खारे पानी में मूंगफली की खेती एक उष्णकटिबंधीय फसल को चुनौतीपूर्ण बनाती है, फिर भी अच्छी उपज के लिए गर्म और लंबे मौसम की आवश्यकता होती है।
यह फसल 50–125 सेमी अच्छी तरह वितरित वर्षा वाले क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करती है, जबकि खारे पानी में मूंगफली की खेती में मिट्टी का क्षारीय प्रभाव ध्यान में रखना जरूरी है।
अंकुरण के लिए मिट्टी का तापमान 19 °C से ऊपर होना चाहिए। मूंगफली वृद्धि के लिए आदर्श तापमान 26–30 °C है, प्रजनन अवस्था 24–27 °C पर बेहतर होती है, और फलियों की वृद्धि 30–34 °C में अधिकतम होती है।
प्रकाश भी पौधों की वृद्धि, फूल आने और फली बनने में अहम भूमिका निभाता है, खासकर खारे पानी में मूंगफली की खेती में जहाँ प्रकाश संश्लेषण को बढ़ावा देना होता है।
खारे पानी में मूंगफली की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली, ढीली, रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। भारी या चिकनी मिट्टी छोटी जड़ों और क्षारीय लवणों के कारण अनुपयुक्त होती है।
6.0–7.5 pH वाली मिट्टी सर्वश्रेष्ठ होती है, जबकि खारे पानी में मूंगफली की खेती में अतिरिक्त जैविक पदार्थ और जिप्सम मिलाकर क्षारीयता कम की जा सकती है।
खारे पानी में मूंगफली की खेती के लिए खेत की तैयारी में पलटने वाले हल से एक बार और हैरो से दो बार 12–18 सेमी गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
खारे पानी में मूंगफली की खेती में मल्चिंग और फ्रेमिंग तकनीक अपनाकर नमीयाँ संतुलित रखी जा सकती हैं। गहरी जुताई से फली गहरे चली जाती है जिससे कटाई कठिन होती है।
खारे पानी में मूंगफली की खेती के अनुकूल किस्में:
GGUG-10
GG-11
GG-12
GG-13
GG-20
J-11
GG-2
JL-24
GG-4
GG-5
GG-6
बीज जनित रोगों से सुरक्षा हेतु बीजों को थीरम (3 ग्राम/किग्रा), मैंकोजेब या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें। राइजोबियम का उपयोग “खारे पानी में मूंगफली की खेती” में माइक्रोबियल सहायता बढ़ाने के लिए मुफीद होता है। सफेद सूंडी नियंत्रण हेतु क्विनालफॉस या क्लोरपायरीफॉस का प्रयोग करें।
संपूर्ण, मोटे और रोगमुक्त बीज चुनें। बोआई से ठीक पहले फली खोलें और टूटे, सिकुड़े बीज हटा दें। कौओं और चूहों से सुरक्षा हेतु बीजों पर पिनेटर या मिट्टी का तेल लगाएँ। “खारे पानी में मूंगफली की खेती” में कीट-रोधी स्तर बढ़ाने के लिए जैविक विकर्षक भी उपयोगी हैं।
ये भी पढ़ें: लाल भिंडी की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी
मानसून में बुवाई सामान्यतः जून–जुलाई में होती है। जहाँ सिंचाई हो, वहाँ पूर्व मानसून बुवाई की जा सकती है। रबी में सितंबर–दिसंबर, गर्मी में जनवरी–फरवरी, वसंत में फरवरी के अंत से मार्च की शुरुआत तक बोया जाता है।
खारे पानी में मूंगफली की खेती हेतु बुवाई समय का विशेष ध्यान रखें ताकि लवण क्षार प्रभाव न्यून हो।
बीजों को 5 सेमी गहराई पर, कतार से कतार 60 सेमी और पौधे से पौधे 10 सेमी पर बोएँ। बंच किस्मों के लिए 45×10 सेमी, प्रसार किस्मों के लिए 60×10 सेमी दूरी रखें।
क्रॉस बुवाई, जोड़ीदार पंक्ति और चौड़ी क्यारी विधियाँ उपज बढ़ाती हैं। खारे पानी में मूंगफली की खेती में ऊँची क्यारियाँ या बैंकों पर बुआई करने से क्षारीय जल निकासी बेहतर होती है।
बीज की मात्रा बीज के आकार, किस्म और अंकुरण पर निर्भर करती है। प्रसार किस्मों के लिए 30–40 किग्रा/एकड़, बंच किस्मों के लिए 40–50 किग्रा/एकड़ पर्याप्त होते हैं। खारे पानी में मूंगफली की खेती में बीज दर थोड़ा बढ़ाकर 5–10% अतिरिक्त बीज बोना प्रभावी हो सकता है।
मूंगफली को कम नाइट्रोजन (8 किग्रा/एकड़) चाहिए। फास्फोरस जड़ों व राइजोबियम के विकास के लिए जरूरी है—इसे बुवाई से पहले 4–5 सेमी गहराई पर डालें।
जिप्सम (200 किग्रा/एकड़) से कैल्शियम व सल्फर मिलता है। खारे पानी में मूंगफली की खेती में जैविक खाद और ग्रीन मैन्यूरिंग क्षारीय धातुओं को बांधने में मदद करती है।
वर्षा आधारित फसल होने पर सिंचाई आवश्यक नहीं होती। लेकिन पुष्पन, खूंटी बनना और फली विकास के दौरान यदि सूखा हो तो सिंचाई करें।
रबी में 3–4 सिंचाइयाँ पर्याप्त हैं। कटाई से पूर्व सिंचाई से मिट्टी नरम होती है, जिससे “खारे पानी में मूंगफली की खेती” में फली निकालना आसान हो जाता है।
खरपतवार फसल उपज को 25–50% तक घटा सकते हैं। बुवाई के पहले 60 दिनों में 2–3 बार निराई आवश्यक है। इसकी बाद हाथ से निराई करें, लेकिन मिट्टी अधिक उखाड़ने से बचें।
कटाई के संकेत: पत्तियाँ पीली पड़ना, धब्बे आना, पत्तों का झड़ना। फली सख्त और अंदर गहरा रंग दिखाए तो कटाई करें। समय से पहले या देर से कटाई से उपज व बीज गुणवत्ता पर असर पड़ता है।