों और कीटों से बहुत सुरक्षित है। 

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2. सोयाबीन JS-2172 किस्म 

  • यह वैरायटी सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर (मप्र) के जबलपुर सेंटर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित की गई है। 
  • यह किस्म राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड- मालवा एवं महाराष्ट्र का विदर्भ एवं मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए अनुसंशित की गई है। 
  • 33 बार ट्रायल के बाद जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों बदलते मौसम, बढ़ते तापमान और पानी की कमी को ध्यान में रखकर सोयाबीन की नई किस्म को तैयार किया है। 
  • इस वैरायटी की सबसे बड़ी खासियत यह है की इसमें चारकोल सड़न (चारकोल रॉट), ऐन्थ्रेक्नोज व फली झुलसा, राइजेकटोनिया एरियल ब्लाइट जैसे सभी रोगों से लड़ने में औसत दर्जे से लेकर उच्च क्षमता पाई गई है। 
  • किस्म की औसत उपज 28 क्विंटल/हेक्टेयर है।

राजस्थान राज्य के जिलों के अनुसार IISR द्वारा अनुशंसित किस्में 

बांसवाड़ा, कोटा, बूंदी, बारां, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, झालावाड़, उदयपुर के लिए – प्रताप सोया (RAUS 5), PK 472, JS 93-05, इंदिरा सोया 9, JS 335, अहिल्या 2 (NRC 12), अहिल्या 3 (NRC) 7) अहिल्या 4 (एनआरसी 37), परभणी सोना (एमएयूएस 47), जेएस 93-05, प्रतिष्ठा (एमएयूएस 61-2) और शक्ति (एमएयूएस 81) है।

महाराष्ट्र के लिए सोयाबीन की उन्नत किस्में

अहिल्या 1 (एनआरसी 2), जेएस 335, जेएस 93-05, जेएस 80-21, एमएसीएस 58, परभणी सोना (एमएयूएस 47), प्रतिष्ठा (एमएयूएस 61-2), शक्ति (एमएयूएस 81), एमएसीएस 13, मोनेटा , प्रसाद (MAUS 32) PK 472, शक्ति (MAUS 81), TAMS-38 और फुले कल्याणी (DS-228) आदि किस्में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर) द्वारा महाराष्ट्र राज्य के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए विकसित की गयी है।

सोयाबीन की बुवाई के लिए भूमि की तैयारी कैसे करे ?

  • सोयाबीन के खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है। 
  • जुताई के बाद खेत को कुछ दिन के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे। खेत की पहली जुताई के बाद खेत में 20 से 25 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | 
  • इसके बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद अच्छे से मिल जाती है। 
  • गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाने के पश्चात् उसमे पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है। खेत की जुताई एक बार फिर से करें जब खेत की मिट्टी सूख जाएगी। 
  • इससे खेत की मिट्टी गल जाएगी। मिट्टी भुरभुरा होने पर पाटा डालकर खेत को समतल कर दें। इससे खेत में पानी नहीं बहेगा। 
  • यदि आप सोयाबीन की खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो हर हेक्टेयर पर 40 किलो पोटाश, 60 किलो फास्फोरस, 20 किलो गंधक और 20 किलो नाइट्रोजन छिड़कना होगा।

बुवाई का तरीका 

सोयाबीन बीज के रूप में रोपा जाता है एक हेक्टेयर में इसके बीजो की रोपाई के लिए 70 किलोग्राम छोटे, 80 किलोग्राम मध्यम और 100 किलोग्राम बड़े दाने की आवश्यकता होती है। 

सोयाबीन बीज समतल खेत में मशीन द्वारा बोया जाता है इसके लिए खेत में 30 सेमी की दूरी पर पंक्तियां बनाई जाती हैं, और बीजों को 2 से 3 सेमी की गहराई में रोपा जाता है।

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