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मटर रबी की एक प्रमुख दलहनी फसल है, विश्व में भारत में सर्वाधिक इसकी खेती होती है। मटर मुख्य रूप से दाल एवं सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती है। मटर फसल की खेती आमतौर पर इसकी हरी फलियों के लिए की जाती है। इसमे प्रोटीन और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
यह अत्यधिक पौष्टिक है और प्रोटीन से भरपूर है। इसका उपयोग सब्जी के रूप में या सूप, डिब्बाबंद जैम या डिहाइड्रेट में भी किया जाता है। इसे आलू के साथ या उसके साथ सब्जी के रूप में पकाया जाता है। मटर के टूटे हुए दानों का उपयोग दाल के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। मटर का भूसा पशुओं के लिए एक पौष्टिक चारा है। इस लेख में आप मटर की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी के बारे में जानेंगे।
मटर की खेती के लिए पीएच रेंज 6.5 -7.5 के साथ अत्यधिक घुलनशील लवणों से मुक्त अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी फसल की सफल खेती के लिए उपयुक्त है। मटर की खेती के लिए एक समतल मैदान तैयार करें।
पिछली फसलों के डंठल और फसल अवशेषों से खेत को मुक्त करने के लिए डिस्क या मोल्डबोर्ड हल से एक गहरी जुताई और उसके बाद 2-3 बार हैरो से जुताई करें। बुवाई से पहले खेत को सुहागा या ताकता लगा कर समतल करें। खेत में अच्छी जल निकासी और वातन सुनिश्चित करने के लिए, ख़स्ता बीज क्यारियों से बचना चाहिए।
सर्दी के मौसम की फसल होने के कारण इसे बढ़ने के लिए मध्यम के साथ ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। मटर की फसल के लिए अधिक तापमान अधिक हानिकारक होता है। फूल आने की अवस्था के दौरान पाला पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है। उच्च आर्द्रता संबद्ध बादल छाए रहने से डैम्पिंग-ऑफ, पाउडर रूपी फफूंदजैसी फंगल बीमारियाँ फैलती हैं। मटर की वृद्धि के लिए उपयुक्त मासिक तापमान 13-18 डिग्री सेल्सियस होना आवश्यक होता है।
मटर की बुवाई के लिए बीज की मात्रा लम्बे पौधों की प्रजातियों के लिए 80 से 100 किलोग्राम प्रति हैक्टर तथा बौनी प्रजातियों के लिए 125 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर की दर से बुवाई करनी चाहिएI
मटर की बुवाई का समय अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के मध्य तक है। मटर को हल के पीछे बौनी प्रजातियों को 20 सेन्टी मीटर तथा लम्बी प्रजातियों को 30 सेन्टी मीटर की दूरी पर बुवाई करनी चाहिएI
फसल को बीज जनित रोगों के बचाव के लिए थिरम 2 ग्राम या मैन्कोजेब 3 ग्राम या 4 ग्राम ट्राईकोडरमा से प्रति किलोग्राम बीज को बुवाई से पहले शोधित करना अति आवश्यक है, बीज शोधन के बाद बीज को 200 ग्राम राईजोवियम कल्चर से 10 किलोग्राम बीज को उपचारित करके बोना चाहिए।
मटर की फसल में नाइट्रोजन 20 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम तथा गंधक (सल्फर) 20 किलोग्राम प्रति हेक्टर (एक हेक्टर में 2. 5 एकड़ जमीन होती है) की दर से तत्व के रूप में प्रयोग करना चाहिए तथा मटर की बौनी प्रजातियों के लिए बुवाई के समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टर की दर से अतिरिक्त देना चाहिए I
मटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बसालिन नामक रसायन की 1.65 से 2.2 लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पहले छिडकाव करें अथवा पेंडामेथालिन रसायन की 3.33 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में प्रति हेक्टर की दर से मिलाकर बुवाई के बाद छिडकाव करने से फसल में खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है।
मटर की फसल में प्रमुख रोग हैं जैसे :
पहला रोग - बुकनी रोग ,इस रोग से पत्तियां फलियाँ तथा तने पर सफ़ेद चूर्ण सा फैलता है और बाद में पत्तियाँ ब्राउन या काली होकर सुख जाती है। रोग उपचार के लिए कार्बेन्डाजीम रसायन की 500 ग्राम या ट्राईकोमार्क 80 ई सी 500 मिली लीटर दवा को 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिडकाव 10-15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
दूसरा रोग - उकठा रोग, इस रोग में पौधों की पत्तियाँ नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती हैं और पूरा पौधा सुख जाता है, इसके उपचार के लिए बीज को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजीम अथवा वैनोमिल प्रति किलो ग्राम बीज में मिलाकर बीज की बुवाई करनी चाहिए।
तीसरा रोग - सफ़ेद गलन रोग, इस रोग से पूरा पौधा सफ़ेद रंग का होकर मर जाता है, पौधे के ग्रसित भागों पर सफ़ेद रंग की फंफूदी उग जाती है, इसके उपचार के लिए कार्बेन्डाजीम 0.05% दवा का 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करना चाहिए।
चौथा रोग - झुलसा रोग यह रोग फसल में बहुत ज्यादा लगता है, इस रोग में पौधों के नीचे पत्तियों के किनारे पर भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, इसके उपचार के लिए 2.5 ग्राम थीरम नामक दवा से प्रति किलो ग्राम बीजोपचार करना चाहिए, बाद में फसल पर मैन्कोजेब 0.2% घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए।
पाँचवा रोग - बीज गलन रोग, इस रोग में बीज अंकुरण से पहले या अंकुरण के समय सड़ना प्रारम्भ हो जाता है, इस रोग की रोकथाम के लिए 2.5 थीरम अथवा कैप्टान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करना लाभदायक होता है।
मटर की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण
मटर की फसल में दो तरह के कीट लगते हैं,
पहला कीट - तने की मक्खी, यह काले रंग की घरेलु मक्खी तरह होती है, इसका प्रकोप फसल उगने के साथ शुरू हो जाता है, इसकी नवजात गिडारें पत्तियों से होते हुए तने में घुस जाती हैं, जिससे फसल को अत्यधिक नुकसान होता है।
दूसरा कीट - फली वेधक कीट यह गहरे भूरे रंग का पतंगा होता है और इसकी सुडी गुलाबी रंग की होती है, इस कीट की गिडारें फलियों में बन रहे दानो को खाकर नुकसान पहुंचाती है।
मटर की फसल को इन कीटों से बचाने के लिए फसल की क्यारियों में कार्बेफ्युरान 15 किलो ग्राम अथवा फोरेट 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर की दर से प्रयोग करें या फसल उगते ही सप्ताह के अन्तराल पर 5% प्रकोपित पौधे दिखते हैं , डाईमेंथोट 30 ई सी 1 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें, फसल में फली वेधक का प्रकोप होने पर फेन्बेलरेट 750 मिलीलीटर मात्रा या मोनोक्रोटोफास 1 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए, जिससे की इन कीटों का प्रकोप न हो सके।
फसल की कटाई
मटर की फसल को पूर्ण पकाने पर ही कटाई करनी चाहिए। कटाई के पश्चात फसल की मड़ाई करके दाना निकाल लेना चाहिए। मटर को भण्डारण में कीटों से बचाने के लिए एल्युमिनियम फास्फाइड ३ गोलियां प्रति मीट्रिक टन की दर से प्रयोग करें, जिससे भण्डारण में कीटों से होने वाली हानि से बचाया जा सके। एक हेक्टेयर में 25 से 30 क्विंटल तक उपज हो सकती है।