किसानों की आय दोगुनी करने में मोटे अनाज उत्पादन तकनीकें

By : Tractorbird Published on : 26-May-2025
किसानों

मिलेट्स (ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी आदि) गरीबों के लिए ऊर्जा, पचने योग्य रेशे, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों के सबसे सस्ते स्रोतों में से एक हैं। ये न केवल मुख्य खाद्य फसल हैं बल्कि चारे, पशु आहार और औद्योगिक कच्चे माल के रूप में भी काम आती है। 

ये मुख्यतः अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाती है जहां अन्य अनाज फसलें अच्छी नहीं होतीं हैं। इस लेख में हम आपको उन्नत मोटे अनाज उत्पादन तकनीकों के बारे में जानकारी देंगे।

मिलेट्स और सहायक खेती में तकनीकी हस्तक्षेप 

जलवायु-संवेदनशील कृषि को बढ़ावा देकर किसानों की उत्पादकता और लाभप्रदता को बढ़ाने की बहुत संभावना है। इसके लिए ठोस प्रयासों, स्थान-विशिष्ट और लागत-कुशल तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है। 

ये नई तकनीकें कम इनपुट वाली, सस्ती, व्यवहार्य और आर्थिक रूप से लाभकारी हैं। चापके और तोनापी (2017) द्वारा सुझाई गई कुछ प्रभावशाली तकनीकी हस्तक्षेप निम्नलिखित हैं:

1. मृदा प्रकार के अनुसार उच्च उपज देने वाली किस्मों का उपयोग

  • खरीफ ज्वार की नवीनतम 12 किस्मों को देश के सात वर्षा आधारित राज्यों में अग्रिम प्रदर्शन (FLDs) के अंतर्गत पेश किया गया। 
  • इनसे 78% अधिक अनाज और 60% अधिक चारा उत्पादन हुआ, जिससे स्थानीय किस्मों की तुलना में 51% अधिक शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ। इसी प्रकार की सफलता रबी ज्वार में भी मिली। 
  • ज्वार उगाने वाले क्षेत्रों की मिट्टी को गहराई के आधार पर उथली (<45 सेमी), मध्यम (45–60 सेमी) और गहरी (>60 सेमी) में वर्गीकृत किया गया है। 
  • इनकी जलधारण क्षमता कम से मध्यम तक होती है, अतः मिट्टी के प्रकार के अनुसार किस्मों का चयन अधिक उपयुक्त होता है।

2. उन्नत विधियों और समय पर प्रबंधन

FLDs में प्रदर्शित तकनीकों को अपनाने से किसानों की आदतों में 48% से अधिक की वृद्धि देखी गई, जैसे कि बीज उपचार (85%), उच्च उत्पादक किस्मों का उपयोग (70%), नाइट्रोजन उर्वरक (57%), समय पर बुवाई (49%) और पौधों की उचित दूरी बनाए रखना (48%)। 

इसके कारण शुद्ध लाभ में 170%, अनाज उत्पादन में 58%, गुणवत्ता में 78% और चारे में 26% की वृद्धि हुई। यह सिद्ध करता है कि कम लागत वाली सिफारिशें और समय पर कार्यान्वयन बड़े लाभ दे सकते हैं।

3. जल संरक्षण तकनीकें

  • खरीफ फसलें वर्षा पर और रबी फसलें अवशिष्ट नमी पर निर्भर होती हैं। रबी ज्वार और बाजरा की कम उत्पादकता का कारण टर्मिनल सूखा होता है। 
  • इन-सीटू नमी संरक्षण उपाय जैसे कंपार्टमेंटल बंडिंग, मेढ़ और नालियां, जैविक मल्चिंग, जल उपलब्धता के आधार पर सिंचाई प्रबंधन आदि महत्वपूर्ण हैं। 
  • अध्ययनों से पता चला कि कंपार्टमेंटल बंडिंग से 12.6% अधिक नमी संरक्षित हुई और 20.6% अधिक अनाज उत्पादन हुआ।

4. बाजरा-आधारित मिश्रित खेती (इंटरक्रॉपिंग)

  • भूमि के उपयोग को अधिकतम करने के लिए, वर्षा, मृदा प्रकार और फसल अवधि के आधार पर मिश्रित फसल प्रणालियाँ अपनाई गईं। 
  • ज्वार+अरहर (2:1/3:1/6:2) और ज्वार+सोयाबीन (3:6/2:4) लाभकारी सिद्ध हुईं। सोयाबीन के बाद रबी ज्वार सबसे अधिक उत्पादक और लाभकारी पाया गया, विशेषकर 700 मिमी से अधिक वर्षा और उच्च जलधारण क्षमता वाली मृदा में।

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5. चावल के फॉलो क्षेत्रों में मिलेट्स की नई संभावनाएं

  • मिलेट्स को पारंपरिक क्षेत्रों में कम बोया जा रहा है। चावल कटाई के बाद खेतों में मिलेट्स की खेती एक नया अवसर है। 
  • आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में ज्वार की CSH 16 किस्म ने महालक्ष्मी 296 की तुलना में 27% अधिक उत्पादन और 73% अधिक लाभ दिया। यहां औसत उत्पादन 6.80 टन/हे. रहा, जो राष्ट्रीय औसत से 7 गुना अधिक था।

6. मूल्य संवर्धन और कटाई के बाद की प्रोसेसिंग

  • बाजार अधिशेष दर में वृद्धि यह दर्शाती है कि प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन से आमदनी में वृद्धि की जा सकती है। 
  • मिलेट्स आधारित उत्पादों की मांग स्वास्थ्यवर्धक खाद्य के रूप में बढ़ रही है। इससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा बल्कि किसानों को बेहतर मूल्य भी मिलेगा।

7. यंत्रीकरण

  • मिलेट्स की खेती विशेषकर ज्वार और बाजरा में श्रमिक लागत अधिक होती है (55% से अधिक)। कटाई और थ्रेशिंग में अधिक श्रम लगता है। इसलिए कंबाइन हार्वेस्टर जैसे उपकरण आवश्यक है। 
  • समय पर बुवाई के लिए उचित बीज एवं उर्वरक उपकरणों का प्रयोग जरूरी है ताकि नमी क्षेत्र का पूरा लाभ उठाया जा सके। यंत्रीकरण से लागत कम होगी और अधिक क्षेत्र कवर किया जा सकेगा।

8. जैव-संवर्धित किस्मों का प्रचार

मिलेट्स में पोषण संबंधी गुण होते हैं। विशेषकर आयरन और जिंक से भरपूर बायो-फोर्टिफाइड बाजरा किस्में जैसे "धनशक्ति" और "शक्ति 1201" (80 ppm आयरन) उपलब्ध हैं। 

एनीमिक महिलाओं और बच्चों के लिए इनका बाजार बढ़ रहा है, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिल सकता है।

9. समूह आधारित सतत उत्पादन और मूल्य श्रृंखला

गुणवत्ता और जैविक उत्पादन अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाता है। जैविक मिलेट्स और रोग प्रतिरोधी किस्में अपनाकर किसानों को बेहतर मूल्य मिल सकता है। 

छोटे किसानों के लिए एफपीओ (FPO) और स्वयं सहायता समूह (SHG) के माध्यम से सामूहिक उत्पादन और विपणन एक प्रभावी रणनीति है।

10. सहायक उद्यमों का एकीकृत खेती प्रणाली में समावेश

पारंपरिक एकल फसल प्रणाली अब लाभकारी नहीं है। मृदा-पौधा-पशु चक्र को आधार बनाकर मुर्गी पालन, डेयरी, बकरी पालन, सूअर पालन और मधुमक्खी पालन जैसे सहायक व्यवसायों को शामिल कर आय में वृद्धि की जा सकती है। 

इससे महिलाओं को भी आय के अवसर मिलेंगे और संपूर्ण खेती प्रणाली मजबूत होगी।

मिलेट्स के क्षेत्रफल और खपत में गिरावट के कारण

  • जागरूकता की कमी
  • कृषि विस्तार सेवाओं व इनपुट समर्थन की कमी
  • व्यावसायिक निवेश व नीति समर्थन का अभाव
  • उपयुक्त उत्पादन तकनीकों की अनुपलब्धता
  • गुणवत्ता वाले बीज, उर्वरक और कृषि यंत्रों की समय पर उपलब्धता की कमी
  • किसानों की जोखिम सहन करने की क्षमता कम
  • सामूहिक प्रयासों की कमी
  • मूल्य संवर्धन और विपणन में समर्थन का अभाव

इन सभी कारणों से उत्पादकता और लाभप्रदता कम बनी हुई है। हालांकि क्षेत्रफल में कमी आई है, उत्पादकता लगभग दोगुनी हो गई है, जो दर्शाता है कि अगर सही तकनीकी हस्तक्षेप हो तो सीमित संसाधनों में भी किसानों की आय दोगुनी या तिगुनी की जा सकती है।

समाधान और आगे की दिशा

  • स्थान-विशिष्ट तकनीकी हस्तक्षेपों को बढ़ावा देना
  • तकनीकी समर्थन, कौशल विकास और इनपुट सहायता प्रदान करना
  • किसानों को प्रेरित, संगठित और सशक्त बनाना
  • सफलता की कहानियों के माध्यम से मिलेट्स और सहायक कृषि को बढ़ावा देना
  • किसानों की आय दोगुनी करने के राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सामूहिक प्रयास

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